Narayaneeyam - Dasakam 67 (Dissapearance of the Lord)
https://youtu.be/3cNNAc7rjZchttp://youtu.be/A9_qMjv6z4k
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Dashaka 67
स्फुरत्परानन्दरसात्मकेन त्वया समासादितभोगलीला: ।
असीममानन्दभरं प्रपन्ना महान्तमापुर्मदमम्बुजाक्ष्य: ॥१॥
असीममानन्दभरं प्रपन्ना महान्तमापुर्मदमम्बुजाक्ष्य: ॥१॥
स्फुरत्-परानन्द- | resplendent of the supreme bliss |
रसात्मकेन | and the pure Essence embodied |
त्वया | with Thee (who were) |
समासादित- | made to participate |
भोगलीला: | in the pleasant sport |
असीमम्- | (in) boundless |
आनन्दभरं | bliss (being) |
प्रपन्ना महान्तम्- | immersed (they), great |
आपु:-मदम्- | acquiered pride |
अम्बुज-आक्ष्य: | the lotus eyed (damsels) |
The lotus eyed damsels were allowed to participate in the pleasant sport
with Thee, the very pure embodied essence of the resplendent supreme
bliss. They were immeresed in boundless bliss and so they fell victim to
great pride and self importance.
निलीयतेऽसौ मयि मय्यमायं रमापतिर्विश्वमनोभिराम: ।
इति स्म सर्वा: कलिताभिमाना निरीक्ष्य गोविन्द् तिरोहितोऽभू: ॥२॥
इति स्म सर्वा: कलिताभिमाना निरीक्ष्य गोविन्द् तिरोहितोऽभू: ॥२॥
निलीयते- | is engrossed |
असौ मयि | this (Krishna) in me |
मयि-अमायं | in me, without doubt |
रमापति:- | the Consort of Laxmi, |
विश्व-मनोभिराम: | the captivator of the entire universe's mind |
इति स्म सर्वा: | thus indeed all of them |
कलिता-अभिमाना: | full of pride |
निरीक्ष्य | seeing (them thus) |
गोविन्द् | O Govind! |
तिरोहित:-अभू: | (Thou) disappeared |
This Krishna the Consort of Laxmi and the captivator of the minds of the
whole world, is engrossed in me.' Full of pride, all of them indeed
thought thus. O Govinda! Being aware of this, Thou disappeared from
their midst.
राधाभिधां तावदजातगर्वामतिप्रियां गोपवधूं मुरारे ।
भवानुपादाय गतो विदूरं तया सह स्वैरविहारकारी ॥३॥
भवानुपादाय गतो विदूरं तया सह स्वैरविहारकारी ॥३॥
राधा-अभिधां | Raadhaa named |
तावत् | till then |
अजात-गर्वाम्- | (who) did not rear pride |
अति-प्रियां | very dear |
गोपवधूम् | the Gopikaa |
मुरारे | O Slayer of Mura! |
भवान्-उपादाय | Thou taking her along |
गत: विदूरं | went far away |
तया सह | with her |
स्वैर-विहार-कारी | at will sporting (with her) |
O Slayer of Mura! One of the Gopikaas, Raadhaa by name, till then had
reared no pride. Thou took her along with Thee far away and sported with
her at will.
तिरोहितेऽथ त्वयि जाततापा: समं समेता: कमलायताक्ष्य: ।
वने वने त्वां परिमार्गयन्त्यो विषादमापुर्भगवन्नपारम् ॥४॥
वने वने त्वां परिमार्गयन्त्यो विषादमापुर्भगवन्नपारम् ॥४॥
तिरोहिते- | disappeared |
अथ त्वयि | then (when) Thou |
जात-तापा: | full of suffering |
समं समेता: | together coming |
कमलायत-आक्ष्य: | the lotus eyed ones |
वने वने त्वां | in the various forests, Thee |
परिमार्गयन्त्य: | looking for |
विषादम्-आपु:- | great grief felt |
भगवन्- | O Lord! |
अपारम् | intense |
O Lord! When Thou disappeared, the lotus eyed damsels, full of suffering
the pangs of separation gathered together, looking around for Thee in
the various forests from place to place in intense and utmost grief.
हा चूत हा चम्पक कर्णिकार हा मल्लिके मालति बालवल्य: ।
किं वीक्षितो नो हृदयैकचोर: इत्यादि तास्त्वत्प्रवणा विलेपु: ॥५॥
किं वीक्षितो नो हृदयैकचोर: इत्यादि तास्त्वत्प्रवणा विलेपु: ॥५॥
हा चूत | O mango |
हा चम्पक | O champaka |
कर्णिकार | Karnikaara |
हा मल्लिके | O Mallika |
मालति | Maalati |
बालवल्य: | O tender creepers |
किं वीक्षित: | what has been seen (by you all) |
न:-हृदय-एक-चोर: | our hearts' the one stealer |
इति-आदि ता:- | thus etc they |
त्वत्-प्रवणा: | to Thee totally devoted |
विलेपु: | lamented |
" O mango, O champaka, O Karnikaar, O Mallika, O maalati, O tender
creepers! Did you see the one who has stolen our hearts?' Thus the
totally devoted ones asked the fruit and flower trees and lamented.
निरीक्षितोऽयं सखि पङ्कजाक्ष: पुरो ममेत्याकुलमालपन्ती ।
त्वां भावनाचक्षुषि वीक्ष्य काचित्तापं सखीनां द्विगुणीचकार ॥६॥
त्वां भावनाचक्षुषि वीक्ष्य काचित्तापं सखीनां द्विगुणीचकार ॥६॥
निरीक्षित:- | is seen |
अयं सखि | this, O friend |
पङ्कजाक्ष: | lotus eyed one (Krishna) |
पुर: मम-इति- | in front of me, thus |
आकुलम्- | excitedly |
आलपन्ती | saying |
त्वां | Thee |
भावना-चक्षुषि | (in) imaginative vision (eyes) |
वीक्ष्य काचित् | seeing, some (women) |
तापं सखीनां | sufferings of the friends |
द्विगुणी-चकार | double made |
O Friend! This lotus eyed Krishna, I see before me,' excitedly declared
one of the Gopikas, seeing Thee with her imaginative vision. This only
doubled the sufferings of her friends.
त्वदात्मिकास्ता यमुनातटान्ते तवानुचक्रु: किल चेष्टितानि ।
विचित्य भूयोऽपि तथैव मानात्त्वया विमुक्तां ददृशुश्च राधाम् ॥७॥
विचित्य भूयोऽपि तथैव मानात्त्वया विमुक्तां ददृशुश्च राधाम् ॥७॥
त्वत्-आत्मिका:-ता | with Thee identified, they |
यमुना-तट-अन्ते | on the banks of the Yamunaa |
तव-अनुचक्रु: | Thy imitated |
किल चेष्टितानि | indeed (Thy) deeds |
विचित्य | searching |
भूय:-अपि | all over again |
तथा-एव मानात्- | and also because of pride |
त्वया विमुक्तां | from Thee separated |
ददृशु:-च | (they) saw and |
राधाम् | Raadhaa |
They had completely identiied themselves with Thee. So, on the banks of
the Yamunaa river they enacted and imitated Thy deeds. They went about
searching for Thee all over again and they saw Raadhaa who was also
separated from Thee because of pride.
तत: समं ता विपिने समन्तात्तमोवतारावधि मार्गयन्त्य: ।
पुनर्विमिश्रा यमुनातटान्ते भृशं विलेपुश्च जगुर्गुणांस्ते ॥८॥
पुनर्विमिश्रा यमुनातटान्ते भृशं विलेपुश्च जगुर्गुणांस्ते ॥८॥
तत: समं ता: | then together all of them |
विपिने समन्तात्- | in the forest from end to end |
तमोवतार-अवधि | till the darkness descending |
मार्गयन्त्य: | searching |
पुन:-विमिश्रा | again coming together |
यमुना-तट-अन्ते | on the banks of the Yamunaa |
भृशं विलेपु:- | intensely lamented |
च जगु:- | and sang |
गुणान्-ते | Thy glories |
Together all of them went searching for Thee from end to end in the
forest till it was dark. Again coming together on the banks of Yamunaa,
they intensely lamented and spoke to each other about Thy glories and
excellences.
तथा व्यथासङ्कुलमानसानां व्रजाङ्गनानां करुणैकसिन्धो ।
जगत्त्रयीमोहनमोहनात्मा त्वं प्रादुरासीरयि मन्दहासी ॥९॥
जगत्त्रयीमोहनमोहनात्मा त्वं प्रादुरासीरयि मन्दहासी ॥९॥
तथा व्यथा-सङ्कुल- | thus pain overcome |
मानसानाम् | minded |
व्रजाङ्गनानाम् | of the Vraja women |
करुणैकसिन्धो | O Thou the ocean of mercy! |
जगत्-त्रयी-मोहन- | the infatuator of the three world's Cupid |
मोहन-आत्मा | (Thee) his captivator |
त्वं | Thee |
प्रादु:-आसी:- | appeared in front |
अयि | O Thou |
मन्दहासी | smiling softly |
O ocean of mercy! O charmer of Cupid who charms the three worlds! Thou
then appeared smiling softly in front of the Vraja women whose minds
were overcome by grief and pain.
सन्दिग्धसन्दर्शनमात्मकान्तं त्वां वीक्ष्य तन्व्य: सहसा तदानीम् ।
किं किं न चक्रु: प्रमदातिभारात् स त्वं गदात् पालय मारुतेश ॥१०॥
किं किं न चक्रु: प्रमदातिभारात् स त्वं गदात् पालय मारुतेश ॥१०॥
सन्दिग्ध- | doubtful of |
सन्दर्शनम्- | seeing (meeting) Thee |
आत्म-कान्तम् | their own beloved |
त्वां वीक्ष्य | Thee seeing |
तन्व्य: सहसा | the damsels suddenly |
तदानीम् | then |
किम् किम् | what what |
न चक्रु: | not did |
प्रमद-अति-भारात् | by intense joyful state |
स त्वम् | that such Thou |
गदात् पालय | from misery save me |
मारुतेश | O Lord of Guruvaayur |
The beautiful women who were doubtful of seeing Thee, when they suddenly
saw their own beloved in front, in what all ways did they not show
their intensity of joy? That Thou O Lord of Guruvaayur! Save me from
misery.
दशक ६७
स्फुरत्परानन्दरसात्मकेन त्वया समासादितभोगलीला: ।
असीममानन्दभरं प्रपन्ना महान्तमापुर्मदमम्बुजाक्ष्य: ॥१॥
असीममानन्दभरं प्रपन्ना महान्तमापुर्मदमम्बुजाक्ष्य: ॥१॥
स्फुरत्-परानन्द- | स्फुरणशील परमानन्द |
रसात्मकेन | रस रूप |
त्वया | आपके द्वारा |
समासादित- | आस्वादन करके |
भोगलीला: | रसमय क्रीडा का (वे गोपियां) |
असीमम्- | अद्वितीय |
आनन्दभरं | आनन्द समुद्र मे |
प्रपन्ना महान्तम्- | निमग्न महान |
आपु:-मदम्- | पा गईं दर्प को |
अम्बुज-आक्ष्य: | (वे) कमलनयनी |
स्फुरणशील परमानन्द के रस रूप आपके साथ रसमय क्रीडा का आस्वादन करके
कमलनयनी गोपिकाएं अवर्णनीय और अद्वितीय आनन्द समुद्र में निमग्न हो गईं।
फिर उनको अत्यधिक दर्प हो गया।
निलीयतेऽसौ मयि मय्यमायं रमापतिर्विश्वमनोभिराम: ।
इति स्म सर्वा: कलिताभिमाना निरीक्ष्य गोविन्द् तिरोहितोऽभू: ॥२॥
इति स्म सर्वा: कलिताभिमाना निरीक्ष्य गोविन्द् तिरोहितोऽभू: ॥२॥
निलीयते- | निमग्न हैं |
असौ मयि | यह मुझमें |
मयि-अमायं | मुझमें ही केवल |
रमापति:- | रमापति |
विश्व-मनोभिराम: | विश्व सम्मोहक |
इति स्म सर्वा: | इस प्रकार सभी |
कलिता-अभिमाना: | भरपूर अभिमान वाली |
निरीक्ष्य | (को) देख कर |
गोविन्द् | हे गोविन्द! (आप) |
तिरोहित:-अभू: | अदृश्य हो गए |
ये विश्व विमोहक रमापति मुझमें, केवल मुझमें ही अनुराग निमग्न हैं।'
गोपिकाओं को इस प्रकार अभिमान से पूरित देख कर, हे गोविन्द! आप अदृश्य हो
गए।
राधाभिधां तावदजातगर्वामतिप्रियां गोपवधूं मुरारे ।
भवानुपादाय गतो विदूरं तया सह स्वैरविहारकारी ॥३॥
भवानुपादाय गतो विदूरं तया सह स्वैरविहारकारी ॥३॥
राधा-अभिधां | राधा नाम वाली |
तावत् | तब तक |
अजात-गर्वाम्- | (जिसमे) नहीं पैदा हुआ था गर्व |
अति-प्रियां | अत्यन्त प्रिय |
गोपवधूम् | गोपिका को |
मुरारे | हे मुरारे! |
भवान्-उपादाय | आप उठा कर |
गत: विदूरं | ले गए दूर |
तया सह | उसके साथ |
स्वैर-विहार-कारी | स्वच्छन्द भाव क्रीडा रत |
हे मुरारे! राधा नामक आपकी अत्यन्त प्रिय गोपिका के मन में उस समय तक गर्व
पैदा नहीं हुआ था। आप उसको उठा कर दूर ले गए और उसके साथ स्वच्छन्दता से
क्रीडा रत हो गए।
तिरोहितेऽथ त्वयि जाततापा: समं समेता: कमलायताक्ष्य: ।
वने वने त्वां परिमार्गयन्त्यो विषादमापुर्भगवन्नपारम् ॥४॥
वने वने त्वां परिमार्गयन्त्यो विषादमापुर्भगवन्नपारम् ॥४॥
तिरोहिते- | अदृश्य हो जाने पर |
अथ त्वयि | तब फिर आपके |
जात-तापा: | संतप्त हुई |
समं समेता: | साथ में एकत्रित हो कर |
कमलायत-आक्ष्य: | कमलनयनी |
वने वने त्वां | वन वन में आपको |
परिमार्गयन्त्य: | खोजती हुई |
विषादम्-आपु:- | विषाद को प्राप्त हो गईं |
भगवन्- | हे भगवन! |
अपारम् | अनन्त |
हे भगवन! तब फिर, आपके अदृश्य हो जाने पर, वे कमलनयनी गोपिकाएं संतप्त हो
गईं और एक साथ एकत्रित हो कर प्रत्येक वन प्रान्त में आपको खोजने लगीं।
आपको न पा कर वे अपार विषाद ग्रस्त हो गईं।
हा चूत हा चम्पक कर्णिकार हा मल्लिके मालति बालवल्य: ।
किं वीक्षितो नो हृदयैकचोर: इत्यादि तास्त्वत्प्रवणा विलेपु: ॥५॥
किं वीक्षितो नो हृदयैकचोर: इत्यादि तास्त्वत्प्रवणा विलेपु: ॥५॥
हा चूत | हे आम्र! |
हा चम्पक | हे चम्पक! |
कर्णिकार | हा कर्णिकार (कनेर) |
हा मल्लिके | हे मल्लिका! |
मालति | मालति! |
बालवल्य: | हे कोमल लताओं! |
किं वीक्षित: | क्या देखा है |
न:-हृदय-एक-चोर: | हमारे हृदय के एकमात्र चोर को |
इति-आदि ता:- | इत्यादि वे |
त्वत्-प्रवणा: | आपकी प्रपन्नाएं |
विलेपु: | विलाप करने लगीं |
आपमें ही प्रपन्न चित्त वाली वे इस प्रकार प्रलाप करने लगीं, 'हे आम्र, हे
चम्पक, हे कनेर, हे मल्लिका हे मालति, हे कोमल लताओं, क्या तुमने हमारे
हृदय के एकमात्र चोर को देखा है?' इत्यादि।
निरीक्षितोऽयं सखि पङ्कजाक्ष: पुरो ममेत्याकुलमालपन्ती ।
त्वां भावनाचक्षुषि वीक्ष्य काचित्तापं सखीनां द्विगुणीचकार ॥६॥
त्वां भावनाचक्षुषि वीक्ष्य काचित्तापं सखीनां द्विगुणीचकार ॥६॥
निरीक्षित:- | देखा है |
अयं सखि | यह, हे सखि! (मैने) |
पङ्कजाक्ष: | कमलनयन को |
पुर: मम-इति- | सामने मेरे, इस प्रकार |
आकुलम्- | व्याकुल हुई |
आलपन्ती | प्रलाप करती हुई |
त्वां | आपको |
भावना-चक्षुषि | भावना के नेत्रों से |
वीक्ष्य काचित् | देख कर किसी (गोपी) ने |
तापं सखीनां | संताप को सखियों के |
द्विगुणी-चकार | द्विगुणित कर दिया |
किसी एक सखी ने भावना चक्षुओं से आपको देखा और अधीरता से व्याकुल हो कर
प्रलाप करने लगी, ' हे सखि! मैने अभी अभी सामने कमलनयन को देखा है।' यह सुन
कर और भी सखियों का संताप द्विगुणित हो गया।
त्वदात्मिकास्ता यमुनातटान्ते तवानुचक्रु: किल चेष्टितानि ।
विचित्य भूयोऽपि तथैव मानात्त्वया विमुक्तां ददृशुश्च राधाम् ॥७॥
विचित्य भूयोऽपि तथैव मानात्त्वया विमुक्तां ददृशुश्च राधाम् ॥७॥
त्वत्-आत्मिका:-ता | आपमे एकात्मक हुई वे |
यमुना-तट-अन्ते | यमुना के तट के अन्त में (जा कर) |
तव-अनुचक्रु: | आपका अनुकरण करने लगीं |
किल चेष्टितानि | निश्चय ही आपकी लीलाओं का |
विचित्य | खोजते हुए |
भूय:-अपि | फिर से आपको |
तथा-एव मानात्- | उसी प्रकार अभिमान से |
त्वया विमुक्तां | आपके द्वारा त्यक्ता को |
ददृशु:-च | देखा और |
राधाम् | राधा को |
आपके साथ एकात्म हुई वे गोपिकाएं यमुना के तटान्त पर एकत्रित हो कर आपकी ही
लीलाओं का अनुकरण करके फिर से आपको खोजने लगीं। तब उन्होंने एक जगह राधा
को देखा जो उसी प्रकार अभिमानवश आपके द्वारा त्याग दी गई थी।
तत: समं ता विपिने समन्तात्तमोवतारावधि मार्गयन्त्य: ।
पुनर्विमिश्रा यमुनातटान्ते भृशं विलेपुश्च जगुर्गुणांस्ते ॥८॥
पुनर्विमिश्रा यमुनातटान्ते भृशं विलेपुश्च जगुर्गुणांस्ते ॥८॥
तत: समं ता: | तदनन्तर एक साथ वे सब |
विपिने समन्तात्- | वन में एक ओर से दूसरी ओर तक |
तमोवतार-अवधि | अन्धकार घिर आने तक |
मार्गयन्त्य: | खोजती हुई |
पुन:-विमिश्रा | फिर से एकत्रित हो कर |
यमुना-तट-अन्ते | यमुना के तट के अन्त पर |
भृशं विलेपु:- | अत्यधिक विलाप करने लगीं |
च जगु:- | और गाने लगी |
गुणान्-ते | गुणों को आपके |
तदनन्तर, वे सब एक साथ वन में एक छोर से दूसरे छोर तक आपको तब तक खोजती
रहीं जब तक अन्धकार न घिर आया। वे फिर से यमुना के किनारे एकत्रित हो कर
तीव्र विलाप करती हुई आपके गुण गान करने लगीं।
तथा व्यथासङ्कुलमानसानां व्रजाङ्गनानां करुणैकसिन्धो ।
जगत्त्रयीमोहनमोहनात्मा त्वं प्रादुरासीरयि मन्दहासी ॥९॥
जगत्त्रयीमोहनमोहनात्मा त्वं प्रादुरासीरयि मन्दहासी ॥९॥
तथा व्यथा-सङ्कुल- | इस प्रकार व्यथा से अभिभूत |
मानसानाम् | मानस वाली |
व्रजाङ्गनानाम् | व्रजाङ्गनाओं के |
करुणैकसिन्धो | हे करुणासिन्धो! |
जगत्-त्रयी-मोहन- | हे त्रिजगत को मोहित करने वाले |
मोहन-आत्मा | मनमोहक स्वरूप वाले |
त्वं | आप |
प्रादु:-आसी:- | सामने प्रकट हुए |
अयि | अयि |
मन्दहासी | मन्द हास के सहित |
उन व्रजाङ्गनाओं के मानस व्यथा से अभिभूत हो कर, हे करुणासिन्धो! हे
त्रिजगत को मोहित करने वाले मनमोहन! मन्द हास के सहित आप उनके समक्ष प्रकट
हो गए।
सन्दिग्धसन्दर्शनमात्मकान्तं त्वां वीक्ष्य तन्व्य: सहसा तदानीम् ।
किं किं न चक्रु: प्रमदातिभारात् स त्वं गदात् पालय मारुतेश ॥१०॥
किं किं न चक्रु: प्रमदातिभारात् स त्वं गदात् पालय मारुतेश ॥१०॥
सन्दिग्ध- | सन्देह युक्त |
सन्दर्शनम्- | दर्शन के लिए |
आत्म-कान्तम् | अपने प्रिय का |
त्वां वीक्ष्य | (उन) आपको देख कर |
तन्व्य: सहसा | वए तन्वाङ्गी सहसा |
तदानीम् | उस समय |
किम् किम् | क्या क्या |
न चक्रु: | न करने लगीं |
प्रमद-अति-भारात् | प्रेम के अतिरेक के कारण |
स त्वम् | वही आप |
गदात् पालय | रोगों से पालन करें |
मारुतेश | हे मारुतेश! |
अपने प्रिय के दर्शन मे सन्देह युक्त उन तन्वङ्गियों जब ने सहसा आपको देखा
तब प्रेमानन्द के अतिरेक के कारण क्या क्या नहीं किया! वही आप, हे मारुतेश!
रोगों से मेरी रक्षा करें।
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