http://youtu.be/BaTQOoTmR2Q
Narayaneeyam - Dasakam 14 (The Kapila Incarnation)
==============
Dashaka 14
समनुस्मृततावकाङ्घ्रियुग्म:
स मनु: पङ्कजसम्भवाङ्गजन्मा ।
निजमन्तरमन्तरायहीनं
चरितं ते कथयन् सुखं निनाय ॥१॥
स मनु: पङ्कजसम्भवाङ्गजन्मा ।
निजमन्तरमन्तरायहीनं
चरितं ते कथयन् सुखं निनाय ॥१॥
समनुस्मृत-तावक-अङ्घ्रि-युग्म: | meditating properly on Thy pair of lotus feet |
स: मनु: | that Manu (Swayambhuva) |
पङ्कजसम्भव-अङ्ग-जन्मा | the son of Brahmaa |
निजम्-अन्तरम्- | his own Manvantara |
अन्तराय-हीनम् | free from all hindrances |
चरितम् ते कथयन् | recounting Thy glories |
सुखं निनाय | passed peacefully |
That Swayambhuva Manu, the son of Brahmaa, spent his own Manvantara
peacefully, free from all hindrances, meditating on Thy pair of lotus
feet and recounting Thy glories.
समये खलु तत्र कर्दमाख्यो
द्रुहिणच्छायभवस्तदीयवाचा ।
धृतसर्गरसो निसर्गरम्यं
भगवंस्त्वामयुतं समा: सिषेवे ॥२॥
द्रुहिणच्छायभवस्तदीयवाचा ।
धृतसर्गरसो निसर्गरम्यं
भगवंस्त्वामयुतं समा: सिषेवे ॥२॥
समये खलु तत्र | at that very time |
कर्दम-आख्य: | (the Prajaapati) named Kardama |
द्रुहिण-च्छाय-भव:- | born from the shadow of Brahmaa |
तदीय-वाचा | following his (Brahmaa's) words |
धृत-सर्ग-रस: | keenly interested in creation |
निसर्ग-रम्यं भगवन्-त्वाम्- | O Lord! Who are naturally charming |
अयुतम् समा: | for ten thousand years |
सिषेवे | worshipped (Thee) |
During that time the Prajaapati named Kardama who was born from the
shadow of Brahmaa, following his (Brahmaa's) words became keenly
interested in creation. He worshipped Thee who are naturally charming,
for ten thousand years.
गरुडोपरि कालमेघक्रमं
विलसत्केलिसरोजपाणिपद्मम् ।
हसितोल्लसिताननं विभो त्वं
वपुराविष्कुरुषे स्म कर्दमाय ॥३॥
विलसत्केलिसरोजपाणिपद्मम् ।
हसितोल्लसिताननं विभो त्वं
वपुराविष्कुरुषे स्म कर्दमाय ॥३॥
गरुड-उपरि | on Garuda |
काल-मेघ-क्रमम् | as beautiful as a dark rain-bearing cloud |
विलसत्-केलि-सरोज-पाणि-पद्मम् | holding in Thy hand a lustrous lotus |
हसित-उल्लासित-आननम् | (with Thy) face lit up with a smile |
विभो त्वं | O Lord! Thou |
वपु:-आविष्कुरुषे स्म | (Thy) form did manifest |
कर्दमाय | for Kardama |
O Lord! Thou manifested Thy form for Kardama, sitting on Garuda, as
beautiful as a dark rain-bearing cloud, holding a lustruous lotus in Thy
hand, with your face lit up with a smile.
स्तुवते पुलकावृताय तस्मै
मनुपुत्रीं दयितां नवापि पुत्री: ।
कपिलं च सुतं स्वमेव पश्चात्
स्वगतिं चाप्यनुगृह्य निर्गतोऽभू: ॥४॥
मनुपुत्रीं दयितां नवापि पुत्री: ।
कपिलं च सुतं स्वमेव पश्चात्
स्वगतिं चाप्यनुगृह्य निर्गतोऽभू: ॥४॥
स्तुवते पुलक-आवृताय तस्मै | with horripilation over his body, who was praising (Thee) to him |
मनुपुत्रीम् | the daughter of Manu (Devahooti) |
दयिताम् | as wife |
नव-अपि पुत्री: | also nine daughters |
कपिलं च सुतम् | and Kapil as son |
स्वम्-एव पश्चात् | Thyself finally |
स्वगतिं च-अपि-अनुगृह्य | and union with Thee also conferring |
निर्गत:-अभू: | Thou disappeared |
Kardama was praising Thee thrilled with devotion. Thou blessed that he
would have Manu's daughter Devahooti as wife. Thou also blessed that he
would have nine daughters, that Thou Thyself will be born as his son
Kapil and also that he (Kadarma) would finally attain union with Thee.
स मनु: शतरूपया महिष्या
गुणवत्या सुतया च देवहूत्या ।
भवदीरितनारदोपदिष्ट:
समगात् कर्दममागतिप्रतीक्षम् ॥५॥
गुणवत्या सुतया च देवहूत्या ।
भवदीरितनारदोपदिष्ट:
समगात् कर्दममागतिप्रतीक्षम् ॥५॥
स: मनु: | that Manu |
शतरूपया महिष्या | (along with) queen Shatarupaa |
गुणवत्या सुतया देवहूत्या च | and the virtuous daughter Devahooti |
भवत्-ईरित-नारद-उपदिष्ट: | advised by Naarada who was prompted by Thee |
समगात् कर्दमम्- | approached Kardama |
आगति-प्रतीक्षं | (who was) awaiting (their) arrival |
Manu along with his queen wife Shatarupa and the virtuous daughter
Devahooti, as advised by Naarada who was prompted by Thee, approached
Kardama who was awaiting their arrival.
मनुनोपहृतां च देवहूतिं
तरुणीरत्नमवाप्य कर्दमोऽसौ ।
भवदर्चननिवृतोऽपि तस्यां
दृढशुश्रूषणया दधौ प्रसादम् ॥६॥
तरुणीरत्नमवाप्य कर्दमोऽसौ ।
भवदर्चननिवृतोऽपि तस्यां
दृढशुश्रूषणया दधौ प्रसादम् ॥६॥
मनुना-उपहृताम् च | and given respectfully by Manu |
देवहूतिं तरुणी-रत्नम्- | Devahooti, a jewel among damsels |
अवाप्य कर्दम:-असौ | having got, that Kardama |
भवत्-अर्चन-निर्वृत:-अपि | though content with worshipping Thee, |
तस्यां दृढ-शुश्रूषणया | by her dedicated service |
दधौ प्रसादम् | (was) pleased with her |
Devahooti who was a gem among women was respectfully given by Manu to
Kardama. Kardama, though solely delighted in worshipping Thee, was
pleased with her by her dedicated service to him.
स पुनस्त्वदुपासनप्रभावा-
द्दयिताकामकृते कृते विमाने ।
वनिताकुलसङ्कुलो नवात्मा
व्यहरद्देवपथेषु देवहूत्या ॥७॥
द्दयिताकामकृते कृते विमाने ।
वनिताकुलसङ्कुलो नवात्मा
व्यहरद्देवपथेषु देवहूत्या ॥७॥
स: पुन;- | he (Kardama) |
त्वत्-उपासन-प्रभावात्- | because of the glory of Thy worship |
दयिता-काम-कृते | for fulfilling the desires of his loving wife |
कृते विमाने | in the aerial vehicle which was made |
वनिता-कुल-सङ्कुल: | full of female attendents |
नव-आत्मा | taking on a new body |
व्यहरत्-देवपथेषु | sported in the garden of the gods |
देवहूत्या | (with) Devahooti |
Thereafter Kardama by the glory of worshipping Thee, to fulfill the
desires of his loving wife, took on a new body, got an aerial vehicle
made, which was full of female attendents, and sported in the garden of
the gods along with Devahooti.
शतवर्षमथ व्यतीत्य सोऽयं
नव कन्या: समवाप्य धन्यरूपा: ।
वनयानसमुद्यतोऽपि कान्ता-
हितकृत्त्वज्जननोत्सुको न्यवात्सीत् ॥८॥
नव कन्या: समवाप्य धन्यरूपा: ।
वनयानसमुद्यतोऽपि कान्ता-
हितकृत्त्वज्जननोत्सुको न्यवात्सीत् ॥८॥
शत-वर्षम्-अथ व्यतीत्य | then after spending a hundred years |
स:-अयम् | that this (Kardama) |
नव कन्या: समवाप्य | nine daughters begetting |
धन्य-रूपा: | who were very beautiful |
वन-यान-समुद्यत:-अपि | though preparing to go to the forest |
कान्ता-हित-कृत्- | wishing to fulfill the desire of his wife (and) |
त्वत्-जनन-उत्सुक: | eager for Thy birth (as his son) |
न्यवात्सीत् | stayed on (at home) |
After spending a hundred years thus and begetting nine very beautiful
daughters, Kardama wanted to take up the ascetic life and retire to the
forest. Yeilding to his wife's wishes and eagerly awaiting Thy birth as
their son, he continued to stay on at home.
निजभर्तृगिरा भवन्निषेवा-
निरतायामथ देव देवहूत्याम् ।
कपिलस्त्वमजायथा जनानां
प्रथयिष्यन् परमात्मतत्त्वविद्याम् ॥९॥
निरतायामथ देव देवहूत्याम् ।
कपिलस्त्वमजायथा जनानां
प्रथयिष्यन् परमात्मतत्त्वविद्याम् ॥९॥
निज-भर्तृ-गिरा | at the words of her husband |
भवत्-निषेवा-निरतायाम्- | who was ever intent on Thy worship |
अथ देव | then, O Lord! |
देवहूत्याम् | to Devahooti |
कपिल-त्वम्-अजायथा | as Kapil Thou were born |
जनानाम् | amongst the people |
प्रथयिष्यन् | to proclaim |
परम-आत्म-तत्व-विद्याम् | the knowledge of the truth of the Supreme Being |
O Lord! To Devahooti who, on the advise of her husband was ever engaged
in worshipping Thee, Thou were born as Kapil in order to teach mankind
the means for the attainment of the Supreme Reality.
वनमेयुषि कर्दमे प्रसन्ने
मतसर्वस्वमुपादिशन् जनन्यै ।
कपिलात्मक वायुमन्दिरेश
त्वरितं त्वं परिपाहि मां गदौघात् ॥१०॥
मतसर्वस्वमुपादिशन् जनन्यै ।
कपिलात्मक वायुमन्दिरेश
त्वरितं त्वं परिपाहि मां गदौघात् ॥१०॥
वनम्-एयुषि कर्दमे प्रसन्ने | when Kardama left for the forest happily |
मत-सर्वस्वम्- | the entire philosophy (of Thine) |
उपादिशन् जनन्यै | (Thou) imparted to (Thy) mother |
कपिल-आत्मक | O Thou incarnate as Kapil! |
वायु-मन्दिर-ईश | O Lord of Guruvaayur! |
त्वरितम् | hastily |
त्वं परिपाहि | Thou relieve |
माम् गद-औघात् | me from my many misries |
O Lord of Guruvaayur! Who were incarnate as Kapil, when Kardama left for
the forest with a sense of fulfillment, Thou imparted the whole of Thy
philosophy to Thy mother. Deign to hastily save me from my many
ailments.
http://youtu.be/BaTQOoTmR2Q |
दशक १४
समनुस्मृततावकाङ्घ्रियुग्म:
स मनु: पङ्कजसम्भवाङ्गजन्मा । निजमन्तरमन्तरायहीनं चरितं ते कथयन् सुखं निनाय ॥१॥
उन मनु ने, जो कमलयोनि ब्रह्मा के अङ्ग से पैदा हुए थे, और आपके दोनों चरण
कमलों का ध्यान करते रहते थे, आपकी लीला कथाओं को कहते हुए, अपने विकारहीन
मन्वन्तर का सुख से वहन किया।
समये खलु तत्र कर्दमाख्यो
द्रुहिणच्छायभवस्तदीयवाचा । धृतसर्गरसो निसर्गरम्यं भगवंस्त्वामयुतं समा: सिषेवे ॥२॥
हे भगवन! उसी समय ब्रह्मा की छाया से उत्पन्न कर्दम नाम के ऋषि ब्रह्मा के
ही आदेश से, सृजन करने की इच्छा से, दस हजार वर्षों तक, स्वभावत: सुन्दर
आपकी ही तपस्या करते रहे।
गरुडोपरि कालमेघक्रमं
विलसत्केलिसरोजपाणिपद्मम् । हसितोल्लसिताननं विभो त्वं वपुराविष्कुरुषे स्म कर्दमाय ॥३॥
हे विभो! गरुड पर सवार, काले मेघों के समान श्याम, हस्तकमल में कोमल कमल
लिये हुए, मुस्कुराते हुए प्रफुल्ल मुख वाले आपने अपना अति शोभनीय विग्रह
कर्दम के लिये प्रकट किया।
स्तुवते पुलकावृताय तस्मै
मनुपुत्रीं दयितां नवापि पुत्री: । कपिलं च सुतं स्वमेव पश्चात् स्वगतिं चाप्यनुगृह्य निर्गतोऽभू: ॥४॥
रोमाञ्चित हुए स्तुति करते हुए हर्ष और रोमाञ्च से परिपूर्ण कर्दम को आपने
पत्नी रूप में मनु की पुत्री को दिया, नौ पुत्रियां और कपिल नामक पुत्र को
भी दिया। अन्त में आपने स्वयं को दे दिया और मोक्ष भी प्रदान कर के चले
गये।
स मनु: शतरूपया महिष्या
गुणवत्या सुतया च देवहूत्या । भवदीरितनारदोपदिष्ट: समगात् कर्दममागतिप्रतीक्षम् ॥५॥
वह मनु, अपनी रानी शतरूपा और गुणवती पुत्री देवहूति के साथ कर्दम के पास
गये जो उन्ही के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। आपकी प्रेरणा से नारद ने
उन्हे यह आदेश दिया था।
मनुनोपहृतां च देवहूतिं
तरुणीरत्नमवाप्य कर्दमोऽसौ । भवदर्चननिवृतोऽपि तस्यां दृढशुश्रूषणया दधौ प्रसादम् ॥६॥
मनु ने तरुणी रत्न देवहूति को कर्दम को उपहार में दे दिया। कर्दम निरन्तर
आपकी अर्चना में सन्लग्न रहते थे, फिर भी देवहुति की दृढ सेवा से वे
प्रसन्न हो गये।
स पुनस्त्वदुपासनप्रभावा-
द्दयिताकामकृते कृते विमाने । वनिताकुलसङ्कुलो नवात्मा व्यहरद्देवपथेषु देवहूत्या ॥७॥
तब उसने आपकी अर्चना के प्रभाव से और अपनी पत्नी की कामना की पूर्ति के
लिये एक विमान की रचना की। उस विमान में वनिताओं के समूह थे। कर्दम नया
स्वरूप धारण कर के उस विमान में देवहुति के संग देव उद्यानों में विचरने
लगे।
शतवर्षमथ व्यतीत्य सोऽयं
नव कन्या: समवाप्य धन्यरूपा: । वनयानसमुद्यतोऽपि कान्ता- हितकृत्त्वज्जननोत्सुको न्यवात्सीत् ॥८॥
इस प्रकार कर्दम ने सौ वर्ष व्यतीत कर दिये और उन्हे नौ रूपवती कन्याओं की
प्राप्ति हुई। फिर वन को जाने के लिये तत्पर होते हुए भी, पत्नी के हित के
लिये और आपके जन्म की उत्सुकता में वे घर में हीरुके रहे और वन नहीं गये।
निजभर्तृगिरा भवन्निषेवा-
निरतायामथ देव देवहूत्याम् । कपिलस्त्वमजायथा जनानां प्रथयिष्यन् परमात्मतत्त्वविद्याम् ॥९॥
अपने पति के कहने से देवहुति आपकी सेवा में संलग्न हो गई। तत्पश्चात हे
देव! आपने उसके गर्भ से कपिल के रूप में जन्म लिया। आपके इस अवतार का
उद्येश्य था कि लोगों में परम तत्व की विद्या प्रकट हो।
वनमेयुषि कर्दमे प्रसन्ने
मतसर्वस्वमुपादिशन् जनन्यै । कपिलात्मक वायुमन्दिरेश त्वरितं त्वं परिपाहि मां गदौघात् ॥१०॥
प्रसन्न चित्त कर्दम वन को चले गये। तब आपने अपनी माता को सम्पूर्ण
सिद्धान्तो का उपदेश दिया। हे कपिलात्मक वायु मन्दिर के ईश्वर! समस्त रोग
समूहों से मेरी शीघ्रता से रक्षा करें।
|
No comments:
Post a Comment