Narayaneeyam - Dasakam 57(Slaying of Pralambasurra)
https://youtu.be/zZIl4Kb20f8
https://youtu.be/vxpzImHv6XQ
Dashaka 57
रामसख: क्वापि दिने कामद भगवन् गतो भवान् विपिनम् ।
सूनुभिरपि गोपानां धेनुभिरभिसंवृतो लसद्वेष: ॥१॥
सूनुभिरपि गोपानां धेनुभिरभिसंवृतो लसद्वेष: ॥१॥
रामसख: | in Balaraama's company |
क्वापि दिने | one day |
कामद भगवन् | Thou the fulfiller of wishes, O Lord! |
गत: भवान् | went Thee |
विपिनम् | to the forest |
सूनुभि:-अपि | with the sons,also |
गोपानाम् | of the Gopas |
धेनुभि:-अभिसंवृत: | (and) by the cows surrounded |
लसत्-वेष: | in a bedecked attire |
O Lord! Thou the fulfiller of wishes, one day in a bedecked attire, with
Balaraama, went to the forest. The sons of the Gopas and the cows also
surrounded and followed Thee.
सन्दर्शयन् बलाय स्वैरं वृन्दावनश्रियं विमलाम् ।
काण्डीरै: सह बालैर्भाण्डीरकमागमो वटं क्रीडन् ॥२॥
काण्डीरै: सह बालैर्भाण्डीरकमागमो वटं क्रीडन् ॥२॥
सन्दर्शयन् | showing around |
बलाय स्वैरं | to Balaraama joyfully |
वृन्दावन-श्रियं | the beauty of Vrindaavana |
विमलाम् | (which was so) pure |
काण्डीरै: सह | with sricks (carrying) |
बालै:- | (with) the children (Thou reached) |
भाण्डीरकम्- | (the tree named) Bhaandeeraka |
आगम: | reached |
वटं क्रीडन् | the tree, playing |
Joyfully showing around the unspoilt pure beauty of Vrindaavana to
Balaraama, accompanied by the cowherd boys, carrying a staff in a
playful mood, Thou reached the banyan tree called Bhaandeeraka.
तावत्तावकनिधनस्पृहयालुर्गोपमूर्तिरदयालु: ।
दैत्य: प्रलम्बनामा प्रलम्बबाहुं भवन्तमापेदे ॥३॥
दैत्य: प्रलम्बनामा प्रलम्बबाहुं भवन्तमापेदे ॥३॥
तावत्- | then |
तावक-निधन- | Thy death |
स्पृहयालु:-गोपमूर्ति: | desiring, in the disguise of a Gopa |
अदयालु: दैत्य: | a pitiless demon |
प्रलम्ब-नामा | Pralamba named |
प्रलम्ब-बाहुं भवन्तम्- | the long armed Thee |
आपेदे | approached |
Then, the pitiless demon, approached Thee in the disguise of a Gopa, desiring to kill Thee, who are with long arms.
जानन्नप्यविजानन्निव तेन समं निबद्धसौहार्द: ।
वटनिकटे पटुपशुपव्याबद्धं द्वन्द्वयुद्धमारब्धा: ॥४॥
वटनिकटे पटुपशुपव्याबद्धं द्वन्द्वयुद्धमारब्धा: ॥४॥
जानन्-अपि | knowing though |
अविजानन्-इव | not knowing as though |
तेन समं | with him |
निबद्ध-सौहार्द: | cultivating friendship |
वट-निकटे | near the banayan tree |
पटु-पशुप- | by skilled cowherd boys |
व्याबद्धं | formed |
द्वन्द्व-युद्धम्- | wrestling |
आरब्धा: | started (Thee) |
In spite of knowing fully well of his intention, seemingly unaware of
his designs, Thou cultivated friendship with him. Then near the banyan
tree, arranging the game of wrestling with the cowherd boys who were
skilled in that art, Thou started a duel.
गोपान् विभज्य तन्वन् सङ्घं बलभद्रकं भवत्कमपि ।
त्वद्बलभीरुं दैत्यं त्वद्बलगतमन्वमन्यथा भगवन् ॥५॥
त्वद्बलभीरुं दैत्यं त्वद्बलगतमन्वमन्यथा भगवन् ॥५॥
गोपान् विभज्य | the cowherd boys dividing |
तन्वन् सङ्घं | into two teams |
बलभद्रकं | of Balaraama |
भवत्कम्-अपि | and of Thee also |
त्वत्-बल-भीरुं | Thy strength afraid of |
दैत्यं | the demon |
त्वद्-बल-गतम्- | in Thy team joining |
अन्वमन्यथा | (Thou) agreed |
भगवन् | O Lord! |
O Lord! Thou divided the cowherd boys into two teams led by Balaraama
and Thyself. The Asura was aware of Thy strength and being afraid wanted
to join Thy team, to which Thou agreed.
कल्पितविजेतृवहने समरे परयूथगं स्वदयिततरम् ।
श्रीदामानमधत्था: पराजितो भक्तदासतां प्रथयन् ॥६॥
श्रीदामानमधत्था: पराजितो भक्तदासतां प्रथयन् ॥६॥
कल्पित- | as per rules (arranged) |
विजेतृ-वहने | the victorious be carried |
समरे परयूथगं | in the fight, by one of the other team |
स्वदयिततरम् | very dear to Thee |
श्रीदामानम्- | Shridaamaa |
अधत्था: पराजित: | Thou carried, (Thou) being defeated |
भक्त-दासतां | (Thou) as a servant of Thy devotees |
प्रथयन् | estabilishing /demonstrating |
As per the rules of the game, as was arranged, the victor is to be
carried by the vanquished. Thou being defeated, Thou carried the very
dear friend Shreedaamaa, there by demonstrating to the world that Thou
are at the service of Thy devotees.
एवं बहुषु विभूमन् बालेषु वहत्सु वाह्यमानेषु ।
रामविजित: प्रलम्बो जहार तं दूरतो भवद्भीत्या ॥७॥
रामविजित: प्रलम्बो जहार तं दूरतो भवद्भीत्या ॥७॥
एवं बहुषु | thus in many |
विभूमन् | O Infinite One! |
बालेषु वहत्सु | when the children were carrying |
वाह्यमानेषु | and were being carried |
राम-विजित: | by Balaraama defeated |
प्रलम्ब: जहार तं | Pralamba (the demon), took him |
दूरत: भवत्-भीत्या | far away for Thy fear |
Thus the many cowherd boys were carrying and were being carried. In the
course, Pralamba was defeated by Balaraama and so he carried Balaraama
far away from Thy sight out of fear of Thee.
त्वद्दूरं गमयन्तं तं दृष्ट्वा हलिनि विहितगरिमभरे ।
दैत्य: स्वरूपमागाद्यद्रूपात् स हि बलोऽपि चकितोऽभूत् ॥८॥
दैत्य: स्वरूपमागाद्यद्रूपात् स हि बलोऽपि चकितोऽभूत् ॥८॥
त्वत्-दूरं गमयन्तम् | from Thee far going |
तं दृष्ट्वा हलिनि | seeing him when Balaraama |
विहित-गरिम-भरे | took on increased weight |
दैत्य: स्वरूपम्- | the demon to his own form |
आगात्-यत्-रूपात् | went to by which form |
स हि बल:-अपि | he indeed Balaraama also |
चकित:-अभूत् | wonderstruck became |
Balaraama saw that he was being carried far away, so he increased his
weight by his divine power. The demon then took to his own real form,
seeing which even Balaraam was wonderstruck.
उच्चतया दैत्यतनोस्त्वन्मुखमालोक्य दूरतो राम: ।
विगतभयो दृढमुष्ट्या भृशदुष्टं सपदि पिष्टवानेनम् ॥९॥
विगतभयो दृढमुष्ट्या भृशदुष्टं सपदि पिष्टवानेनम् ॥९॥
उच्चतया दैत्य-तनो:- | because of the height of the Asura's body |
त्वत्-मुखम्- | Thy face |
आलोक्य | seeing |
दूरत: राम: | from a distance, Balaraam |
विगत-भय: | overcoming the fear |
दृढ-मुष्ट्या | by a fierce fist |
भृश-दुष्टम् सपदि | the extremely wicked (him), quickly |
पिष्ट्वान् एनम् | crushed him |
The Asura's height was great and so being carried on his shoulder,
Balaraam could see Thee from a distance. At Thy sight Balaraam shunned
all fear and with a firm fist struck the demon and quickly crushed him
to a pulp.
हत्वा दानववीरं प्राप्तं बलमालिलिङ्गिथ प्रेम्णा ।
तावन्मिलतोर्युवयो: शिरसि कृता पुष्पवृष्टिरमरगणै: ॥१०॥
तावन्मिलतोर्युवयो: शिरसि कृता पुष्पवृष्टिरमरगणै: ॥१०॥
हत्वा दानव-वीरं | killing the clever Asura |
प्राप्तं बलम्- | returned Balaraam |
आलिलिङ्गिथ | (Thou) embraced |
प्रेम्णा तावत- | lovingly, at that time |
मिलतो:-युवयो: | when Thou two were meeting |
शिरसि कृता | on Thy heads was done |
पुष्पवृष्टि:- | flower showering |
अमर-गणै: | by the gods/ devas |
Balaraama returned after killing the clever Asura and Thou embraced him
lovingly. As Thou two were meeting the gods and devas showered flowers
on Thy heads.
आलम्बो भुवनानां प्रालम्बं निधनमेवमारचयन् ।
कालं विहाय सद्यो लोलम्बरुचे हरे हरे: क्लेशान् ॥११॥
कालं विहाय सद्यो लोलम्बरुचे हरे हरे: क्लेशान् ॥११॥
आलम्ब: भुवनानां | the support of the worlds |
प्रालम्बं निधनम्- | Pralambaasura's killing |
एवम्-आरचयन् | carrying out |
कालं विहाय | without delay |
सद्य: | quickly |
लोलम्बरुचे | a black bee like splenderous |
हरे | O Hari |
हरे: | eradicate |
क्लेशान् | my sufferings |
O Hari! Thou who has the splendour of a black bee, who are the support
of the worlds, Thou who carried out the distruction of Pralambaasura,
without delay, quickly eradicate my sufferings.
दशक ५७
रामसख: क्वापि दिने कामद भगवन् गतो भवान् विपिनम् ।
सूनुभिरपि गोपानां धेनुभिरभिसंवृतो लसद्वेष: ॥१॥
सूनुभिरपि गोपानां धेनुभिरभिसंवृतो लसद्वेष: ॥१॥
रामसख: | बलराम के साथ |
क्वापि दिने | किसी एक दिन |
कामद भगवन् | कामनाओं के दाता भगवन! |
गत: भवान् | गये आप |
विपिनम् | वन को |
सूनुभि:-अपि | पुत्रों के साथ भी |
गोपानाम् | गोपों के |
धेनुभि:-अभिसंवृत: | गौओं से घिरे हुए |
लसत्-वेष: | सुसज्जित वेश में |
कामनाओं के दाता हे भगवन! किसी एक दिन आप बलराम और गोप बालकों के साथ सुसज्जित वेश में वन गये।
सन्दर्शयन् बलाय स्वैरं वृन्दावनश्रियं विमलाम् ।
काण्डीरै: सह बालैर्भाण्डीरकमागमो वटं क्रीडन् ॥२॥
काण्डीरै: सह बालैर्भाण्डीरकमागमो वटं क्रीडन् ॥२॥
सन्दर्शयन् | दिखाते हुए |
बलाय स्वैरं | बलराम को स्वच्छन्दता से |
वृन्दावन-श्रियं | वृन्दावन की शोभा |
विमलाम् | निर्मल |
काण्डीरै: सह | लकडी लिये हुए |
बालै:- | बालकों के साथ |
भाण्डीरकम्- | भाण्डीरक के |
आगम: | पास आये |
वटं क्रीडन् | पेड के खेलते हुए |
बलराम को वृन्दावन की निर्मल शोभ भली भांति दिखाते हुए, बालकों के साथ
स्वच्छन्दता से खेलते हुए, हाथ में लकडी लिये हुए आप भाण्डीरक तरु के समीप
आए।
तावत्तावकनिधनस्पृहयालुर्गोपमूर्तिरदयालु: ।
दैत्य: प्रलम्बनामा प्रलम्बबाहुं भवन्तमापेदे ॥३॥
दैत्य: प्रलम्बनामा प्रलम्बबाहुं भवन्तमापेदे ॥३॥
तावत्- | तब |
तावक-निधन- | आपकी मृत्यु |
स्पृहयालु:-गोपमूर्ति: | चाहने वाला गोप के वेश में |
अदयालु: दैत्य: | निर्दयी दैत्य |
प्रलम्ब-नामा | प्रलम्ब नाम का |
प्रलम्ब-बाहुं भवन्तम्- | विशाल बाहुओं वाले आपके |
आपेदे | निकट आया |
उस समय, गोप के वेष में प्रलम्ब नाम का निर्दयी दैत्य, विशाल बाहुओं वाले आपको मारने की इच्छा से आपके निकट आया।
जानन्नप्यविजानन्निव तेन समं निबद्धसौहार्द: ।
वटनिकटे पटुपशुपव्याबद्धं द्वन्द्वयुद्धमारब्धा: ॥४॥
वटनिकटे पटुपशुपव्याबद्धं द्वन्द्वयुद्धमारब्धा: ॥४॥
जानन्-अपि | जानते हुए भी |
अविजानन्-इव | अनजान के समान |
तेन समं | उसके साथ |
निबद्ध-सौहार्द: | करके मित्रता |
वट-निकटे | पेड के पास |
पटु-पशुप- | चतुर गोपालकों से |
व्याबद्धं | निश्चित करवाया |
द्वन्द्व-युद्धम्- | द्वन्द्व युद्ध |
आरब्धा: | (और) उसे आरम्भ करवाया |
यह जानते हुए भी कि वह दैत्य है, आपने अनजान की भांति व्यवहार कर के उसके
साथ मित्रता की। फिर वट वृक्ष के पास जा कर, द्वन्द्व युद्ध में चतुर
गोपालकों के साथ निश्वय करके द्वन्द्व युद्ध प्रारम्भ करवाया।
गोपान् विभज्य तन्वन् सङ्घं बलभद्रकं भवत्कमपि ।
त्वद्बलभीरुं दैत्यं त्वद्बलगतमन्वमन्यथा भगवन् ॥५॥
त्वद्बलभीरुं दैत्यं त्वद्बलगतमन्वमन्यथा भगवन् ॥५॥
गोपान् विभज्य | गोपों का विभाजन करके |
तन्वन् सङ्घं | बना कर दल |
बलभद्रकं | बलराम का (दल) |
भवत्कम्-अपि | और आपका भी (दल) |
त्वत्-बल-भीरुं | आपके बल से भयभीत |
दैत्यं | दैत्य |
त्वद्-बल-गतम्- | आप ही के दल में आ गया |
अन्वमन्यथा | आपने स्वीकार कर लिया |
भगवन् | हे भगवन! |
गोपबालकों को आपने दो दलों में विभजित कर दिया, एक दल बलराम का और एक आपका।
दैत्य प्रलम्बासुर ने आपके बल से भयभीत हो कर आपके ही दल में आना चाहा।
आपने उसे स्वीकार कर लिया।
कल्पितविजेतृवहने समरे परयूथगं स्वदयिततरम् ।
श्रीदामानमधत्था: पराजितो भक्तदासतां प्रथयन् ॥६॥
श्रीदामानमधत्था: पराजितो भक्तदासतां प्रथयन् ॥६॥
कल्पित- | बनाए हुए (नियमों) के अनुसार |
विजेतृ-वहने | विजयी को उठा कर ले जाने में |
समरे परयूथगं | युद्ध में, अन्य दल के |
स्वदयिततरम् | आपके प्रियतम (मित्र) |
श्रीदामानम्- | श्रीदामा को |
अधत्था: पराजित: | उठाया पराजित हुए आपने |
भक्त-दासतां | भक्तों (के प्रति) दासता को |
प्रथयन् | प्रदर्शित करते हुए |
द्वन्द्व युद्ध के परिकल्पित नियमों के अनुसार पराजित दल को विजयी दल के
द्वारा उठा कर ले जाना निर्धारित हुआ। तदनुसार आपने पराजित हुए अपने प्रिय
मित्र श्रीदामा का वहन किया, मानों भक्तों के प्रति अपनी दासता का प्रदर्शन
करते हुए।
एवं बहुषु विभूमन् बालेषु वहत्सु वाह्यमानेषु ।
रामविजित: प्रलम्बो जहार तं दूरतो भवद्भीत्या ॥७॥
रामविजित: प्रलम्बो जहार तं दूरतो भवद्भीत्या ॥७॥
एवं बहुषु | इस प्रकार |
विभूमन् | हे विभूमन! |
बालेषु वहत्सु | बालकों के परस्पर उठाते हुए |
वाह्यमानेषु | (और) उठाये जाते हुए |
राम-विजित: | बलराम विजित को |
प्रलम्ब: जहार तं | प्रलम्ब ले गया उसको |
दूरत: भवत्-भीत्या | दूर आपके डर से |
हे विभूमन! बालक परस्पर उठा रहे थे और उठाये जा रहे थे। पराजित बलराम को उठा कर प्रलम्बासुर आपके भय से दूर ले गया।
त्वद्दूरं गमयन्तं तं दृष्ट्वा हलिनि विहितगरिमभरे ।
दैत्य: स्वरूपमागाद्यद्रूपात् स हि बलोऽपि चकितोऽभूत् ॥८॥
दैत्य: स्वरूपमागाद्यद्रूपात् स हि बलोऽपि चकितोऽभूत् ॥८॥
त्वत्-दूरं गमयन्तम् | आपसे दूर जाते हुए |
तं दृष्ट्वा हलिनि | उसको देख कर |
विहित-गरिम-भरे | बढा लेने पर वजन (अपना) |
दैत्य: स्वरूपम्- | दैत्य अपने स्वरूप में |
आगात्-यत्-रूपात् | आ गया जिस रूप से |
स हि बल:-अपि | वह बलराम भी |
चकित:-अभूत् | चकित हो गया |
जब बलराम ने देखा कि प्रलम्बासुर उन्हें आपसे दूर ले जा रहा है तब उन्होंने
अपना वजन बढा दिया। इससे वह असुर भी अपने स्वरूप में आ गया। उसके उस
स्वरूप को देख कर बलराम भी चकित रह गये।
उच्चतया दैत्यतनोस्त्वन्मुखमालोक्य दूरतो राम: ।
विगतभयो दृढमुष्ट्या भृशदुष्टं सपदि पिष्टवानेनम् ॥९॥
विगतभयो दृढमुष्ट्या भृशदुष्टं सपदि पिष्टवानेनम् ॥९॥
उच्चतया दैत्य-तनो:- | असुर के ऊंचे शरीर के कारण |
त्वत्-मुखम्- | आपके मुख को |
आलोक्य | देख कर |
दूरत: राम: | दूर से ही बलराम ने |
विगत-भय: | भयरहित हो कर |
दृढ-मुष्ट्या | दृढ मुष्टि (प्रहार से) |
भृश-दुष्टम् सपदि | (उस) अत्यन्त क्रूर को शीघ्र ही |
पिष्ट्वान् एनम् | पीस डाला उसको |
असुर के ऊंची देह पर स्थित बलराम ने आपके मुख को देखा। तुरन्त ही भय रहित
हो कर दृढ मुष्टि प्रहार से उन्होंने उस अत्यन्त क्रूर दैत्य को शीघ्र ही
पीस डाला।
हत्वा दानववीरं प्राप्तं बलमालिलिङ्गिथ प्रेम्णा ।
तावन्मिलतोर्युवयो: शिरसि कृता पुष्पवृष्टिरमरगणै: ॥१०॥
तावन्मिलतोर्युवयो: शिरसि कृता पुष्पवृष्टिरमरगणै: ॥१०॥
हत्वा दानव-वीरं | मार कर दानव वीर को |
प्राप्तं बलम्- | आये हुए बलराम का |
आलिलिङ्गिथ | आलिङ्गन किया |
प्रेम्णा तावत- | प्रेम से जब |
मिलतो:-युवयो: | मिलते हुए आप दोनों के |
शिरसि कृता | शिरों पर की |
पुष्पवृष्टि:- | पुष्प वृष्टि |
अमर-गणै: | देव गण ने |
जब बलराम दानववीर को मार कर आये तब आपने उनका आलिङ्गन किया। आप दोनों के उस मिलन के समय देवताओं ने आपके शिरों पर पुष्प वृष्टि की।
आलम्बो भुवनानां प्रालम्बं निधनमेवमारचयन् ।
कालं विहाय सद्यो लोलम्बरुचे हरे हरे: क्लेशान् ॥११॥
कालं विहाय सद्यो लोलम्बरुचे हरे हरे: क्लेशान् ॥११॥
आलम्ब: भुवनानां | आधार भूत भुवनों के |
प्रालम्बं निधनम्- | प्रलम्बासुर की मृत्यु |
एवम्-आरचयन् | इस प्रकार रचने वाले |
कालं विहाय | समय छोड कर |
सद्य: | शीघ्र |
लोलम्बरुचे | भंवरे के समान सुन्दर |
हरे | हे हरे! |
हरे: | हर लें |
क्लेशान् | कष्टों को |
भुवन त्रय के आधार भूत आपने इस विधि से प्रलम्बासुर की मृत्यु का विधान
रचा। विलम्ब न कर के, हे भंवरे के समान सुन्दर हरे! शीघ्र ही मेरे कष्टों
को हर लीजिये।
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