Narayaneeyam - Dasakam 44 (Naming Ceremony)
https://youtu.be/b9ugvwEYQsw
http://youtu.be/6jGbbMr7Hb4
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Dashaka 44
गूढं वसुदेवगिरा कर्तुं ते निष्क्रियस्य संस्कारान् ।
हृद्गतहोरातत्त्वो गर्गमुनिस्त्वत् गृहं विभो गतवान् ॥१॥
हृद्गतहोरातत्त्वो गर्गमुनिस्त्वत् गृहं विभो गतवान् ॥१॥
गूढम् | secretly (said) |
वसुदेव-गिरा | the words of Vasudeva (directed by that) |
कर्तुम् ते | to do (perform) Thy |
निष्क्रियस्य | who are above all rites and rituals |
संस्कारान् | (Thy) sacraments |
हृद्-गत-होरा-तत्व: | an expert in astrology |
गर्ग-मुनि: | Garga Muni |
त्वत्-गृहम् | to Thy house |
विभो | O Lord! |
गतवान् | went |
O All pervading Lord! Thou are above and beyond all ceremonies and
rites. Yet, Garga Muni an expert at astronomy and astrology, went to Thy
house at the secret request of Vasudeva, to perform sacraments for
Thee.
नन्दोऽथ नन्दितात्मा वृन्दिष्टं मानयन्नमुं यमिनाम् ।
मन्दस्मितार्द्रमूचे त्वत्संस्कारान् विधातुमुत्सुकधी: ॥२॥
मन्दस्मितार्द्रमूचे त्वत्संस्कारान् विधातुमुत्सुकधी: ॥२॥
नन्द:-अथ | Nanda, then |
नन्दित-आत्मा | delightfully |
वृन्दिष्टम् | the greatest of all |
मानयन्-अमुम् | honouring, this (Garga Muni) |
यमिनाम् | (greatest) of all the sages |
मन्द्-स्मित-आर्द्रम्-ऊचे | with a gentle smile said (requested) |
त्वत्-संस्कारन् | sacraments for Thee |
विधातुम्-उत्सुक-धी: | to perform (who) was eager |
Nanda was very delighted and he honoured the greatest of all the sages
Garga Muni, who was eager to perform the sacraments for Thee. He then,
with a gentle smile requested the sage to perform the rites.
यदुवंशाचार्यत्वात् सुनिभृतमिदमार्य कार्यमिति कथयन् ।
गर्गो निर्गतपुलकश्चक्रे तव साग्रजस्य नामानि ॥३॥
गर्गो निर्गतपुलकश्चक्रे तव साग्रजस्य नामानि ॥३॥
यदुवंश- | of the Yadu clan |
आचार्यत्वात् | being the priest |
सुनिभृतम्-इदम्- | very secretly this |
आर्य कार्यम्-इति | O Respected One (Nanda), should be done, thus |
कथयन् गर्ग: | saying, sage Garga |
निर्गत-पुलक:- | with horippillation |
चक्रे तव | performed, Thy with Thy elder brother's |
साग्रजस्य नामानि | naming (ceremony) |
Sage Garga said,'O Respected Nanda, since I am the priest of the Yadu
clan, this ceremony must be performed in great secrecy'. Saying so, with
horripillations over his body he performed the naming ceremony of Thee
and Thy elder brother.
कथमस्य नाम कुर्वे सहस्रनाम्नो ह्यनन्तनाम्नो वा ।
इति नूनं गर्गमुनिश्चक्रे तव नाम नाम रहसि विभो ॥४॥
इति नूनं गर्गमुनिश्चक्रे तव नाम नाम रहसि विभो ॥४॥
कथम्-अस्य | how, for this (child) |
नाम कुर्वे | naming should I do |
सहस्र-नाम्न: हि- | (who) having a thousand names indeed |
अनन्त-नाम्न: वा | or rather having endless names |
इति नूनं | thus surely (thinking) |
गर्ग-मुनि:- | Garga Muni |
चक्रे तव नाम | performed Thy naming |
नाम रहसि | in great secrecy |
विभो | O Lord! |
How should I do the naming of this child? He indeed has thousands of
names or rather endless names. O Lord! May be that sage Garga thinking
like this, performed Thy naming in great secrecy.
कृषिधातुणकाराभ्यां सत्तानन्दात्मतां किलाभिलपत् ।
जगदघकर्षित्वं वा कथयदृषि: कृष्णनाम ते व्यतनोत् ॥५॥
जगदघकर्षित्वं वा कथयदृषि: कृष्णनाम ते व्यतनोत् ॥५॥
कृषि-धातु- | Krish, the root (verb) |
ण-काराभ्याम् | and with N suffix (by putting the two together) |
सत्ता-आनन्द-आत्मताम् | Existence Bliss (being Thy) real nature |
किल-अभिलपत् | indeed denoting |
जगत्-अघ-कर्षित्वं वा | or of (the people of) the world, the sins, drawing away |
कथयत्-ऋषि: | declaring, the sage |
कृष्ण-नाम ते | the name Krishna to Thee |
व्यतनोत् | gave |
The putting together of the root of the verb Krish and the suffix N,
denoting the combining of Existence and absolute Bliss, which is Thy
real nature, declaring, the sage gave Thee the name Krishna. Also
signifying the drawing away of the sins of the people of the world, the
name Krishna was given to Thee.
अन्यांश्च नामभेदान् व्याकुर्वन्नग्रजे च रामादीन् ।
अतिमानुषानुभावं न्यगदत्त्वामप्रकाशयन् पित्रे ॥६॥
अतिमानुषानुभावं न्यगदत्त्वामप्रकाशयन् पित्रे ॥६॥
अन्यान्-च नाम-भेदान् | and other different names |
व्याकुर्वन्- | giving (like Vaasudeva) |
अग्रजे च राम-आदीन् | and to Thy elder brother Raama etc (calling thus) |
अतिमानुष-अनुभावं | (of a) superhuman disposition |
न्यगदत्- | told (indicated) |
त्वाम्-अप्रकाशयन् | Thee not revealing |
पित्रे | to (Thy) father |
The sage also gave Thee other different names like Vaasudeva. Then he
gave the name Raama etc to Thy elder brother. Having done so, Garg Muni
indicated to Thy having superhuman powers and disposition, to Thy
father. Yet he did not fully reveal Thy real identity as Lord Himself.
स्निह्यति यस्तव पुत्रे मुह्यति स न मायिकै: पुन: शोकै: ।
द्रुह्यति य: स तु नश्येदित्यवदत्ते महत्त्वमृषिवर्य: ॥७॥
द्रुह्यति य: स तु नश्येदित्यवदत्ते महत्त्वमृषिवर्य: ॥७॥
स्निह्यति य:-तव पुत्रे | whoever loves your son |
मुह्यति स न मायिकै: | he will not be deluded by Maayaa |
पुन: शोकै: | (and) again by sorrows |
द्रुह्यति य: | he who goes against him |
स तु नश्येत्- | he certainly will be destroyed |
इति-अवदत्- | thus said |
ते महत्त्वम्- | Thy glory |
ऋषिवर्य: | the great sage |
Who so ever loves your son will not be deluded by Maayaa and so will not
be overcome by sorrows thereafter. And who so ever assails him will
certainly perish.' Thus the great sage described Thy glory and
greatness.
जेष्यति बहुतरदैत्यान् नेष्यति निजबन्धुलोकममलपदम् ।
श्रोष्यसि सुविमलकीर्तीरस्येति भवद्विभूतिमृषिरूचे ॥८॥
श्रोष्यसि सुविमलकीर्तीरस्येति भवद्विभूतिमृषिरूचे ॥८॥
जेष्यति बहुतर-दैत्यान् | will conquer many Asuras |
नेष्यति निजबन्धु-लोकम्- | will take his own people |
अमल-पदम् | to the pure realm |
श्रोष्यसि | will make you hear |
सुविमल-कीर्ती:-अस्य- | very pure fame, his |
इति भवत्-विभूतिम्- | thus Thy greatness |
ऋषि:-ऊचे | the sage spoke |
He will conquer many Asuras and will take his own people to the realms
of purity. You will have occassions to hear of his untainted pure fame.'
Thus the sage spoke of Thy greatness.
अमुनैव सर्वदुर्गं तरितास्थ कृतास्थमत्र तिष्ठध्वम् ।
हरिरेवेत्यनभिलपन्नित्यादि त्वामवर्णयत् स मुनि: ॥९॥
हरिरेवेत्यनभिलपन्नित्यादि त्वामवर्णयत् स मुनि: ॥९॥
अमुना-एव | by him alone |
सर्व-दुर्गम् तरितास्थ | all obstacles (you) will cross |
कृत-आस्थम्-अत्र | placing your faith here |
तिष्ठध्वम् | remain |
हरि:-एव-इति- | Hari only is this |
अनभिलपन्- | not saying |
इत्यादि | in this manner |
त्वाम्-अवर्णयत् | Thee described |
स मुनि: | that sage |
By his help alone you will be able to overcome all obstacles. Remain
with your full faith placed in him.' Thus without saying that Thou were
Hari, the sage thus described Thee.
गर्गेऽथ निर्गतेऽस्मिन् नन्दितनन्दादिनन्द्यमानस्त्वम् ।
मद्गदमुद्गतकरुणो निर्गमय श्रीमरुत्पुराधीश ॥१०॥
मद्गदमुद्गतकरुणो निर्गमय श्रीमरुत्पुराधीश ॥१०॥
गर्गे-अथ | then Garg Muni |
निर्गते-अस्मिन् | having left, he, |
नन्दित-नन्द-आदि- | delighted Nanda and others |
नन्द्यमान:-त्वम् | endeared Thou |
मत्-गदम्- | my ailments |
उद्गत-करुण: | (Thou) full of compassion |
निर्गमय | remove |
श्रीमरुत्पुराधीश | O Lord of Guruvaayur! |
Then Garga Muni went away. Nanda and the others were very delighted and
looked after Thee endearingly. O Lord of Guruvaayur! who are full of
compassion, remove my ailments.
दशक ४४
गूढं वसुदेवगिरा कर्तुं ते निष्क्रियस्य संस्कारान् ।
हृद्गतहोरातत्त्वो गर्गमुनिस्त्वत् गृहं विभो गतवान् ॥१॥
हे विभो! वसुदेव के कहने से, गर्ग मुनि, जिनको होरा तत्व (ज्योतिष और खगोल
शास्त्र) का गूढ ज्ञान था, गुप्त रूप से, आपके नामकरण आदि संस्कार सम्पन्न
करने आपके घर गये। यद्यपि आप इन सब से परे हैं, निष्क्रिय हैं।
नन्दोऽथ नन्दितात्मा वृन्दिष्टं मानयन्नमुं यमिनाम् ।
मन्दस्मितार्द्रमूचे त्वत्संस्कारान् विधातुमुत्सुकधी: ॥२॥
नन्द ने हर्षित मन से मुनियों में श्रेष्ठतम गर्ग मुनि को देख कर उनका
सादर सम्मान किया। फिर मुस्कुराते हुए आर्द्र वाणी में आपके संस्कार करने
के लिये उत्सुक मुनि को आपके संस्कार करने के लिये कहा।
यदुवंशाचार्यत्वात् सुनिभृतमिदमार्य कार्यमिति कथयन् ।
गर्गो निर्गतपुलकश्चक्रे तव साग्रजस्य नामानि ॥३॥
गर्गाचार्य ने कहा कि, ' हे आर्य! युदुवंश का आचार्य होने के कारण मुझे यह
कार्य अत्यन्त गुप्त रूप से करना होगा।' इस प्रकार कहते हुए पुलकित और
रोमाञ्चित होते हुए उन्हों ने आपके अग्रज और आपका नाम करण किया।
कथमस्य नाम कुर्वे सहस्रनाम्नो ह्यनन्तनाम्नो वा ।
इति नूनं गर्गमुनिश्चक्रे तव नाम नाम रहसि विभो ॥४॥
गर्ग मुनि सोचने लगे कि 'इनके तो सहस्रों अथवा अनन्त नाम हैं। इनका किस
प्रकार नामकरण करूं?' हे विभो! फिर उन्होंने अत्यन्त रहस्य पूर्वक आपका
नामकरण किया।
कृषिधातुणकाराभ्यां सत्तानन्दात्मतां किलाभिलपत् ।
जगदघकर्षित्वं वा कथयदृषि: कृष्णनाम ते व्यतनोत् ॥५॥
कृषि' धातु (क्रिया), सत्ता द्योतक है और 'ण' कार आनन्द द्योतक है। ये
दोनों आपके ही रूप हैं। दोनों के योग से बने शब्द से 'जगत के पापों का
कर्षण करने वाले, इङ्गित होता है। अतएव ऋषिवर ने आपका नाम 'कृष्ण' रख
दिया।
अन्यांश्च नामभेदान् व्याकुर्वन्नग्रजे च रामादीन् ।
अतिमानुषानुभावं न्यगदत्त्वामप्रकाशयन् पित्रे ॥६॥
मुनि ने अन्यान और भी नामों की व्याख्या की तथा आपके बडे भाई का नाम 'राम'
आदि रखा। फिर आपके पिता के सामने आपके ब्रह्म स्वरूप को अप्रकाशित रखते हुए
आपके अलौकिक व्यक्तित्व की ओर संकेत किया।
स्निह्यति यस्तव पुत्रे मुह्यति स न मायिकै: पुन: शोकै: ।
द्रुह्यति य: स तु नश्येदित्यवदत्ते महत्त्वमृषिवर्य: ॥७॥
ऋषिवर ने आपकी महानता को दर्शाते हुए कहा कि, 'जो आपके पुत्र से स्नेह
करेगा वह माया जनित शोकों से मोहित नहीं होगा। लेकिन जो द्रोह करेगा वह तो
नष्ट ही हो जायगा।'
जेष्यति बहुतरदैत्यान् नेष्यति निजबन्धुलोकममलपदम् ।
श्रोष्यसि सुविमलकीर्तीरस्येति भवद्विभूतिमृषिरूचे ॥८॥
यह बहुत से असुरों को जीतेगा, एवं अपने बन्धु गणों को अमल पद की प्राप्ति
करवायेगा। इसकी अत्यन्त विमल कीर्ति सुनाई देगी', इस प्रकार ऋषि ने आपके
ऐश्वर्य का वर्णन किया।
अमुनैव सर्वदुर्गं तरितास्थ कृतास्थमत्र तिष्ठध्वम् ।
हरिरेवेत्यनभिलपन्नित्यादि त्वामवर्णयत् स मुनि: ॥९॥
इसी पुत्र के द्वारा आप लोग सभी संकटों से पार हो जायेंगे। इसमें आस्था
बनाए रखिये।' इस प्रकार मुनि ने 'यह हरि ही है' ऐसा न कहते हुए भी आपकी
महिमा का वर्णन किया।
गर्गेऽथ निर्गतेऽस्मिन् नन्दितनन्दादिनन्द्यमानस्त्वम् ।
मद्गदमुद्गतकरुणो निर्गमय श्रीमरुत्पुराधीश ॥१०॥
गर्ग मुनि के चले जाने पर आनन्द विभोर नन्द आदि ने आपका खूब लाड प्यार
किया। उद्दाम करुणा वाले, हे श्री मरुत्पुराधीश! मेरे कष्टों का निराकरण
कीजिये।
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