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Sunday, September 18, 2016

Narayaneeyam - Dasakam 60 (Stealing the clothes)

Narayaneeyam - Dasakam 60 (Stealing the clothes)

 https://youtu.be/0jjV8Wd2DW4

 

http://youtu.be/EOR3iAPp_lw

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Dashaka 60
मदनातुरचेतसोऽन्वहं भवदङ्घ्रिद्वयदास्यकाम्यया ।
यमुनातटसीम्नि सैकतीं तरलाक्ष्यो गिरिजां समार्चिचन् ॥१॥
मदन-आतुर-चेतस:- with minds overcome by the god of love
अन्वहं everyday
भवत्-अङ्घ्रि-द्वय- Thy two feet
दास्य-काम्यया to serve desiring
यमुना-तट-सीम्नि on the Yamunaa banks nearby
सैकतीं made of sand (an image)
तरल-आक्ष्य: the beautiful eyed ones (girls)
गिरिजां the godess Kaatyaayini
समार्चिचन् worshipped
The beautiful eyed girls of Vraja, overcome by Cupid and love for Thee were desirous of serving Thy two lotus feet. To achieve this, everyday, on the banks of Yamunaa, they made an image of sand of goddess Girijaa and worshipped it.
तव नामकथारता: समं सुदृश: प्रातरुपागता नदीम् ।
उपहारशतैरपूजयन् दयितो नन्दसुतो भवेदिति ॥२॥
तव Thy
नाम-कथा-रता: name and deeds always immersed in
समं सुदृश: (they) all beautiful eyed (girls)
प्रात:-उपागता in the morning reaching
नदीम् the river
उपहार्-शतै:- with hundreds of offerings
अपूजयन् worshipping (prayed)
दयित: नन्दसुत: (that) husband, the son of Nanda
भवेत्-इति may become, thus
All the beautiful girls were always immersed in chanting Thy name and narrating Thy deeds. In the morning they would go to the river and worship goddess Girijaa with hundreds of offerings and pray to her that Nanda's son, Krishna, may become their husband.
इति मासमुपाहितव्रतास्तरलाक्षीरभिवीक्ष्य ता भवान् ।
करुणामृदुलो नदीतटं समयासीत्तदनुग्रहेच्छया ॥३॥
इति मासम्- thus for one month
उपाहित-व्रता:- having performed the vows
तरलाक्षी:- the beautiful eyed (girls)
अभिवीक्ष्य ता: seeing them
भवान् Thou
करुणा-मृदुल: by compassion moved
नदीतटं समयासीत्- to the river bank went
तत्-अनुग्रह- to bless them
इच्छया desiring
Thou were moved by compassion when Thou saw that the beautiful eyed girls had performed the vows for a month. With a desire to bless them Thou went to the river bank.
नियमावसितौ निजाम्बरं तटसीमन्यवमुच्य तास्तदा ।
यमुनाजलखेलनाकुला: पुरतस्त्वामवलोक्य लज्जिता: ॥४॥
नियम-अवसितौ vows/observances being completed
निज-अम्बरं their cloathes
तट-सीमनि- on the river bank
अवमुच्य ता:- leaving they
तदा यमुना-जल- then in the Yamunaa waters
खेलन-आकुला: to sport eager
पुरत:-त्वाम्- in front Thee
अवलोक्य seeing
लज्जिता: felt ashamed
The observances of the vows being completed, they eagerly went to sport in the Yamunaa waters, leaving their robes behind, on the bank. Seeing Thee in front, they felt very ashamed.
त्रपया नमिताननास्वथो वनितास्वम्बरजालमन्तिके ।
निहितं परिगृह्य भूरुहो विटपं त्वं तरसाऽधिरूढवान् ॥५॥
त्रपया out of shame
नमित-आननासु- with hung heads
अथ: वनितासु- then (when) the girls
अम्बर-जालम्- the heap of cloathes
अन्तिके निहितं near by kept
परिगृह्य taking away
भूरुह: विटपम् a tree's branch
त्वं तरसा- Thou quickly
अधिरूढवान् climbed up
The girls stood with their heads hung in shame. Thou took away the heap of their cloathes lying near by and quickly climbed up the branch of a tree.
इह तावदुपेत्य नीयतां वसनं व: सुदृशो यथायथम् ।
इति नर्ममृदुस्मिते त्वयि ब्रुवति व्यामुमुहे वधूजनै: ॥६॥
इह तावत्- here then
उपेत्य नीयतां coming take
वसनं व: clothes you people
सुदृश: O beautiful eyed ones
यथायथम् इति each her own, thus
नर्म-मृदु-स्मिते (with) a soft sweet smile
त्वयि ब्रुवति (when) Thou said
व्यमुमुहे they were confused
वधूजनै: the girls
Come here, O beautiful eyed ones! Take each one of you your clothes,' Thou said with a soft sweet smile. The girls were confused when they were asked to do so.
अयि जीव चिरं किशोर नस्तव दासीरवशीकरोषि किम् ।
प्रदिशाम्बरमम्बुजेक्षणेत्युदितस्त्वं स्मितमेव दत्तवान् ॥७॥
अयि जीव चिरं O may you live long
किशोर dear boy
न:-तव दासी:- we (are) Thy servants
अवशी-करोषि किम् teasing us why
प्रदिश-अम्बरम्- give the clothes
अम्बुजेक्षण- O Lotus eyed one!
इति-उदित:- thus being told
त्वं स्मितम्-एव Thou smile only
दत्तवान् gave
O dear boy! May you live long. We are your hand maids. Why do you tease us thus? O Lotus eyed one! Give us our clothes.' Thus being told, Thou merely gave a smile.
अधिरुह्य तटं कृताञ्जली: परिशुद्धा: स्वगतीर्निरीक्ष्य ता: ।
वसनान्यखिलान्यनुग्रहं पुनरेवं गिरमप्यदा मुदा ॥८॥
अधिरुह्य तटं climbing up the bank
कृताञ्जली: with joined palms
परिशुद्धा: purified (at heart)
स्वगती:- (in Thee) as the sole resort
निरीक्ष्य ता: seeing, them (as such)
वसनानि- clothes
अखिलानि- all
अनुग्रहं blessings
पुन:-एवं again also
गिरम्-अपि- words (promise) also
अदा मुदा gave (to them) with joy
Thou saw that the girls had come up the bank with joined palms, that they were purified at heart and that they had surrendered to Thee as their sole resort.Thou with joy gave them back all their clothes and also words of promise as blessings.
विदितं ननु वो मनीषितं वदितारस्त्विह योग्यमुत्तरम् ।
यमुनापुलिने सचन्द्रिका: क्षणदा इत्यबलास्त्वमूचिवान् ॥९॥
विदितं ननु known indeed
व: मनीषितं (is) your desire
वदितार:- (I) will respond
तु-इह surely here
योग्यम्-उत्तरम् proper (befitting) answer
यमुना-पुलिने on the Yamunaa banks
सचन्द्रिका: (in) moon lit
क्षणदा: इति- nights, thus
अबला:- to the girls
त्वम्-ऊचिवान् Thou said
Known indeed is your desire to me. I will surely give a proper response, in the moon lit nights on the sand banks of Yamunaa.' Thus Thou said to the girls.
उपकर्ण्य भवन्मुखच्युतं मधुनिष्यन्दि वचो मृगीदृश: ।
प्रणयादयि वीक्ष्य वीक्ष्य ते वदनाब्जं शनकैर्गृहं गता: ॥१०॥
उपकर्ण्य hearing
भवत्-मुख-च्युतं from Thy mouth flowing
मधु-निष्यन्दि वच: honey dripping words
मृगीदृश: the doe-eyed (girls)
प्रणयात्-अयि with love, O Lord!
वीक्ष्य वीक्ष्य seeing again and again
ते वदन्-आब्जं Thy lotus face
शनकै:-गृहं गता: slowly home went
O Lord! The doe eyed girls heard Thy honey dripping words flowing from Thy mouth. Looking with love at Thy lotus face again and again they slowly went home.
इति नन्वनुगृह्य वल्लवीर्विपिनान्तेषु पुरेव सञ्चरन् ।
करुणाशिशिरो हरे हर त्वरया मे सकलामयावलिम् ॥११॥
इति ननु- thus indeed
अनुगृह्य blessing
वल्लवी:- the Gopikaas
विपिन-अन्तेषु in the forests
पुरा-इव सञ्चरन् before like moving about
करुणाशिशिर: O Compassionate and cool
हरे O Hari!
हर त्वरया put an end to, soon
मे सकल- my all
आमयावलिम् host of ailments
Thus Thou blessed the Gopikaas and continued to roam the woods as before. O Hari! With Thy such cooling compassion, quickly put an end to all my hosts of ailments.


दशक ६०
मदनातुरचेतसोऽन्वहं भवदङ्घ्रिद्वयदास्यकाम्यया ।
यमुनातटसीम्नि सैकतीं तरलाक्ष्यो गिरिजां समार्चिचन् ॥१॥
मदन-आतुर-चेतस:- प्रेमातुर चित्त वाली
अन्वहं प्रतिदिन
भवत्-अङ्घ्रि-द्वय- आपके चरण द्वय की
दास्य-काम्यया दासता की कामना से
यमुना-तट-सीम्नि यमुना के किनारे के पास
सैकतीं बालू मयी
तरल-आक्ष्य: चञ्चल नेत्रों वाली
गिरिजां गिरिजा (कात्यायनी) की
समार्चिचन् पूजा करती थी
चञ्चल नेत्रों और प्रेमातुर चित्त वाली गोपयुवतियां, आपके चरणद्वय की दासता की कामना से, प्रतिदिन, यमुना के किनारे निर्मित गिरिजा (कात्यायनी) की मृण्मयी प्रतिमा की पूजा करती थीं।
तव नामकथारता: समं सुदृश: प्रातरुपागता नदीम् ।
उपहारशतैरपूजयन् दयितो नन्दसुतो भवेदिति ॥२॥
तव आपके
नाम-कथा-रता: नाम और आपकी कथाओं मे डूबी हुई
समं सुदृश: साथ में (वे) सुन्दर नेत्रों वाली
प्रात:-उपागता प्रात:काल में आ कर
नदीम् नदी पर
उपहार्-शतै:- उपहार सैंकडों से
अपूजयन् पूजा करते हुए
दयित: नन्दसुत: पति नन्द के पुत्र
भवेत्-इति हों इस प्रकार (प्रार्थना करती थीं)
आपके ही नाम और आप ही की कथाओं में परस्पर व्यस्त वे सुलोचनाएं, प्रात:काल नदी पर आ कर सैंकडों उपहारों के साथ कात्यायनी देवी की पूजा करती और प्रार्थना करती कि 'नन्दनन्दन कृष्ण उनके पति हों'।
इति मासमुपाहितव्रतास्तरलाक्षीरभिवीक्ष्य ता भवान् ।
करुणामृदुलो नदीतटं समयासीत्तदनुग्रहेच्छया ॥३॥
इति मासम्- ऐसे एक मास तक
उपाहित-व्रता:- पालन कर के व्रत का
तरलाक्षी:- (वे) चञ्चल नेत्रों वाली
अभिवीक्ष्य ता: देख कर उनको
भवान् आप
करुणा-मृदुल: करुणा से द्रवित हो कर
नदीतटं समयासीत्- नदी के तट पर गये
तत्-अनुग्रह- उन पर अनुग्रह (करने की)
इच्छया इच्छा से
इस प्रकार उन चञ्चल नयनों वाली गोपिकाओं ने एक मास तक व्रत का पालन किया। उन को देख कर, करुणा से द्रवित हो कर उन पर अनुग्रह करने की इच्छा से आप नदी के तट पर गए।
नियमावसितौ निजाम्बरं तटसीमन्यवमुच्य तास्तदा ।
यमुनाजलखेलनाकुला: पुरतस्त्वामवलोक्य लज्जिता: ॥४॥
नियम-अवसितौ (व्रत के) नियमों के समाप्त होने पर
निज-अम्बरं अपने वस्त्र
तट-सीमनि- तट के किनारे
अवमुच्य ता:- रख कर वे
तदा यमुना-जल- तब यमुना जल में
खेलन-आकुला: क्रीडा करने के लिये उत्सुक
पुरत:-त्वाम्- सामने आपको
अवलोक्य देख कर
लज्जिता: लज्जित हो गईं
व्रत के नियम समाप्त होने पर यमुना के जल में कीडा करने को उत्सुक उन गोपिकाओं ने अपने वस्त्र यमुना के तट पर छोड दिये। आपको सामने देख कर वे लज्जित हो गईं।
त्रपया नमिताननास्वथो वनितास्वम्बरजालमन्तिके ।
निहितं परिगृह्य भूरुहो विटपं त्वं तरसाऽधिरूढवान् ॥५॥
त्रपया लज्जा से
नमित-आननासु- झुके हुए मुख
अथ: वनितासु- तब युवतियों के होने पर
अम्बर-जालम्- वस्त्रों के समूह को
अन्तिके निहितं (जो) पास मे रखे हुए थे
परिगृह्य उठा कर
भूरुह: विटपम् वृक्ष की डाली पर
त्वं तरसा- आप वेग से
अधिरूढवान् चढ गए
उन युवतियों के मुख लज्जा से झुक गए। तब निकट ही रखे हुए वस्त्रों के ढेर को उठा कर आप वेग से वृक्ष की डाल पर चढ गए।
इह तावदुपेत्य नीयतां वसनं व: सुदृशो यथायथम् ।
इति नर्ममृदुस्मिते त्वयि ब्रुवति व्यामुमुहे वधूजनै: ॥६॥
इह तावत्- यहां तब
उपेत्य नीयतां आ कर ले लें
वसनं व: वस्त्र आप सब
सुदृश: सुनयनी
यथायथम् इति जो जिसका है इस प्रकार
नर्म-मृदु-स्मिते कोमल मधुर हास के साथ
त्वयि ब्रुवति आपके कहने पर
व्यमुमुहे विमोहित हो गईं
वधूजनै: गोपिकाएं
कोमल मधुर हास के साथ फिर आपने कहा, 'हे सुनयनी बालाओं! आप सब यहां आ कर जो जिसका वस्त्र है, ले लेवें।' यह सुन कर गोपिकाएं विमोहित हो गईं।
अयि जीव चिरं किशोर नस्तव दासीरवशीकरोषि किम् ।
प्रदिशाम्बरमम्बुजेक्षणेत्युदितस्त्वं स्मितमेव दत्तवान् ॥७॥
अयि जीव चिरं अयि जीओ चिरकाल तक
किशोर हे नन्दकिशोर
न:-तव दासी:- हम आपकी दासी हैं
अवशी-करोषि किम् विवश करते हैं क्यों
प्रदिश-अम्बरम्- दे देवें वस्त्र
अम्बुजेक्षण- हे कमलनयन
इति-उदित:- इस प्रकार कहने पर
त्वं स्मितम्-एव आपने मुस्कान ही
दत्तवान् दी
हे नन्द किशोर! आप चिरञ्जीवी हों! हे कमलनयन! हम आपकी दासी हैं , हमें विवश क्यों करते हैं, हमारे वस्त्र दे दीजिये।' इस प्रकार उनके कहने पर आप केवल मुस्कुरा दिये।
अधिरुह्य तटं कृताञ्जली: परिशुद्धा: स्वगतीर्निरीक्ष्य ता: ।
वसनान्यखिलान्यनुग्रहं पुनरेवं गिरमप्यदा मुदा ॥८॥
अधिरुह्य तटं (जल से) चढ कर तट पर
कृताञ्जली: हाथ जोडे हुए
परिशुद्धा: निर्मल (मन वाली)
स्वगती:- आप ही एकमात्र गति (आश्रय वाली)
निरीक्ष्य ता: देख कर उनको
वसनानि- वस्त्र
अखिलानि- समस्त
अनुग्रहं अनुग्रह
पुन:-एवं फिर और
गिरम्-अपि- वचन भी
अदा मुदा दिये प्रसन्नता से
यह देख कर कि वे जल से निकल कर किनारे पर आ गई हैं, और उन निर्मल मन वाली गोपिकाओं के एकमात्र आश्रय आप ही हैं, आपने उनके समस्त वस्त्र दे दिये और फिर उन पर अनुग्रह करते हुए प्रसन्नता पूर्वक कुछ वचन भी दिये।
विदितं ननु वो मनीषितं वदितारस्त्विह योग्यमुत्तरम् ।
यमुनापुलिने सचन्द्रिका: क्षणदा इत्यबलास्त्वमूचिवान् ॥९॥
विदितं ननु ज्ञात है निश्चय ही
व: मनीषितं आप लोगों का मनोरथ
वदितार:- प्रत्युत्तर में
तु-इह तो यहां
योग्यम्-उत्तरम् योग्य उत्तर
यमुना-पुलिने यमुना के तट पर
सचन्द्रिका: चन्द्रिका युक्त
क्षणदा: इति- रात्रि में इस प्रकार
अबला:- अबलाओं को
त्वम्-ऊचिवान् आपने कहा
आपने उन अबलाओं को कहा 'नि:सन्देह आप सभी का मनोरथ मुझे ज्ञात है। इसके प्रत्युत्तर में मैं यहां यमुना तट पर, चन्द्रिका युक्त रात्रि में योग्य उत्तर दूंगा।'
उपकर्ण्य भवन्मुखच्युतं मधुनिष्यन्दि वचो मृगीदृश: ।
प्रणयादयि वीक्ष्य वीक्ष्य ते वदनाब्जं शनकैर्गृहं गता: ॥१०॥
उपकर्ण्य सुन कर
भवत्-मुख-च्युतं आपके मुख से निकले हुए
मधु-निष्यन्दि वच: मधु झरते हुए वचनों को
मृगीदृश: वे मृगनयनी
प्रणयात्-अयि प्रेम से अयि!
वीक्ष्य वीक्ष्य देखते देखते
ते वदन्-आब्जं आपके मुखारविन्द को
शनकै:-गृहं गता: शनै: शनै: घर को गईं
हे प्रभो! आपके मुख से निकले हुए इन मधु झरते वचनों को सुन कर वे मृगनयनी युवतियां प्रेम से आपके मुखारविन्द को देखते देखते धीरे धीरे घर चली गईं।
इति नन्वनुगृह्य वल्लवीर्विपिनान्तेषु पुरेव सञ्चरन् ।
करुणाशिशिरो हरे हर त्वरया मे सकलामयावलिम् ॥११॥
इति ननु- इस प्रकार से ही
अनुगृह्य अनुग्रह करके
वल्लवी:- गोपिकाओं पर
विपिन-अन्तेषु वन के अन्त में
पुरा-इव सञ्चरन् पहले की ही भांति विचरण करते रहे
करुणाशिशिर: करुणा से शीतल
हरे हे हरे!
हर त्वरया हर लीजिये जल्दी से
मे सकल- मेरे सभी
आमयावलिम् कष्ट समूहों को
गोपिकाओं पर इस प्रकार अनुग्रह कर के पहले की ही भांति आप वनान्तों में विचरते रहे। करुणा से शीतल, हे हरे! आप मेरे समस्त कष्टों को शीघ्र ही हर लीजिये।

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