Narayaneeyam - Dasakam 40
(Salvation of Putana)
https://youtu.be/iniz4Yyr9i4
https://youtu.be/HdFbWS0pbDE
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Dashaka 40
तदनु नन्दममन्दशुभास्पदं नृपपुरीं करदानकृते गतम्।
समवलोक्य जगाद भवत्पिता विदितकंससहायजनोद्यम: ॥१॥
समवलोक्य जगाद भवत्पिता विदितकंससहायजनोद्यम: ॥१॥
तदनु नन्दम्- | after that to Nanda |
अमन्द-शुभ-आस्पदम् | (who is) of non dimmed virtues the abode |
नृप-पुरीम् | to the king's city |
कर-दान-कृते गतम् | to pay his tributes (taxes), who had gone |
समवलोक्य | seeing (meeting) |
जगाद भवत्-पिता | said (to Nanda), Thy father (Vasudeva) |
विदित-कंस- | who knew of Kansa's |
सहायजन-उद्यम: | and Kansa's supporters' activities |
Thereafter, Nanda (who is the abode of undiminished virtues), went to
the king's city to pay his tributes (taxes). On meeting him, Thy father
Vasudeva who knew of the activities of Kansa and his supporters, told
him that.
अयि सखे तव बालकजन्म मां सुखयतेऽद्य निजात्मजजन्मवत् ।
इति भवत्पितृतां व्रजनायके समधिरोप्य शशंस तमादरात् ॥२॥
इति भवत्पितृतां व्रजनायके समधिरोप्य शशंस तमादरात् ॥२॥
अयि सखे | O friend! |
तव बालक जन्म | to you a son's birth |
मां-सुखयते-अद्य | gives me pleasure now |
निज-आत्मज-जन्मवत् | my own son's birth like |
इति भवत्-पितृतां | thus Thy fatherhood |
व्रजनायके समधिरोप्य | to the cowherd chief, (he cleverly) attributed |
शशंस तम्-आदरात् | and praised him with affection |
"O Friend! The birth of a son to you gives me pleasure as if a son were
born to myself." Thus he cleverly attributed Thy fatherhood on Nanda,
and praised him with affection.
इह च सन्त्यनिमित्तशतानि ते कटकसीम्नि ततो लघु गम्यताम् ।
इति च तद्वचसा व्रजनायको भवदपायभिया द्रुतमाययौ ॥३॥
इति च तद्वचसा व्रजनायको भवदपायभिया द्रुतमाययौ ॥३॥
इह च सन्ति- | and here there are |
अनिमित्त-शतानि | bad omens in hundreds |
ते कटक-सीम्नि | at your residence |
तत: लघु गम्यताम् | therefore soon (you) should go |
इति च तत्-वचसा | and thus, by his (Vaudeva's) words |
व्रजनायक: | the cowherd chieftan (Nandagopa) |
भवत्-अपाय-भिया | to Thee danger apprehending |
द्रुतम्-आययौ | quickly returned |
"Here there are bad omens in hundreds and soon at your residence also it
will not be safe, so you should return soon". Thus by Vasudeva's words,
apprehending danger to Thee, Nanda quickly returned.
अवसरे खलु तत्र च काचन व्रजपदे मधुराकृतिरङ्गना ।
तरलषट्पदलालितकुन्तला कपटपोतक ते निकटं गता ॥४॥
तरलषट्पदलालितकुन्तला कपटपोतक ते निकटं गता ॥४॥
अवसरे खलु तत्र च | at that time, indeed, and there |
काचन व्रजपदे | some (female) in Gokula |
मधुर-आकृति:-अङ्गना | beautiful looking woman |
तरल-षट्पद- | (with) hovering bees |
लालित-कुन्तला | around (her) locks of hair (due to the sweet smell) |
कपट-पोतक | (O Thou) in the guise of a child! |
ते निकटं गता | went near Thee |
Just then there in Gokula, some beautiful looking woman with honey bees
hovering around the sweet smelling flowers in her hair locks, entered. O
Thou! In the guise of a child, she approached Thee.
सपदि सा हृतबालकचेतना निशिचरान्वयजा किल पूतना ।
व्रजवधूष्विह केयमिति क्षणं विमृशतीषु भवन्तमुपाददे ॥५॥
व्रजवधूष्विह केयमिति क्षणं विमृशतीषु भवन्तमुपाददे ॥५॥
सपदि सा | quickly she |
हृत-बालक-चेतना | who had taken the childres' lives |
निशिचर-अन्वय-जा | of demon clan born |
किल पूतना | indeed Pootanaa |
व्रज-वधूषु-इह | among the Vraja women here |
का-इयम्-इति | who is this, thus |
क्षणं विमृशतीषु | for a moment wondering |
भवन्तम्-उपाददे | Thee lifted up (in her arms) |
Quickly she, Pootanaa, born in the clan of demons, who had taken the
lives of many children, lifted Thee up, even as the Vraja women were for
a second wondering as to who she was.
ललितभावविलासहृतात्मभिर्युवतिभि : प्रतिरोद्धुमपारिता ।
स्तनमसौ भवनान्तनिषेदुषी प्रददुषी भवते कपटात्मने ॥५॥
स्तनमसौ भवनान्तनिषेदुषी प्रददुषी भवते कपटात्मने ॥५॥
ललित-भाव-विलास- | by her charming appearance and graceful movements |
हृत-आत्मभि:-युवतिभि: | with captivated minds, the young women |
प्रतिरोद्धुम्-अपारिता | to deter (stop) not being able |
स्तनम्-असौ | her breasts this (Pootanaa) |
भवन-अन्त-निषेदुषी | inside the house sitting |
प्रददुषी भवते | gave (her breasts) to Thee |
कपट-आत्मने | the illusive child |
Her charming appearance and graceful movements captivated the minds of
the Gopis who were unable to stop her from making advances. So this
Pootanaa took her seat inside the house as she applied Thee, the
illusive child, to her breasts.
समधिरुह्य तदङ्कमशङ्कितस्त्वमथ बालकलोपनरोषित: ।
महदिवाम्रफलं कुचमण्डलं प्रतिचुचूषिथ दुर्विषदूषितम् ॥७॥
महदिवाम्रफलं कुचमण्डलं प्रतिचुचूषिथ दुर्विषदूषितम् ॥७॥
समधिरुह्य तत्-अङ्कम्- | climbing in her lap |
अशङ्कित:-त्वम्-अथ | unhesitatingly Thou then |
बालक-लोपन-रोषित: | by the chilrens' killing angered |
महत्-इव-आम्र-फलम् | huge, as if it were a mango fruit |
कुच-मण्डलं प्रति-चुचूषिथ | the breast, sucked well |
दुर्विष-दूषितम् | with strong poison smeared |
Thou who were angered by her killing of the children, unhesitatingly
climbed in her lap and sucked well her poison smeared breasts as if it
were a huge mango fruit.
असुभिरेव समं धयति त्वयि स्तनमसौ स्तनितोपमनिस्वना ।
निरपतद्भयदायि निजं वपु: प्रतिगता प्रविसार्य भुजावुभौ ॥८॥
निरपतद्भयदायि निजं वपु: प्रतिगता प्रविसार्य भुजावुभौ ॥८॥
असुभि:-एव समम् | her life breath along with |
धयति त्वयि स्तनम्- | sucking (when) Thou were the breast |
असौ स्तनित-उपम-निस्वना | this Pootanaa, with thunder like noise |
निरपतत्- | fell down |
भयदायि निजं वपु: | ferocious her own body |
प्रतिगता | reverting to |
प्रविसार्य भुजौ-उभौ | out streching both the hands |
Thou sucked the breast along with her life force. This Pootanaa fell
down with a thunder like noise reverting to her natural ferocious body
with both hands streching out.
भयदघोषणभीषणविग्रहश्रवणदर्शनमो हितवल्लवे ।
व्रजपदे तदुर:स्थलखेलनं ननु भवन्तमगृह्णत गोपिका: ।।९॥
व्रजपदे तदुर:स्थलखेलनं ननु भवन्तमगृह्णत गोपिका: ।।९॥
भयद-घोषण- | the trrifying sound |
भीषण-विग्रह- | and the frightful form |
श्रवण-दर्शन- | hearing and seeing |
मोहित-वल्लवे | (which) stunned the gopas |
व्रजपदे | and (the whole of) Gokul |
तत्-उदर:-स्थल- | on her chest |
खेलनं ननु | playing indeed |
भवन्तम्-अगृह्णत | Thee picked up |
गोपिका: | the Gopis |
The whole of Gokul stood stunned hearing the terrifying sound and seeing
the frightful form. The Gopis picked Thee up even as Thou were playing
on the chest of the dead demoness.
भुवनमङ्गलनामभिरेव ते युवतिभिर्बहुधा कृतरक्षण: ।
त्वमयि वातनिकेतननाथ मामगदयन् कुरु तावकसेवकम् ॥१०॥
त्वमयि वातनिकेतननाथ मामगदयन् कुरु तावकसेवकम् ॥१०॥
भुवन-मङ्गल- | O Thou who confers auspiciousness on the world! |
नामभि:-एव ते | by Thy name alone |
युवतिभि:-बहुधा | by the young women, in various ways |
कृतरक्षण: त्वम्-अयि | Thou were protected, O Thou! |
वातनिकेतननाथ | Lord of Guruvaayur! |
माम्-अगदयन् | making me devoid of ailments |
कुरु तावक-सेवकम् | make me Thy devotee |
O Thou! Who confers auspiciousness on to the world, the young women
protected Thee in various ways with chanting Thy names alone. O Lord of
Guruvaayur! Making me devoid of my ailments, make me Thy devotee.
दशक ४०
तदनु नन्दममन्दशुभास्पदं नृपपुरीं करदानकृते गतम्।
समवलोक्य जगाद भवत्पिता विदितकंससहायजनोद्यम: ॥१॥
तदनन्तर, अमन्द मंगलों के आश्रय नन्द, कर देने के लिये राजधानी गये। वहां
उनकी भेंट आपके पिता वसुदेव से हुई। कंस और उसके सहायकों की गतिविधियों से
परिचित वसुदेव ने नन्द से कहा -
अयि सखे तव बालकजन्म मां सुखयतेऽद्य निजात्मजजन्मवत् ।
इति भवत्पितृतां व्रजनायके समधिरोप्य शशंस तमादरात् ॥२॥
हे सखे! आपके पुत्र का जन्म मुझे उसी प्रकार सुख दे रहा है मानो मेरे अपने
पुत्र का जन्म हुआ हो। इस प्रकार कुशलता से आपका पितृत्व नन्द पर आरोपित कर
के उनसे आदर पूर्वक कहा -
इह च सन्त्यनिमित्तशतानि ते कटकसीम्नि ततो लघु गम्यताम् ।
इति च तद्वचसा व्रजनायको भवदपायभिया द्रुतमाययौ ॥३॥
आपके नगर की सीमा पर सैंकडों अपशकुन हो रहे हैं , इस लिये आप शीघ्र ही चले
जाइये।' उनके इस प्रकार कहने पर व्रजनायक नन्द तुरन्त ही लौट आये।
अवसरे खलु तत्र च काचन व्रजपदे मधुराकृतिरङ्गना ।
तरलषट्पदलालितकुन्तला कपटपोतक ते निकटं गता ॥४॥
हे माया से बाल स्वरूपधारी! ठीक उसी समय गोकुल में, कोई सुन्दर स्वरूप वाली
युवती जिसके सुसज्जित केशों पर भंवरे मण्डरा रहे थे, आपके पास गई।
सपदि सा हृतबालकचेतना निशिचरान्वयजा किल पूतना ।
व्रजवधूष्विह केयमिति क्षणं विमृशतीषु भवन्तमुपाददे ॥५॥
राक्षसों के कुल में उत्पन्न हुई, बालकों के प्राणों को हरने वाली उस पूतना
ने, व्रज गोपियों के बीच से, आपको तुरन्त ही उठा लिया। ब्रज गोपियां विचार
ही करती रह गईं कि 'यह सुन्दरी कौन है?'
ललितभावविलासहृतात्मभिर्युवतिभि: प्रतिरोद्धुमपारिता ।
स्तनमसौ भवनान्तनिषेदुषी प्रददुषी भवते कपटात्मने ॥६॥
पूतना के मनोहर हाव भावों के विलास से मोहित हुई युवतियां उसको रोकने मे
असमर्थ हो गईं। हे कपट बाल रूप धारी! तब उसने भवन के बीच में बैठ कर अपको
मुंह में अपना स्तन दे दिया।
समधिरुह्य तदङ्कमशङ्कितस्त्वमथ बालकलोपनरोषित: ।
महदिवाम्रफलं कुचमण्डलं प्रतिचुचूषिथ दुर्विषदूषितम् ॥७॥
बालकों का वध करने वाली पूतना के प्रति अत्यधिक क्रोध से भरे आपने उसकी गोद
में निशङ्क भाव से चढ कर, बडे बडे आमों के फलों के समान उसके स्तन मण्डलों
को चूसा, जो घोर विष से लिप्त होने के कारण दूषित थे।
असुभिरेव समं धयति त्वयि स्तनमसौ स्तनितोपमनिस्वना ।
निरपतद्भयदायि निजं वपु: प्रतिगता प्रविसार्य भुजावुभौ ॥८॥
उसके स्तनों के साथ साथ जब उसके प्राणों स्तनों को आपने पीया, तब वह
मेघगर्जना के समान चीत्कार करती हुई, अपने भयानक शरीर को प्रकट करती हुई
दोनो भुजाएं फैला कर गिर पडी।
भयदघोषणभीषणविग्रहश्रवणदर्शनमोहितवल्लवे ।
व्रजपदे तदुर:स्थलखेलनं ननु भवन्तमगृह्णत गोपिका: ।।९॥
उसकी भयानक चीत्कार सुन कर और भयानक आकार देख कर गोप जन और पूरा गोकुल
आश्चर्यचकित हो गया। उसकी छाती पर क्रीडा करते हुए आपको गोपिकाओं ने उठा
लिया।
भुवनमङ्गलनामभिरेव ते युवतिभिर्बहुधा कृतरक्षण: ।
त्वमयि वातनिकेतननाथ मामगदयन् कुरु तावकसेवकम् ॥१०॥
अयि भुवनमङ्गलकारी! युवतियों ने आप ही के मङ्गलकारी नामों से आपकी बहुत
प्रकार से रक्षा की है। हे वातनिकेतननाथ! मेरे रोगों को दूर करके मुझे भी
अपना सेवक बना लें।
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