Followers

Monday, September 19, 2016

Narayaneeyam - Dasakam 78 (Balarams Wedding)

Narayaneeyam - Dasakam 78 (Balarams Wedding) 

https://youtu.be/w2qR39wIGSM


http://youtu.be/Iufac_cgRxI


================
Dashaka 78
त्रिदिववर्धकिवर्धितकौशलं त्रिदशदत्तसमस्तविभूतिमत् ।
जलधिमध्यगतं त्वमभूषयो नवपुरं वपुरञ्चितरोचिषा ॥१॥
त्रिदिव-वर्धकि- heaven's architect
वर्धित-कौशलं excelling the skill
त्रिदश-दत्त- by the gods given
समस्त-विभूतिमत् all the majesties
जलधि-मध्यगतं in the ocean's middle situated
त्वम्-अभूषय: Thou adorned
नव-पुरं the new city
वपु:-अञ्चित- by Thy form's marked
रोचिषा resplendence
Even though Vishwakarmaa, the divine architect had employed all his excellent skills in building it and the gods had lavished all their divine embellishments on the city, which was situated in the middle of the ocean, it was adorned by the marked resplendence of Thy form.
ददुषि रेवतभूभृति रेवतीं हलभृते तनयां विधिशासनात् ।
महितमुत्सवघोषमपूपुष: समुदितैर्मुदितै: सह यादवै: ॥२॥
ददुषि (when) was given
रेवत-भूभृति by the Revata king
रेवतीं हलभृते Revatee for Balaraam
तनयां the daughter
विधि-शासनात् by Brahmaa's instructions
महितम्-उत्सव- great festive
घोषम्-अपूपुष: celebration was performed by Thee
समुदितै:-मुदितै: who had gathered happily
सह यादवै: with the Yaadavas
At the instructions of Brahmaa, the king of Revata gave his daughter Revatee in marriage to Balaraam. On this event with all the Yaadavaas, who had assembled, Thou happily performed a great festive celebration.
अथ विदर्भसुतां खलु रुक्मिणीं प्रणयिनीं त्वयि देव सहोदर: ।
स्वयमदित्सत चेदिमहीभुजे स्वतमसा तमसाधुमुपाश्रयन् ॥३॥
अथ विदर्भ-सुतां then, king of Vidarbh's (Bheeshmaka's) daughter
खलु रुक्मिणीं indeed Rukmini
प्रणयिनीं त्वयि in love with Thee
देव सहोदर: O Lord! Her brother
स्वयम्-अदित्सत of his own will decided to give
चेदि-महीभुजे to the Chedi king (Shishupaal)
स्व-तमसा because of his Tamas guna, ignorance
तम्-असाधुम्- him the non virtuous
उपाश्रयन् having made him a friend
The daughter of the king of Vidarbh (Bheeshmaka), Rukmini was indeed in love with Thee. O Lord! Her brother,Rukmi, due to his ignorance caused by his Tamas guna, of his own will resolved to give her to the Chedi king Shishupaal. Rukmi had made friends with Shishupaal who was totally non virtuous.
चिरधृतप्रणया त्वयि बालिका सपदि काङ्क्षितभङ्गसमाकुला ।
तव निवेदयितुं द्विजमादिशत् स्वकदनं कदनङ्गविनिर्मितं ॥४॥
चिर-धृत-प्रणया for long holding love
त्वयि बालिका for Thee, the girl
सपदि at once
काङ्क्षित-भङ्ग- (her) desire being broken
समाकुला (foreseeing) and distressed
तव निवेदयितुम् to Thee, to communicate
द्विजम्-आदिशत् a Braahmin instructed
स्व-कदनं her distress
कदन-अङ्ग- the cruel Cupid
विनिर्मितम् caused by
For a long time holding love for Thee, which was braught about by the cruel Cupid, the girl at once instructed a Brahmin to acquaint Thee of her distress by the immenent threat to the fulfillment of her desire,
द्विजसुतोऽपि च तूर्णमुपाययौ तव पुरं हि दुराशदुरासदम् ।
मुदमवाप च सादरपूजित: स भवता भवतापहृता स्वयम् ॥५॥
द्विज-सुत:-अपि the Brahmin boy also
च तूर्णम्-उपाययौ and soon reached
तव पुरं हि Thy city indeed
दुराश-दुरासदं for the wicked inaccessible
मुदम्-अवाप च and great joy attained
सादर-पूजित: with the honour received
स भवता he (was) by Thee
भव-ताप-हृता (who are) from worldly afflictions, the remover
स्वयम् Thyself
The Brahmin boy soon reached Thy city which is inaccessible to wicked minded people. He was highly delighted and attained great joy on being received with honour by Thyself the remover of the worldly travails and afflictions of men.
स च भवन्तमवोचत कुण्डिने नृपसुता खलु राजति रुक्मिणी ।
त्वयि समुत्सुकया निजधीरतारहितया हि तया प्रहितोऽस्म्यहम् ॥६॥
स च he and
भवन्तम्-अवोचत to Thee said
कुण्डिने in Kundina
नृप-सुता खलु the king's daughter indeed
राजति रुक्मिणी shines Rukmini
त्वयि समुत्सुकया in Thee deeply in love
निज-धीरता-रहितया her own restrain loosing
हि तया प्रहित:- indeed by her sent
अस्मि-अहम् am I
And he said to Thee 'In Kundinaa (capital of Vidarbha) lives the noble princess Rukmini. She is deeply in love with Thee. She who has lost her own restrain has indeed sent me here.'
तव हृताऽस्मि पुरैव गुणैरहं हरति मां किल चेदिनृपोऽधुना ।
अयि कृपालय पालय मामिति प्रजगदे जगदेकपते तया ॥७॥
तव हृता-अस्मि by Thee captivated am I
पुरा-एव since long even
गुणै:-अहं by (Thy) excellences, I
हरति मां किल capturing me indeed is
चेदि-नृप:-अधुना the Chedi king now
अयि कृपालय (कृपा-आलय) O Abode of Compassion!
पालय माम्-इति save me, thus
प्रजगदे was prayed
जगदेकपते (जगत्-एक-पते) O Lord of the worlds!
तया by her
From long since I am a captive of Thy excellences. Now the king of Chedi (Shishupaal) is going to captivate me. O Abode of Compassion! Save me.' O Lord of the worlds! Thus she prayed to Thee.
अशरणां यदि मां त्वमुपेक्षसे सपदि जीवितमेव जहाम्यहम् ।
इति गिरा सुतनोरतनोत् भृशं सुहृदयं हृदयं तव कातरम् ॥८॥
अशरणाम् helpless
यदि मां if me
त्वम्-उपेक्षसे Thou foresake
सपदि जीवितम्-एव soon life itself
जहामि-अहम् will kill I
इति गिरा सुतनो:- these words of the fair one
अतनोत् भृशं brought about deep
सुहृत्-अयं by this good hearted (Braahmin)
हृदयं तव कातरम् (in) heart Thy agitation
If Thou will foresake me, the helpless one, I will certainly end my life soon.' This massage of the fair Rukmini from the good hearted Braahmin, brought about deep agitation in Thy heart.
अकथयस्त्वमथैनमये सखे तदधिका मम मन्मथवेदना ।
नृपसमक्षमुपेत्य हराम्यहं तदयि तां दयितामसितेक्षणाम् ॥९॥
अकथय:- told
त्वम्-अथ-एनम्- Thou then to him
अये सखे O friend!
तत्-अधिका more than her
मम मन्मथ-वेदना (are) my love pangs
नृप समक्षम्- in the front of the kings
उपेत्य हरामि-अहं coming there will take away I
तत्-अयि तां so it is, O (friend), that
दयिताम्-असित-ईक्षणाम् dear dark eyed one
Thou then told him, 'O friend! My love pangs are more intense than hers. Therefore, I will come, and in presence of the kings, take away the dear dark eyed one.'
प्रमुदितेन च तेन समं तदा रथगतो लघु कुण्डिनमेयिवान् ।
गुरुमरुत्पुरनायक मे भवान् वितनुतां तनुतां निखिलापदाम् ॥१०॥
प्रमुदितेन च and with the delighted
तेन समं तदा with him then
रथ-गत: लघु getting into the chariot immediately
कुण्डिनम्-एयिवान् to Kundina (Thou) reached
गुरुमरुत्पुरनायक O Lord of Guruvaayur!
मे भवान् of me, Thou
वितनुतां तनुतां deign to bring about relief
निखिल-आपदाम् from all my afflictions
O Lord of Guruvaayur! Along with the highly delighted Braahmin, Thou immediately got into the chariot and soon reached Kundina. May Thou deign to bring about relief for me from all my afflictions.


दशक ७८
त्रिदिववर्धकिवर्धितकौशलं त्रिदशदत्तसमस्तविभूतिमत् ।
जलधिमध्यगतं त्वमभूषयो नवपुरं वपुरञ्चितरोचिषा ॥१॥
त्रिदिव-वर्धकि- स्वर्ग के निर्माता (विश्वकर्मा) के
वर्धित-कौशलं अपूर्व कौशल से (निर्मित)
त्रिदश-दत्त- देवताओं द्वारा प्रदत्त
समस्त-विभूतिमत् अखिल विभूति वाले
जलधि-मध्यगतं समुद्र के मध्य में स्थित
त्वम्-अभूषय: आपने विभूषित किया
नव-पुरं नवीन पुरी को
वपु:-अञ्चित- (अपने) स्वरूप की असामान्य
रोचिषा कान्ति से
स्वर्ग के निर्माता विश्वकर्मा के अपूर्व कौशल द्वारा रचित, और देवताओं द्वारा प्रदत्त अखिल विभूति वाली, समुद्र के मध्य स्थित नवीन पुरी को आपने अपनी असामान्य कान्ति से विभूषित किया।
ददुषि रेवतभूभृति रेवतीं हलभृते तनयां विधिशासनात् ।
महितमुत्सवघोषमपूपुष: समुदितैर्मुदितै: सह यादवै: ॥२॥
ददुषि दे दिया
रेवत-भूभृति रेवत राजा ने
रेवतीं हलभृते रेवती को बलराम के लिए
तनयां पुत्री को
विधि-शासनात् ब्रह्मा की आज्ञा से
महितम्-उत्सव- महान उत्सव को
घोषम्-अपूपुष: उत्साह से सम्पन्न किया
समुदितै:-मुदितै: एकत्रित हुए प्रसन्न
सह यादवै: यादवों के साथ
रेवत नरेश ने अपनी पुत्री रेवती का विवाह बलराम के साथ कर दिया। प्रसन्न यादवों के साथ एकत्रित होकर आपने वह महान उत्सव अत्यन्त उत्साह और आनन्द से सम्पन्न किया।
अथ विदर्भसुतां खलु रुक्मिणीं प्रणयिनीं त्वयि देव सहोदर: ।
स्वयमदित्सत चेदिमहीभुजे स्वतमसा तमसाधुमुपाश्रयन् ॥३॥
अथ विदर्भ-सुतां तदनन्तर, विदर्भ पुत्री
खलु रुक्मिणीं नि:सन्देह रुक्मिणी को
प्रणयिनीं त्वयि (जो) अनुरक्त थी आपमें
देव सहोदर: हे देव! (उसके) भाई
स्वयम्-अदित्सत स्वयं ही कृत निश्चय थे देने के लिए
चेदि-महीभुजे चेदि राज (शिशुपाल) को
स्व-तमसा निज के तमो गुण के कारण
तम्-असाधुम्- उस दुर्जन का
उपाश्रयन् आश्रय लेते हुए
तदन्तर, विदर्भराज (भीष्मक) की कन्या रुक्मिणी निस्सन्देह आप में ही अनुरक्त थी। उसके भाई रुक्मी ने किन्तु स्वेच्छा ही से रुक्मिणी को शिशुपाल को देने का निश्चय कर लिया था। तमोगुणी रुक्मी ने उस दुर्जन का आश्रय भी ले लिया था।
चिरधृतप्रणया त्वयि बालिका सपदि काङ्क्षितभङ्गसमाकुला ।
तव निवेदयितुं द्विजमादिशत् स्वकदनं कदनङ्गविनिर्मितं ॥४॥
चिर-धृत-प्रणया चिर काल से धारण करने वाली अनुराग
त्वयि बालिका आपमें वह बालिका
सपदि तुरन्त
काङ्क्षित-भङ्ग- मनोकाङ्क्षा को भङ्ग (होते हुए जान कर)
समाकुला व्याकुल हो गई
तव निवेदयितुम् आपको निवेदन करने के लिए
द्विजम्-आदिशत् ब्राह्मण को आदेश दिया
स्व-कदनं निज की व्यथा को
कदन-अङ्ग- निर्दयी कामदेव के द्वारा
विनिर्मितम् रचित
बालिका रुक्मिणी चिरकाल से आपमें अनुरक्त थी। सहसा अपना मनोरथ भङ्ग होता जान कर वह व्याकुल हो गई। उसने ब्राह्मण को आदेश दिया कि वह निर्दयी कामदेव द्वारा रचित उसकी मनोव्यथा को आपके समक्ष निवेदित करे।
द्विजसुतोऽपि च तूर्णमुपाययौ तव पुरं हि दुराशदुरासदम् ।
मुदमवाप च सादरपूजित: स भवता भवतापहृता स्वयम् ॥५॥
द्विज-सुत:-अपि ब्राह्मण कुमार भी
च तूर्णम्-उपाययौ और शीघ्र ही पहुंच गए
तव पुरं हि आपकी नगरी में ही
दुराश-दुरासदं दुर्जनों के लिए दुर्गम
मुदम्-अवाप च प्रसन्नता को पाया और
सादर-पूजित: सादर पूजित हुए
स भवता वह आपके द्वारा
भव-ताप-हृता (जो) तापों के हर्ता हैं
स्वयम् स्वयं
आपकी उस नगरी में जहां दुर्जनों का प्रवेश असाध्य है, ब्राह्मण कुमार शीघ्र ही पहुंच गए। समस्त तापों के हर्ता आपके द्वारा सादर पूजित और सम्मानित हो कर वे अत्यन्त प्रसन्न हुए।
स च भवन्तमवोचत कुण्डिने नृपसुता खलु राजति रुक्मिणी ।
त्वयि समुत्सुकया निजधीरतारहितया हि तया प्रहितोऽस्म्यहम् ॥६॥
स च वह और
भवन्तम्-अवोचत आपको बोला
कुण्डिने कुण्डिन में
नृप-सुता खलु राज कन्या निश्चय ही
राजति रुक्मिणी सुशोभित है रुक्मिणी
त्वयि समुत्सुकया आपमें अत्यन्त अनुरक्त (उसके) द्वारा
निज-धीरता-रहितया स्वयं की धीरता रहिता के द्वारा
हि तया प्रहित:- ही उसके द्वारा भेजा गया
अस्मि-अहम् हूं मैं
उसने आपसे कहा 'कुण्डिन में रुक्मिणी नामक राज कन्या सुशोभित है। निश्चित रूप से वह आप में अत्यन्त अनुरक्त है। आपको न पाने के भय से शंकित हो कर वह अपना धैर्य खो बैठी है। मैं उसी के द्वारा मैं भेजा गया हूं।'
तव हृताऽस्मि पुरैव गुणैरहं हरति मां किल चेदिनृपोऽधुना ।
अयि कृपालय पालय मामिति प्रजगदे जगदेकपते तया ॥७॥
तव हृता-अस्मि आपकी हरण की हुई हूं (मैं)
पुरा-एव पहले ही
गुणै:-अहं (आपके) गुणों के द्वारा
हरति मां किल हरण कर रहा है मेरा निश्चय ही
चेदि-नृप:-अधुना चेदिराज इस समय
अयि कृपालय (कृपा-आलय) अयि कृपालय
पालय माम्-इति रक्षा करें मेरी इस प्रकार
प्रजगदे प्रार्थना की गई
जगदेकपते (जगत्-एक-पते) हे जगत के एकमात्र पालक!
तया उसके द्वारा
पहले से ही मैं आपके गुणों द्वारा हर ली गई हूं। इस समय चेदिराज निश्चित रूप से मेरा हरण कर रहा है। अयि कृपालय! मेरी रक्षा करें।' हे जगत के एकमात्र पालक! उसने आपसे इस प्रकार प्रार्थना की है।
अशरणां यदि मां त्वमुपेक्षसे सपदि जीवितमेव जहाम्यहम् ।
इति गिरा सुतनोरतनोत् भृशं सुहृदयं हृदयं तव कातरम् ॥८॥
अशरणाम् निस्सहाय
यदि मां यदि मुझको
त्वम्-उपेक्षसे आप उपेक्षा करते हैं
सपदि जीवितम्-एव तुरन्त ही जीवन का ही
जहामि-अहम् ह्रास करूंगी मैं
इति गिरा सुतनो:- इस प्रकार की वाणी सुन्दरी की
अतनोत् भृशं बना दिया अत्यन्त
सुहृत्-अयं सुहृत इस (ब्राह्मण) ने
हृदयं तव कातरम् हृदय को आपके कातर
यदि मुझ निस्सहाय की आप उपेक्षा करते हैं तो मैं तुरन्त ही अपने जीवन का ह्रास कर दूंगी। 'सुहृद ब्राह्मण से सुन्दरी की ऐसी वाणी को सुन कर आपका हृदय अत्यन्त कातर हो उठा।
अकथयस्त्वमथैनमये सखे तदधिका मम मन्मथवेदना ।
नृपसमक्षमुपेत्य हराम्यहं तदयि तां दयितामसितेक्षणाम् ॥९॥
अकथय:- कहा
त्वम्-अथ-एनम्- आपने तब उसको
अये सखे अये सखे
तत्-अधिका उससे अधिक
मम मन्मथ-वेदना मेरी काम वेदना है
नृप समक्षम्- राजाओं के सामने
उपेत्य हरामि-अहं पहुंच कर हरण करूंगा मैं
तत्-अयि तां उस अयि उसको
दयिताम्-असित-ईक्षणाम् प्रियतमा को कजरारे नेत्रों वाली को
तब आपने उससे कहा 'हे सखे! मेरी काम वेदना उससे भी अधिक है। राजाओं के समक्ष पहुंच कर, हे सखे! मैं उस कजरारे नेत्रों वाली को हर लाऊंगा।'
प्रमुदितेन च तेन समं तदा रथगतो लघु कुण्डिनमेयिवान् ।
गुरुमरुत्पुरनायक मे भवान् वितनुतां तनुतां निखिलापदाम् ॥१०॥
प्रमुदितेन च आनन्द मग्न और
तेन समं तदा उसके साथ उस समय
रथ-गत: लघु रथ आरूढ हो कर शीघ्र
कुण्डिनम्-एयिवान् कुण्डिन को पहुंचे
गुरुमरुत्पुरनायक हे गुरुमरुत्पुरनायक!
मे भवान् मेरे, आप
वितनुतां तनुतां कृपा कर क्षीण कीजिए
निखिल-आपदाम् समस्त आपदाओं को
आनन्द विभोर हो कर आप उसके साथ रथ पर आरूढ हो शीघ्र ही कुण्डिन पहुंचे। हे गुरुमरुत्पुरनायक! कृपा करके मेरी समस्त आपदाएं क्षीण कर दीजिए।

No comments:

Post a Comment