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Saturday, September 17, 2016

Narayaneeyam - Dasakam 46 (Revelation of Cosmic form)

Narayaneeyam - Dasakam 46 (Revelation of Cosmic form)

 https://youtu.be/hWnXqngx6io

 

http://youtu.be/mtmSgWof0aE
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Dashaka 46
अयि देव पुरा किल त्वयि स्वयमुत्तानशये स्तनन्धये ।
परिजृम्भणतो व्यपावृते वदने विश्वमचष्ट वल्लवी ॥१॥
अयि देव O Lord!
पुरा किल long ago indeed
त्वयि स्वयम्- (when) Thou by Thyself
उत्तानशये while lying on the back
स्तनन्धये and sucking at the breast (of Yashodaa)
परिजृम्भणत: by yawning
व्यपावृते वदने in Thy open mouth
विश्वम्-अचष्ट the universe, was seen
वल्लवी by the cowherdess (Yashodaa)
O Lord! Once long ago, as Thou were lying flat on the back, in the lap of Yashodaa and sucking at her breast, Thou yawned. As Thou did so, in Thy open mouth, Thou revealed to her the whole universe.
पुनरप्यथ बालकै: समं त्वयि लीलानिरते जगत्पते ।
फलसञ्चयवञ्चनक्रुधा तव मृद्भोजनमूचुरर्भका: ॥२॥
पुन:-अपि-अथ again also
बालकै: समं with the children
त्वयि लीला-निरते (when) Thou were engrossed in play
जगत्पते O Lord of the Univers!
फल-सञ्चय- in collecting the fruits
वञ्चन-क्रुधा being cheated and angered (the children)
तव मृद्-भोजनम्- Thy eating of sand
ऊचु:-अर्भका: reported the children
O Lord of the Universe! Again once, as Thou were playing with other children, Thou cheated them in collecting fruits. Angered at this, they reported to Thy mother that Thou had eaten mud.
अयि ते प्रलयावधौ विभो क्षितितोयादिसमस्तभक्षिण: ।
मृदुपाशनतो रुजा भवेदिति भीता जननी चुकोप सा ॥३॥
अयि O (Thou)
ते प्रलय-अवधौ Thee at the time of deluge
विभो O Lord!
क्षिति-तोय-आदि- earth water etc
समस्त-भक्षिण: everything consuming
मृद्-उपाशनत: by eating mud,
रुजा भवेत्-इति sickness may be, thus
भीता जननी (Thy) frightened mother
चुकोप सा she became angry
O Lord! At the time of the deluge Thou do consume everything earth water etc. Yet Thy mother was frightened that Thou may fall sick by eating mud and so she became angry.
अयि दुर्विनयात्मक त्वया किमु मृत्सा बत वत्स भक्षिता ।
इति मातृगिरं चिरं विभो वितथां त्वं प्रतिजज्ञिषे हसन् ॥४॥
अयि दुर्विनयात्मक O naughty (one)
त्वया किमु by you was it
मृत्सा बत that mud indeed
वत्स भक्षिता O son, was eaten
इति मातृगिरं such the words of Thy mother
चिरं विभो for a long time O Lord
वितथां त्वं as false, Thee
प्रतिजज्ञिषे हसन् asserted laughingly
O you naughty one! Is it that you have eaten mud O son!' O Lord! These words of Thy mother, for a long time, Thou kept on denying and laughingly asserted that Thou had not done so.
अयि ते सकलैर्विनिश्चिते विमतिश्चेद्वदनं विदार्यताम् ।
इति मातृविभर्त्सितो मुखं विकसत्पद्मनिभं व्यदारय: ॥५॥
अयि ते O Boy! Of you
सकलै:-विनिश्चिते by every one asserted
विमति:-चेत्- is, if disagreed
वदनं विदार्यताम् mouth (please) open
इति मातृ-विभर्त्सित: thus by mother reprimanded
मुखं विकसत्-पद्म-निभम् the mouth opening, lotus like
व्यदारय: (Thou) opened
O Boy! If you deny what all the others are saying, please open your mouth.' Thus reprimanded by Thy mother, Thou opend Thy mouth as a lotus in full bloom.
अपि मृल्लवदर्शनोत्सुकां जननीं तां बहु तर्पयन्निव ।
पृथिवीं निखिलां न केवलं भुवनान्यप्यखिलान्यदीदृश: ॥६॥
अपि मृल्-लव even a mud trace
दर्शन-उत्सुकां eager to see
जननीं तां to mother that
बहु तर्पयन्-इव very much trying to please as though,
पृथिवीं निखिलां the earth whole
न केवलं not only
भुवनान्-अपि- the other worlds also
अखिलान्-अदीदृश: entirely showed
Thy mother was eager to see just a trace of mud in Thy mouth. As though to please her, and to give her abundant satisfaction Thou showed her in Thy mouth not only this whole earth but the entire universe.
कुहचिद्वनमम्बुधि: क्वचित् क्वचिदभ्रं कुहचिद्रसातलम् ।
मनुजा दनुजा: क्वचित् सुरा ददृशे किं न तदा त्वदानने ॥७॥
कुहचित्-वनम्- somewhere the forests
अम्बुधि: क्वचित् the oceans somewhere
क्वचित्-अभ्रं somewhere the sky
कुहचित्-रसातलम् somewhere the Rasaatala
मनुजा: दनुजा: human beings, demons
क्वचित् सुरा: somewhere the devas
ददृशे किं न seen what not was
तदा त्वत्-आनने at that time in Thy mouth
At that time, in Thy mouth what not was seen by Yashodaa? Somewhere the forests and oceans, somewhere the skies and Rasaatala, human beings and demons, gods and devas!
कलशाम्बुधिशायिनं पुन: परवैकुण्ठपदाधिवासिनम् ।
स्वपुरश्च निजार्भकात्मकं कतिधा त्वां न ददर्श सा मुखे ॥८॥
कलश-अम्बुधि-शायिनं in the mik ocean, the recliner
पुन: पर-वैकुण्ठपद- as the Paramaatamaa, in the Vaikuntha abode
अधिवासिनम् the resident
स्व-पुर:-च in front of herself
निज-अर्भक-आत्मकं as her own son
कतिधा in how many ways
त्वाम् न ददर्श Thee did not see
सा मुखे she in (Thy) mouth
Yashodaa saw in Thy mouth the recliner in the milk ocean. Again she saw Paramaatamaa, the resident of the Vaikunth abode. Then she saw Thee as her son in front of her. In how many different ways did she not see Thee.
विकसद्भुवने मुखोदरे ननु भूयोऽपि तथाविधानन: ।
अनया स्फुटमीक्षितो भवाननवस्थां जगतां बतातनोत् ॥९॥
विकसत्-भुवने revealing the worlds
मुख-उदरे in the inside of the mouth
ननु भूय:-अपि indeed then again also
तथा-विध-आनन: that same type of face
अनया स्फुटम्-ईक्षित: by her was clearly seen
भवान्-अनवस्थां Thou as the infinitude
जगतां of the universe
बत्-आतनोत् definitely expounded
In the cavity of Thy mouth she saw all the worlds, where even Thou were present with Thy mouth open, once again, in which again all the worlds were seen; and so on endlessly. This definitely expounded Thou as the infinitude of the universe.
धृततत्त्वधियं तदा क्षणं जननीं तां प्रणयेन मोहयन् ।
स्तनमम्ब दिशेत्युपासजन् भगवन्नद्भुतबाल पाहि माम् ॥१०॥
धृत-तत्त्व-धियं holding the reality in the mind
तदा क्षणं at that time for a moment
जननीं तां to the mother
प्रणयेन मोहयन् by affection enchanting (deluding)
स्तनम्-अम्ब दिश- breast milk O Mother give'
इति-उपासजन् thus embracing
भगवन्- O Lord!
अद्भुत-बाल O Wonderful Child!
पाहि माम् protect me
At that time for a moment, Yashodaa had a flash of illumination. Thou with affection deluded her and clung to her, calling her 'Mother' and demanded to be suckled. O Lord! Thou the Wonderous Child! Deign to protect me.


दशक ४६
अयि देव पुरा किल त्वयि स्वयमुत्तानशये स्तनन्धये ।
परिजृम्भणतो व्यपावृते वदने विश्वमचष्ट वल्लवी ॥१॥
अयि देव अयि देव!
पुरा किल पहले एक बार
त्वयि स्वयम्- आप स्वयं
उत्तानशये सीधे सोये हुए
स्तनन्धये स्तन पान करते हुए
परिजृम्भणत: जम्भाई लेते हुए
व्यपावृते वदने खुले हुए मुख में
विश्वम्-अचष्ट विश्व को देखा
वल्लवी गोपी (यशोदा) ने
हे देव! अपने बाल्य काल में आप एकबार सीधे सोये हुए स्तनपान कर रहे थे। उसी समय जम्भाई लेते हुए आपके खुले मुख में गोपी यशोदा ने पूरे विश्व को देखा।
पुनरप्यथ बालकै: समं त्वयि लीलानिरते जगत्पते ।
फलसञ्चयवञ्चनक्रुधा तव मृद्भोजनमूचुरर्भका: ॥२॥
पुन:-अपि-अथ फिर एकबार तब
बालकै: समं बालकों के साथ
त्वयि लीला-निरते (जब) आप लीला (क्रीडा) मे व्यस्त थे
जगत्पते हे जगत्पति!
फल-सञ्चय- फल संचय
वञ्चन-क्रुधा से छलित और क्रुद्ध हुए (बालकों ने)
तव मृद्-भोजनम्- आपके मिट्टी खाने को
ऊचु:-अर्भका: बताया बालकों ने
और एकबार जब आप बालकों के साथ लीला क्रीडा में व्यस्त थे तब फलों के संचय में छलित बालक आप से क्रुद्ध हो गये और उन्होंने यशोदा को आपकी मट्टी खाने की बात बता दी।
अयि ते प्रलयावधौ विभो क्षितितोयादिसमस्तभक्षिण: ।
मृदुपाशनतो रुजा भवेदिति भीता जननी चुकोप सा ॥३॥
अयि अयि
ते प्रलय-अवधौ आपके प्रलय काल में
विभो हे विभो!
क्षिति-तोय-आदि- पृथ्वी जल आदि
समस्त-भक्षिण: समस्त खाने वाले को
मृद्-उपाशनत: मिट्टी खाने से
रुजा भवेत्-इति रोग हो जाएगा इस प्रकार
भीता जननी डरी हुई माता
चुकोप सा वह कुपित हो गई
अयि विभो! प्रलय काल में पृथ्वी जल आदि समस्त ब्रह्माण्ड का भक्षण करने वाले आप मिट्टी खाने से रोगी हो जायेंगे इस डर से माता कुपित हो गई।
अयि दुर्विनयात्मक त्वया किमु मृत्सा बत वत्स भक्षिता ।
इति मातृगिरं चिरं विभो वितथां त्वं प्रतिजज्ञिषे हसन् ॥४॥
अयि दुर्विनयात्मक अरे दुष्ट!
त्वया किमु तुमने क्या
मृत्सा बत मिट्टी ही
वत्स भक्षिता पुत्र खाई थी
इति मातृगिरं इस प्रकार माता के वचन को
चिरं विभो कुछ समय तक, हे विभो!
वितथां त्वं असत्य आपने
प्रतिजज्ञिषे हसन् ठहराया हंसते हुए
'अरे दुष्ट पुत्र! तुमने मिट्टी ही खाई थी या कुछ और?' हे विभो! माता के ऐसा पूछने पर कुछ समय तक आप हंसते हुए माता के वचन को असत्य बताते रहे।
अयि ते सकलैर्विनिश्चिते विमतिश्चेद्वदनं विदार्यताम् ।
इति मातृविभर्त्सितो मुखं विकसत्पद्मनिभं व्यदारय: ॥५॥
अयि ते अरे तुम्हारे
सकलै:-विनिश्चिते ये सभी निश्चय बता रहे हैं
विमति:-चेत्- अन्यथा है यदि
वदनं विदार्यताम् मुंह खोलो'
इति मातृ-विभर्त्सित: इस प्रकार माता के डांटने पर
मुखं विकसत्-पद्म-निभम् मुख को खिलते हुए कमल के समान
व्यदारय: खोल दिया (आपने)
'अरे! तुम्हारे ये सभी साथी निश्चित रूप से बता रहे हैं कि तुमने मिट्टी खाई है। यदि ऐसा नहीं है तो अपना मुंह खोलो।' माता के इस प्रकार डांटने पर आपने खिलते हुए कमल के समान अपना मुंह खोल दिया।
अपि मृल्लवदर्शनोत्सुकां जननीं तां बहु तर्पयन्निव ।
पृथिवीं निखिलां न केवलं भुवनान्यप्यखिलान्यदीदृश: ॥६॥
अपि मृल्-लव मिट्टी का कण भी
दर्शन-उत्सुकां देखने को उत्सुक
जननीं तां उस माता को
बहु तर्पयन्-इव बहुत सन्तुष्ट करते हुए मानो
पृथिवीं निखिलां पृथ्वी को पूरी
न केवलं नहीं केवल
भुवनान्-अपि- भुवनों को भी
अखिलान्-अदीदृश: समस्त दिखला दिया
माता आपके मुख में मिट्टी का कण मात्र भी मिट्टी देखने को उत्सुक थीं। उनको बहुत सन्तुष्ट करते हुए ही मानों आपने न केवल पूरी पृथ्वी अपितु समस्त भुवनों को भी दिखला दिया।
कुहचिद्वनमम्बुधि: क्वचित् क्वचिदभ्रं कुहचिद्रसातलम् ।
मनुजा दनुजा: क्वचित् सुरा ददृशे किं न तदा त्वदानने ॥७॥
कुहचित्-वनम्- कहीं पर वन
अम्बुधि: क्वचित् समुद्र कहीं पर
क्वचित्-अभ्रं कहीं पर आकाश
कुहचित्-रसातलम् कहीं पर रसातल
मनुजा: दनुजा: मानव, असुर
क्वचित् सुरा: कहीं पर देवगण
ददृशे किं न दिखाया क्या नहीं
तदा त्वत्-आनने तब आपके मुख में
उस समय, कहीं पर वन और कहीं समुद्र, कहीं पर आकाश तो कहीं रसातल, कहीं मानव कहीं असुर तो कहीं देवता गण, इस प्रकार क्या क्या नहीं देखा माता यशोदा ने आपके मुख में?
कलशाम्बुधिशायिनं पुन: परवैकुण्ठपदाधिवासिनम् ।
स्वपुरश्च निजार्भकात्मकं कतिधा त्वां न ददर्श सा मुखे ॥८॥
कलश-अम्बुधि-शायिनं क्षीर सागर में लेटे हुए
पुन: पर-वैकुण्ठपद- फिर परमात्मस्वरूप में वैकुण्ठ पद मे
अधिवासिनम् निवास करने वाले
स्व-पुर:-च स्वयं के सामने और
निज-अर्भक-आत्मकं अपने पुत्र के रूप में
कतिधा कितने स्वरूपों में
त्वाम् न ददर्श आपको नहीं देखा
सा मुखे उसने मुख में
क्षीर सागर में शेष शैया पर शयन करते हुए, वैकुण्ठ पद के निवासी परमात्म स्वरूप में, स्वयं के सामने अपने पुत्र के रूप में, किस किस रूप में उसने नही देखा आपको आपके ही मुख में?
विकसद्भुवने मुखोदरे ननु भूयोऽपि तथाविधानन: ।
अनया स्फुटमीक्षितो भवाननवस्थां जगतां बतातनोत् ॥९॥
विकसत्-भुवने दिखाए देते हुए भुवन
मुख-उदरे मुख गह्वर में
ननु भूय:-अपि निश्चय ही फिर से भी
तथा-विध-आनन: उसी प्रकार का मुख
अनया स्फुटम्-ईक्षित: उसके द्वारा स्पष्ट देखा गया
भवान्-अनवस्थां आप ने अनवस्था को
जगतां जगत की
बत्-आतनोत् ही प्रमाणित किया
आपके मुख गह्वर में यशोदा ने स्पष्ट रूप से भुवनों को देखा और उसी प्रकार खुले हुए मुंह वाले आपको देखा, जिसमें फिर भुवन और मुख दिख रहे थे। इस प्रकार आपने जगत की अनवस्था को प्रतिपादित किया।
धृततत्त्वधियं तदा क्षणं जननीं तां प्रणयेन मोहयन् ।
स्तनमम्ब दिशेत्युपासजन् भगवन्नद्भुतबाल पाहि माम् ॥१०॥
धृत-तत्त्व-धियं पा जाने पर तत्व ज्ञान ध्यान में
तदा क्षणं तब क्षण भर के लिये
जननीं तां उस जननी को
प्रणयेन मोहयन् स्नेह से मोहित कर के
स्तनम्-अम्ब दिश- दूध मां दो'
इति-उपासजन् इस प्रकार गोद में चढते हुए
भगवन्- हे भगवन!
अद्भुत-बाल हे अद्भुत बालक!
पाहि माम् रक्षा करें मेरी
तब क्षण भर के लिये यशोदा को मन में तत्त्व ज्ञान हो गया। फिर आप जननी को स्नेह से मोहित कर के, 'दूध दो मां' कहते हुए गोद में चढने का उपक्रम करने लगे। हे भगवन! हे अद्भुत बालक! मेरी रक्षा करें।

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