Tulasi Vivah is the ceremonial marriage of the Tulsi plant (holy basil) with Sri Vishnu or his Avatar Krishna.
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान, तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में मनाई जाती है ।
कहा
जाता हैकि भगवान विष्णु आषाढ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए क्षीर सागर
में शयन करते है चार माह उपरान्त कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते है ।
विष्णु के शयन काल के चार मासो में विवाहादि मांगलिक कार्य वर्जित रहते है
। विष्णुजी के जागने बाद ही सभी मांगलिक कार्य शुरू किये जाते है ।
कार्तिक मास मे जो मनुष्य तुलसी का विवाह भगवान से करते है । उनके पिछलो
जन्मो के सब पाप नष्ट हो जाते है ।
तुलसी विवाह
कार्तिक मास में
स्नान करने वाले स्त्रियाँ कार्तिक शुक्ल एकादशी का शालिग्राम और तुलसी का
विवाह रचाती है । समस्त विधि विधान पुर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर
मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन
गाती है ।
मगन भई तुलसी राम गुन गाइके मगन भई तुलसी ।
सब कोऊ चली डोली पालकी रथ जुडवाये के ।।
साधु चले पाँय पैया, चीटी सो बचाई के ।
मगन भई तुलसी राम गुन गाइके ।।
भीष्म पंचक
यह
व्रत कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा तक चलाया है ।
कार्तिक सनान करने वाली स्त्रियाँ या पुरूष निराहार रहकर व्रत करते है।
विधानः
”ऊँ नमो भगवने वासुदेवाय“ मंत्र से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है । पाँच
दिनो तक लगातार घी का दीपक जलता रहना चाहीए।“ ”ऊँ विष्णुवे नमः स्वाहा“
मंत्र से घी, तिल और जौ की १०८ आहुतियो देते हुए हवन करना चाहीए ।
कथाः
महाभारत का युद्ध समाप्त हाने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण
होन की प्रतिक्षा मे शरशया पर शयन कर रहे थे । तक भगवान कृष्ण पाँचो पांडवो
को साथ लेकर उनके पास गये थे । उपयुक्त अवसर जानकर युंधिष्ठर ने भीष्म
पितामह ने पाँच दिनो तक राज धर्म, वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था
। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल
एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे
बडी प्रसन्नता हुई है मै इसकी स्मृति में आफ नाम पर भीष्म पंचक व्रत
स्थापित करता हूँ ।
जो लोग इसे करेगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेगे ।
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