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Saturday, March 30, 2019

Shree Krushnashray(krishna stotra.220)

Shree Krushnashray(krishna stotra.220)

 

https://youtu.be/NgIAAGFkpUc


सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम॥ (१)
भावार्थ : हे प्रभु! कलियुग में धर्म के सभी रास्ते बन्द हो गए हैं, और दुष्ट लोग धर्माधिकारी बन गये हैं, संसार में पाखंड व्याप्त है, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (१)
म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (२)
भावार्थ : हे प्रभु! देश में दुष्ट लोगों का भय व्याप्त है और सभी लोग पाप कर्मों में लिप्त हैं, संसार में संत लोग अत्यन्त पीड़ित हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (२)
गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (३)
भावार्थ : हे प्रभु! गंगा आदि प्रमुख नदियों पर स्थित तीर्थों का भी दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने अतिक्रमण कर लिया हैं और सभी देवस्थान लुप्त होते जा रहें हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (३)
अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।
लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (४)
भावार्थ : हे प्रभु! अहंकार से ग्रसित होकर संतजन भी पाप-कर्म का अनुसरण कर रहे हैं और लोभ के वश में होकर ही ईश्वर की पूजा करते हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (४)
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।
तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (५)
भावार्थ : हे प्रभु! वास्तविक ज्ञान लुप्त हो गया है, योग में स्थित व्यक्ति भी वैदिक मन्त्रों का ठीक प्रकार से उच्चारण नहीं करते हैं और व्रत नियमों का उचित प्रकार से पालन भी नहीं करते हैं, वेदों का सही अर्थ लुप्त होता जा रहा है, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (५)
नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥ (६)
 
भावार्थ : हे प्रभु! अनेकों प्रकार की विधियों के कारण सभी प्रकार के व्रत आदि उचित कर्म नष्ट हो रहें है, पाखंडता पूर्वक कर्मों का ही आचरण किया जा रहा है, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (६)
अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम॥ (७)
भावार्थ : हे प्रभु! आपका नाम अजामिल आदि जैसे दुष्ट व्यक्तियों के दोषों का नाश करने वाला है, ऐसा अनुभवी संतो द्वारा गाया गया है, अब मैं आपके संपूर्ण माहात्म्य को जान गया हूँ, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (७)
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्कृष्ण एव गतिर्मम॥ (८)
भावार्थ : हे प्रभु! समस्त देवतागण भी प्रकृति के अधीन हैं, इस विराट जगत का सुख भी सीमित ही है, केवल आप ही समस्त कष्टों को हरने वाले हैं और पूर्ण आनंद प्रदान करने वाले हैं, इसलिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (८)
विवेकधैर्यभक्त्यादिरहितस्य विशेषतः।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥ (९)
भावार्थ : हे प्रभु! मुझमें सत्य को जानने की सामर्थ्य नहीं है, धैर्य धारण करने की शक्ति नहीं है, आप की भक्ति आदि से रहित हूँ और विशेष रूप से पाप में आसक्त मन वाले मुझ दीनहीन के लिए केवल आप भगवान श्रीकृष्ण ही मेरे आश्रय हों। (९)
सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।
शरणस्थमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥ (१०)
भावार्थ : हे प्रभु! आप ही सभी प्रकार से सामर्थ्यवान हैं, आप ही सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं और आप ही शरण में आये हुए जीवों का उद्धार करने वाले हैं इसलिए मैं भगवान श्रीकृष्ण की वंदना करता हूँ। (१०)
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत्॥ (११)
भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण के आश्रय में रहकर और उनकी मूर्ति के सामने जो इस स्तोत्र का पाठ करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य जी के द्वारा कहा गया है। (११)
॥ इति श्री वल्लभाचार्यविरचितः कृष्णाश्रय सम्पूर्णः ॥


 https://youtu.be/JIO43NzOJ28



https://youtu.be/9STUujpAzHA

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