कृष्णाश्रय (मूल संस्कृत) |
कृष्णाश्रय (हिंदी भावानुवाद) |
Krishnashray (English) |
सर्वमार्गेषु नष्टेषु कलौ च खलधर्मिणि।
पाषण्डप्रचुरे लोके कृष्ण एव गतिर्मम॥१॥ |
कलियुग में धर्म के सभी मार्ग नष्ट हो गए हैं, विश्व में अधर्म और पाखंड का
बाहुल्य है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥१॥ |
In
this age of Kali, all the paths leading to God are destroyed;
non-righteousness and hypocrisy is prevalent everywhere. Lord Shri
Krishna is my only refuge in these difficult times.॥1॥ |
म्लेच्छाक्रान्तेषु देशेषु पापैकनिलयेषु च।
सत्पीडाव्यग्रलोकेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥२॥ |
दुर्जनों से आक्रांत (परेशान) देशों में, पाप
पूर्ण स्थानों में, सज्जनों की पीड़ा से व्यग्र संसार में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा
आश्रय हैं॥२॥ |
Wicked
people rule and oppress others in all places. These places have become
cursed.The suffering of noble men has reached its limits. At such a
time, the Lord Shri Krishna is my only refuge.॥2॥ |
गंगादितीर्थवर्येषु दुष्टैरेवावृतेष्विह।
तिरोहिताधिदेवेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥३॥ |
गंगा आदि प्रमुख तीर्थ भी दुष्टों द्वारा घिरे हुए हैं, प्रत्यक्ष देवस्थान
लुप्त हो गए हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥३॥ |
Principal
holy places like the Ganga etc. are surrounded by the wicked. The gods
residing in such places have abandoned them. At such a time, the Lord
Shri Krishna is my only
refuge.॥3॥ |
अहंकारविमूढेषु सत्सु पापानुवर्तिषु।
लोभपूजार्थयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥४॥
|
अहंकार से मोहित हुए सज्जन व्यक्ति भी पाप का अनुसरण कर रहे हैं और लोभ वश
ही पूजा करते हैं, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥४॥ |
Even
the righteous people have become full of pride and are following sinful
path. People pray to God for their selfish benefits. At such a time,
the Lord Krishna is my
only
refuge.॥4॥ |
अपरिज्ञाननष्टेषु मन्त्रेष्वव्रतयोगिषु।
तिरोहितार्थवेदेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥५॥ |
मंत्र ज्ञान नष्ट हो गया है, योगी नियमों का पालन न करने वाले हो गए
हैं, वेदों का वास्तविक अर्थ लुप्त हो गया है, ऐसे समय में केवल
श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥५॥ |
Secret
knowledge of Mantras has disappeared, yogis do not live disciplined
life, real meaning of Vedas is forgotten. At such a time, the Lord
Krishna is my only refuge.॥5॥ |
नानावादविनष्टेषु सर्वकर्मव्रतादिषु।
पाषण्डैकप्रयत्नेषु कृष्ण एव गतिर्मम॥६॥
|
भिन्न-भिन्न प्रकार के मतों के कारण शुभ कर्म और व्रत आदि का नाश हो गया
है, पाखंडपूर्ण कर्मों का ही आचरण हो रहा है, ऐसे समय में केवल श्रीकृष्ण
ही मेरा आश्रय हैं॥६॥ |
Due to various sects, fasts and other pious duties are not performed.
Sacred acts are not done with pure heart. At such a time, the Lord
Krishna is my only refuge.॥6॥ |
अजामिलादिदोषाणां नाशकोऽनुभवे स्थितः।
ज्ञापिताखिलमाहात्म्यः कृष्ण एव गतिर्मम॥७॥ |
आपका नाम अजामिल आदि के दोषों का नाश करने वाला है, ऐसा सबने सुना है, आपके
ऐसे संपूर्ण माहात्म्य को जानने के बाद, केवल आप श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय
हैं॥७॥ |
Everybody
is aware that by taking your holy name Ajamil and others have become
free from their sins. Knowing your infinite kindness, O! Lord Krishna,
you are my only refuge.॥7॥ |
प्राकृताः सकल देवा गणितानन्दकं बृहत्।
पूर्णानन्दो हरिस्तस्मात्- कृष्ण एव गतिर्मम॥८॥ |
सभी देवता प्रकृति के अंतर्गत हैं, विराट का आनंद भी सीमित है, केवल
श्रीहरि पूर्ण आनंद स्वरुप हैं, अतः केवल श्रीकृष्ण ही मेरा आश्रय हैं॥८॥ |
All other deities are under control of Nature(Maya). Even the pleasure
of Virat(Brahm) is limited in scope. Only Sri Hari bestows infinite
bliss. Hence, Lord Krishna is my only refuge.॥8॥ |
विवेकधैर्यभक्त्यादि रहितस्य विशेषतः।
पापासक्तस्य दीनस्य कृष्ण एव गतिर्मम॥९॥ |
विवेक, धैर्य, भक्ति आदि से रहित, विशेष रूप से पाप में आसक्त मुझ दीन के
लिए केवल श्रीकृष्ण ही आश्रय हैं॥९॥ |
Especially for someone like me who is without discrimination, patience
and devotion and constantly attached to sins and incapable, Lord Shri
Krishna is the only refuge.॥9॥ |
सर्वसामर्थ्यसहितः सर्वत्रैवाखिलार्थकृत्।
शरणस्थमुद्धारं कृष्णं विज्ञापयाम्यहम्॥१०॥ |
अनंत सामर्थ्यवान, सर्वत्र सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने वाले,
शरणागतों का उद्धार करने वाले श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूँ॥१०॥ |
I
worship Lord Krishna, who is all powerful, omnipresent and bestower of
all benefits and saviour of all those who seek his protection.॥10॥ |
कृष्णाश्रयमिदं स्तोत्रं यः पठेत्कृष्णसन्निधौ।
तस्याश्रयो भवेत्कृष्ण इति श्रीवल्लभोऽब्रवीत्॥११॥ |
श्रीकृष्ण के आश्रय में और उनकी मूर्ति के समीप जो इस स्तोत्र का पाठ
करता है उसके आश्रय श्रीकृष्ण हो जाते हैं, ऐसा श्रीवल्लभाचार्य का कथन है॥११॥
|
Whosoever
recites this Krishnashraya considering Sri Krishna as his only refuge
and in the presence of his statue, he will be protected by Lord Sri
Krishna himself. This is the promise of Sri Vallabhacharya.॥11॥ |
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