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Tuesday, March 17, 2015

Shri RamChandra Kripalu(Ram stotra.22)




Shri RamChandra Kripalu(Ram stotra.22)

 https://youtu.be/YBt0zQ1eZf8

 

https://youtu.be/6PEITKxCstU

 


 श्री रामचन्द्र कृपालु
श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् .
नवकञ्ज लोचन कञ्ज मुखकर कञ्जपद कञ्जारुणम् .. १..

कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् .
पटपीत मानहुं तड़ित रुचि सुचि नौमि जनक सुतावरम् .. २..

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् .
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् .. ३..

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणम् .
आजानुभुज सर चापधर सङ्ग्राम जित खरदूषणम् .. ४..

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् .
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादिखलदलमञ्जनम् .. ५..

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 https://youtu.be/EbfTXo8eNh4


श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं । नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं ॥१॥
व्याख्या- हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर. वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है. उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है. मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥
कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम । पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं ॥२॥
व्याख्या-उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवो से बढ्कर है. उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है. पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है. ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हू ॥२॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम ॥३॥
व्याख्या-हे मन! दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी , दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले,आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर ॥३॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं । आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं ॥४॥
व्याख्या- जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है. जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है. जो धनुष-बाण लिये हुए है. जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं । मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं ॥५॥
व्याख्या- जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है. तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे ॥५॥
मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो । करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥
व्याख्या-जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सावला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा. वह दया का खजाना और सुजान (सर्वग्य) है. तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥६॥
एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली । तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥७॥
व्याख्या- इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्सित हुई. तुलसीदासजी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली ॥७॥
जानी गौरी अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥८॥
व्याख्या-गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता. सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे ॥८॥
गोस्वामी तुलसीदास

https://youtu.be/O_57Aig30Bk





Sri Ramachandra Sthuthi
[The octet on Ramachandra]
[Prayer to Lord Ramachandra]
By Sant Thulasi das
Translated by P. R. Ramachander

Sri Ramachandra Krupalu bhaju bhaya bhava bhaya dharunam,
Nava kanja lochana, kanja mukha, Kara kanja, pada kanjarunam. 1

Sing about that merciful Ramachandra,
For driving away the fears of miserable life,
For he has lotus like eyes, Lotus like face,
Lotus like hands and lotus like legs.

Kandarpa aganitha amitha cchavi, navanila neerada sundaram,
Pata peetha maanahu thaditha, ruchi suchi naumi janaka suthavaram. 2

My salutations to the consort of Sita,
Who is prettier than countless cupids,
Who is pretty like the freshly formed cloud,
And is clad in ever pure yellow silks,
Which shines like the lightning.

Bhaju dheenabandhu dinesa dhanava daithya vamsa nikandanam,
Raghunanda aanandakanda kaushala chanda, dasaratha nandanam. 3

Pray to that sun like friend of the oppressed,
Who exterminated the clan of asuras and Rakshasas,
Who is the source of joy belonging to the clan of Raghu.
And who is the son of Dasratha and moon to the Kosala.

Sira makuta kundala charu udharu anga vibhooshanam,
Aajanubhuja sara chapa dhara, samgrama jitha kara dhooshanam. 4

He is adorned on his head by a crown,
Wears ornaments over his pretty body,
Carries bow and arrow in his long hands,
And in war won over Khara and Dhooshana.

Ithi vadathi Thulasidasa, Sankara sesha muni mana ranjanam,
Mama hrudaya kanju nivasa, karu kamadhi khala dala ganjanam. 5

Thus tells the saint Thulasidasa,
To him who entertains the mind,
Of Shankara, Sesha and other sages,
Oh Lord live in the lotus of my mind,
And destroy completely desires,
And evil thoughts for ever.

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Also see

https://youtu.be/3lRt8gUSPB0


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