Kaala Bhairavaashtakam –(Stotra.37)
http://youtu.be/ASa08VbK5V4
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देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादि योगिबृन्द वन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 1 ॥
भानुकोटि भास्वरं भवब्धितारकं परं
नीलकण्ठ मीप्सितार्ध दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकाल मम्बुजाक्ष मस्तशून्य मक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 2 ॥
शूलटङ्क पाशदण्ड पाणिमादि कारणं
श्यामकाय मादिदेव मक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 3 ॥
भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्तचारु विग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोक विग्रहम् ।
निक्वणन्-मनोज्ञ हेम किङ्किणी लसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 4 ॥
धर्मसेतु पालकं त्वधर्ममार्ग नाशकं
कर्मपाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्ण केशपाश शोभिताङ्ग निर्मलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 5 ॥
रत्न पादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकं
नित्य मद्वितीय मिष्ट दैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्प नाशनं करालदंष्ट्र भूषणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 6 ॥
अट्टहास भिन्न पद्मजाण्डकोश सन्ततिं
दृष्टिपात नष्टपाप जालमुग्र शासनम् ।
अष्टसिद्धि दायकं कपालमालिका धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 7 ॥
भूतसङ्घ नायकं विशालकीर्ति दायकं
काशिवासि लोक पुण्यपाप शोधकं विभुम् ।
नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 8 ॥
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्ति साधकं विचित्र पुण्य वर्धनम् ।
शोकमोह लोभदैन्य कोपताप नाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम् ॥
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