HARI DAS KELILILA(1to 10)(Haridas bhajan.2)
introduction....
. विशुद्ध नित्य विहार----स्वामी श्री हरि दास जी जैसा ' रसिक भयौ नही है भू-मंडल आकास ' उन्ही की कृपा से ही नित्य विहार को समझा जा सकता है ii उन की शरण ग्रहन करने से यह गूढ़ ज्ञान का लेश मात्र अनुभव हो सकता है i स्वामी जी का यह विशुद्ध विहार उन के ११० पद्यों में से प्रथम पद्य से ही समझा जा सकता है i माई री सहज जोड़ी प्रकट भई---------------------------- ------------------------------ -------
अति विशुद्ध पूर्णतम प्रेम के सागर को केवल रसिक ही अनुभव कर सकतें हैं i
इस महा मधुर पूर्णतम प्रेम के सार और साकार स्वरुप श्री बांके बिहारी जी
हैं, जो जन्म से रहित हैं , और सदा निज रंग महल श्री वृन्दावन में
क्षण-क्षण किशोर वयस् के प्रथम समागम एकांत रस विलासमय नित्य विहार ले अखंड
एक रस आनन्द में सदा निमग्न रहते हैं i और उसी के दृढ अनन्य हैं विशुद्ध
पूर्णतम प्रेम के आवेश में न निद्रा-भोजन , न दिन- रात का भान होता है और
यह ही लगता है कि अभी मिलन ही नही हुआ i
श्री कुञ्ज बिहारी युगल का प्रेम अति विशुद्ध है इस सहज शुद्ध प्रेम में
आसक्ति एवं रीझ का कारण न तो रूप होता है, न गुण और न ही ऐश्वर्य वही प्रेम
विशुद्ध होता है जो सहज, स्वाभाविक और दूसरे के प्रेम पर रीझ कर होता है
केलि माल के प्रथम पद्य में ही श्री बिहारी-बिहारिनि कु के स्वरुप का वर्णन
करते ही स्वामी श्री हरिदास जी ने कहा है कि, अद्धय प्रेम रस कि यह जोड़ी
रसरंग में उसी प्रकार सतत संग रहती है जैसे घन- श्याम और सौदामिनी i इसका
अनादि अनन्त नित्य विहार भूतकाल में था , वर्तमान में है और भविष्य में भी
रहेगा i अन्य युगलों की भांति यह जोड़ी कभी नही टलेगी i इनका अंग-अंग
उज्ज्वलता, सुघड़ता और सुंदरता से भरपूर है i समान प्रेम, समान सौंदर्य
,सामान श्री अंग एवं समान वयस् के यह प्रिय-प्रियतम समान रहस्यानन्द विलास
में परस्पर स्पर्द्धा करते हैं i जिस का आदि है उसका अंत भी अवश्य होता
है परन्तु सहज जोड़ी का न आरम्भ है ,न अवसान,,यह सहज है इसी से त्रिकाल
में विद्यमान है. इसी कारण यह विशुद्ध प्रेम का प्रतीक है i
10.bhulen bhulne hoon maan na kar piyari--------- In the most wonderful and uniqe nikunj groove where both the divine pair is comfortably seated on a beautiful throne of flowers tell her Oh Ladliji I feel that you are so cheerful and pleasing then why do you change your attitude with me so suddenly. I request you that even by mistake do not get annoyed with me .When I see your angry eye brows going higher I become very miserable & I forget myself totally & I am engrossed in your thoughts. Oh beloved if you will go on looking at me so indifferently as if you do not recognize me. How will I ever live my life without you. I will not survive without your love. When ladliji did not give any response to Bihariji’s pleading he looked upon Lalita sakh and told her why don’t you tell Ladliji to break her vow to speak to me. I promise that in future I will never do any thing to offend her. After hearing this Ladliji was so overwhelmed that she near Bihariji and made him happy. (Courtesy :ASHA BHARDWAJ )
introduction....
. विशुद्ध नित्य विहार----स्वामी श्री हरि दास जी जैसा ' रसिक भयौ नही है भू-मंडल आकास ' उन्ही की कृपा से ही नित्य विहार को समझा जा सकता है ii उन की शरण ग्रहन करने से यह गूढ़ ज्ञान का लेश मात्र अनुभव हो सकता है i स्वामी जी का यह विशुद्ध विहार उन के ११० पद्यों में से प्रथम पद्य से ही समझा जा सकता है i माई री सहज जोड़ी प्रकट भई----------------------------
स्वामी
श्री हरि दास जी की कृपा सार को 'महा मधुर - रस सार' कहना अति उत्तम हैi
श्री स्वामी जी के अनुयायी रसिक संतों की रचनाओं एवं उनकी वाणियों से प्रेम
रस टपकता है ,जो साधक संतों के निकट बैठ कर ही समझ आता हैi जैसे ही साधक
रस कृपा का पात्र बंन जाता है, उस की अटक समाप्त हो जाती है वह जीव 'प्रेम
देश का वासी हो जाता हैi प्रिय-प्रियतम कि उपासना व उन की अष्टयाम सेवा का
ध्यान करने से साधक को सर्वोतम भाव मिलते हैं i व्यक्ति -विशेष को ही अपने
हृदय मंदिर रुपी निकुंज में नित्य विगार के दर्शन करने लगता है i जिस को
इस रस का चस्का लग जाता है उसे इस मायावी संसार में कुछ नही भाता i उस का
तो केवल मात्र एक प्रोयजन रह जाता है कि श्यामा श्याम की अनवरत रूप से
श्री युगल जोड़ी की अष्टयाम सेवा में ध्यान रहे ,ताकी कोई सेवा चूक नही जाए
i वह श्यामा श्याम की केलि को ही ध्यान में निहारते रहते हैं iजब एक बार
स्वामी श्री हरिदास जी की कृपा साधक पर हो जाती है, तब वह नित्य नन्द रस
का अनुभव करने लगता है i तब उस को सब जगह श्री श्यामा-श्याम की छबि का
अवलोकन होता रहता हैi
निम्न लिखित पदों में संतो के कुछ पद्य जो सरलता से सभी भक्त समझ सकें , को
लिखा गया है.
थोड़ी बहुत अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार टिप्पणी भी की है i आशा है कि
भक्तजन मेरी अनेक त्रुटीओं की तरफ ध्यान नही देकर मूल भाव को पठन करते हुए
अपने भाव बढायें गे i
Nikunj
is a place in Vrindavan which is surrounded by vrinda or tulsi shrubs.
In these grooves of creepers the divine jori or couple loves to spend
their pastime. This place exists in Nidhivan from where Shri Banke
Bihari appeared by hearing the sangeet of Swami Shri Haridasji some 500
hundred years ago. Some of his leelas which Swami Shri Haridasji
experienced in the nikunj in his Samadhi state are being explained
below. All effort has been made to explain according to what he actually
saw or experienced but incase something has been added by my own bhava,
I ask forgiveness from Him.
पद---१==
माई री सहज जोरी प्रगट भई जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे
प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रहीहै न तरिहहिं जैसें
अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें................अर्थ
---श्री वृन्दावन कि रास उपासना के विशुद्धम स्वरुप के प्रकाट्य कर्ता
स्वामी श्री हरिदास जी हैं ...ऐसा मन जाता है कि नित्य विहार रूप निकुंज
में छिपा हुआ था ..उसे धरती पर कलयुग के लोगों के लिए स्वामी जी ने अति
कृपा करके प्रकट किया ..श्री स्वामी जी प्रातः स्नान कर के श्री निधिवन में
जप करते थे .एक सघन कुञ्ज में प्रवेश कर बार बार प्रणाम करते तो उनके
शिष्य देखते रहते किसीसा क्या है ,इस कुञ्ज में .......एक दिन स्वामी जी की
कृपा हो हीं गयी और वह उनको विहार में प्रवेश करने की आज्ञा दे ही दी
..गुफा में उन्होंने एक प्रकाशमय रंग महल देखा .......वहां अदभुत कुञ्ज महल
में बहुत सुंदर आसन पर बिहारी-बिहारिनी जू बैठे हुए थे .......स्वामी जी
ने अपने शिष्यों को इशारा किया और वह उनको रंग महल से बाहर ले आये ....तब
स्वामी जी का यह प्रथम पद भी प्रकट हुआ ....वह बोले .आहा आहा
............................कै सी अदभुत जोरी प्रकट भई है आज ...................यह सहज जोरी गौर-श्याम घन दामिनी जैसी है ..........................प्रि याजू
के अंग कान्ति गौर और प्रीतम जू के सुगम अंग श्याम रंग के हैं ........जिस
प्रकार आकाश में बिजली और मेघ विलसें हैं ..इसी प्रकार यह जोरी कितनी
सुन्दर लग रही है .........................यह जोरी पहले भी थी ,अब भी है
,,और आगे भी रहेगी ..............यह जोरी नित्य हीं रहती ......... स्वामी
श्री हरिदास जी कहते हैं ===प्रिया प्रियतम तुम दोनों एक दुसरे से कम नहीं
हो ,समान वेश है तुम्हारो............स्वामी जी ....कहते हैं ---यह जोरी
अजन्मा ,नित्य किशोर है ...यह नित्य वृन्दावन में निकुंज महल में विराजमान
है ,,यही जोरी स्वामी श्री हरिदास जी के अनुरोध से धरा पर रहने को राजी हो
गयी ...............हमारे बहुत बड़ा सौभाग्य है कि हमें इतनी सहजता से श्री
ठाकुर बाँकेबिहारी जी के दर्शन हो जाते हैं .............उनका सुन्दर मोहक
स्वरूप का तो क्या कहें ,जो एक बार देखता है ,वह उन्हें निहारते थकता हीं
नहीं ..........उनके विशाल नेत्रों में जिसने एक बार भी डुबकी लगा ली ,वो
उन्हीं में डूब जाता है .......उनके मुख कि मुस्कान ,नाक कि बेसर,ठोढ़ी का
हीरा,,कानों के कुण्डल, माथे का पाग .टिपारे ,चन्द्रिका ,मोर-पंख आदि मिलकर
ऐसी मोहित कर देते हैं कि भक्त अपने आप को उन पर प्राण निछावर करने को
तैयार रहता है .....ऐसे बाँकेबिहारीजी को कोटि कोटि प्रणाम ,,,,बोलो
बाँकेबिहारी लाल कि जय .
..श्री हरिदास जल विहार वर्णन ---- पुनि राग अनुरागनि रंगे श्री यमुना तट लटकत चले i जल मध्य जुग मुख चन्द्र बिबनि ठटकि अवलोकत भले ii तिहिं लोभ तटनी तट निकट हेवे सलिल केलि करन लगे i रस त्रिशत उर अभिलाष खेवन अमी बीज भरण लगे ii जल मधि करत कलोल बिहारी रीझी भीजी भिजवावत सहचरि सुख -निधि संग सुकुमारी तन मन प्रान समान सगबगे लपटी नेह पट धारी श्री दासि किसोर सनेह सने नव केलि कला विस्तारी
=
4—jori vichitra bnaai ri maai—The love of Radha Krishna is transcendental. They are always intoxicated by each others love. They are the spiritual enjoyers of love and are always in harmony with each other. The nikunj is always self illuminated and the ever permanent pair is ever young with youthful energy. The love pastimes of the divine pair are the internal potency which is displayed in the div ine Vrindavan. This love is different from the lust type of love that we are aquatinted with. Their love is divine and hence no one should mistake it for the worldly love. In this 4th stanza of keli mal composed by Shri Haridas ji who is always with them in the nikunj palace helping them in performing their pastimes, Swami sri Hari das ji explains that this divine couple is absolutely unique and any one who has a mere glimpse of this jori will loose his heart. One will not like to blink his eyes even for a fraction of a second. Just as the clouds and its lightening never like to separate even for a second , the same way this duo also never wants to separate it self from one another. In the words of swami shri haridas ji both are wedded to each other and love to remain in the nikunj which is their home. This nikunj is an eternal land which is full of transcendental enjoyment which is full of bliss, unlike the mundane world there is no influence of time which changes things from one stage to another.
..श्री हरिदास जल विहार वर्णन ---- पुनि राग अनुरागनि रंगे श्री यमुना तट लटकत चले i जल मध्य जुग मुख चन्द्र बिबनि ठटकि अवलोकत भले ii तिहिं लोभ तटनी तट निकट हेवे सलिल केलि करन लगे i रस त्रिशत उर अभिलाष खेवन अमी बीज भरण लगे ii जल मधि करत कलोल बिहारी रीझी भीजी भिजवावत सहचरि सुख -निधि संग सुकुमारी तन मन प्रान समान सगबगे लपटी नेह पट धारी श्री दासि किसोर सनेह सने नव केलि कला विस्तारी
=
KELI LEELA
1. ‘Mai ri sahaj jori pragat bhai’ ……
When Bihari ji appeared on Bihari Panchmi day in the month of December, there was a music recital where great classical singers had gathered to sing for Bihari ji. Swami Haridasji sang such enchanting padaas that Bihari ji was forced to make an appearance. Both Radha ji and Bihari ji appeared and were smiling at the devotees.
At once Swami ji uttered ‘Mai (referring dear friend or sakhi), how fortunate are all the people assembled here. Rishes, munis, devotees have to do tough tapas to have darshan of
Radha Shyam, but see here, how easily everyone here is having darshan of the divine Couple. This jori has existed since time immemorial; it still exists and will continue to exist forever’.
Swami Shri Haridas was an incarnation of Lalita Sakhi who has also existed with the jori always. Bihariji’s complexion is dark like cloud and Bihariniji’s complexion is fair like the lightening that occurs in the clouds during the rainy season. When both the Yugal jori is together they look so beautiful as if there is lightening coming from the clouds.
This divine jori is immortal. It is beyond time, space and imagination. Their form is eternal, auspicious, infallible, and spiritual and they are always eternally youthful. Each and every part of their body is so perfect that no metaphor is befitting to express their beauty.
The next thing that comes to ones mind is out of the two who is more beautiful. Swamiji has explained in the next verse that their beauty, intelligence, manners, elegance, vigor and liveliness is exactly same. Both are equally beautiful and none is less than the other in any way.
Swami Shri Haridas ji, who is constantly watching their leela says, if there is a contest of beauty, intelligence, elegance, knowledge or any such thing, both of them will surpass each other.
1. ‘Mai ri sahaj jori pragat bhai’ ……
When Bihari ji appeared on Bihari Panchmi day in the month of December, there was a music recital where great classical singers had gathered to sing for Bihari ji. Swami Haridasji sang such enchanting padaas that Bihari ji was forced to make an appearance. Both Radha ji and Bihari ji appeared and were smiling at the devotees.
At once Swami ji uttered ‘Mai (referring dear friend or sakhi), how fortunate are all the people assembled here. Rishes, munis, devotees have to do tough tapas to have darshan of
Radha Shyam, but see here, how easily everyone here is having darshan of the divine Couple. This jori has existed since time immemorial; it still exists and will continue to exist forever’.
Swami Shri Haridas was an incarnation of Lalita Sakhi who has also existed with the jori always. Bihariji’s complexion is dark like cloud and Bihariniji’s complexion is fair like the lightening that occurs in the clouds during the rainy season. When both the Yugal jori is together they look so beautiful as if there is lightening coming from the clouds.
This divine jori is immortal. It is beyond time, space and imagination. Their form is eternal, auspicious, infallible, and spiritual and they are always eternally youthful. Each and every part of their body is so perfect that no metaphor is befitting to express their beauty.
The next thing that comes to ones mind is out of the two who is more beautiful. Swamiji has explained in the next verse that their beauty, intelligence, manners, elegance, vigor and liveliness is exactly same. Both are equally beautiful and none is less than the other in any way.
Swami Shri Haridas ji, who is constantly watching their leela says, if there is a contest of beauty, intelligence, elegance, knowledge or any such thing, both of them will surpass each other.
पद
--२ ,,,रुचि के प्रकाश परस्पर खेलन लागे..राग रागिनी अलौकिक उपजत
....नृत्य संगीत अलग लाग लागे ............
.राग ही में रंग रह्यौ ..रंग के समुद्र में ए दोउ झागे ...
..श्री हरिदास के स्वामी श्यामाकुञ्ज बिहारी .पे करति हैं और कब प्रिया जू
ये रंग रस हीं में पागे ..........[अर्थ===2==अद्भुत निकुंज महल प्रकाश रूप
जो कि विहार का हीं प्रकाश है ,बहुत हीं सुन्दर सजा हुआ है ..अत्यंत सुंदर
फूलों कि सेज पर दोनों लाडली-लाल जू बन्नी बन्ना विराजमान हैं ..महारास
रात्रि का चन्द्रमा जग-मगा रहा है .,,श्री हरिदास जी सहज सुंदर फूलों का
श्रृंगार किये ,फूलों के आसन पर विराजमान हैं ,दोनों लाडली-लाल जू को लाड़
लड़ा रहे हैं .......उन्हें देखकर हरिदासी सखी ,दूसरी सखी से कहती है
..==='हे सखी देखो तो ,ये दोनों प्रिया -प्रियतम का मनोरथ उनका प्रकाश ही
है ..विहार में दोनों रास खेलते हैं ..राग तो प्रियतम का स्नेह है ..और
रागिनी लाडली जू का स्नेह .इन दोनों का स्नेह कितना अलौकिक प्रतीत होता है
.........कभी तो बिहारिनी जू विशेष नृत्य करती हैं .और कभी बिहारी जी अपने
निराले ढंग से नृत्य करते हैं .....दोनों का नृत्य अलग-अलग ही लग रहा है
...ऐसे लग रहा है कि दोनों रंग के समुद्र में झागें हैं,यानि आनंद के
समुद्र में झूल रहे हैं .........श्री हरिदासी जू बोलीं =कि आज के खेल में
अति रंग बरस रह्यो है ...दोनों रस में इतने मगन हैं कि महा-आनंद के भार से
दोनों के अंग मिली के एक ही हो गए हैं .............श्री हरिदास .
2 .Ruchi ke parkaash praspar khelan laage-----
In the most unique and enchanting nikunj mahal which is fully decorated with mogra flowers, the divine couple is seated on a beautiful throne just like a newly wedded couple
Both are blushing and looking at each other lovingly The winter moon is shining so brightly that it has illumined the entire nikunj. Hari dasi sakhi is also seated in front of them on a decorated seat of flowers. She is telling another sakhi that the two are enjoying keli leela according to their liking and both are laying in their own light and are unaware of what is happening around them. They are totally engrossed in their pastime. The love of Radhaji is the raaga and that of Biharii is raagni. Their love is divine At this time ladliji was dancing to special steps and at other times Bihariji was dancing at its own steps This way both are dancing as if they are dancing on different rhythms .In the ocean of this bliss both are dancing as if they are swinging on the blissful ocean of anand. Swami ji says today’s leela is full of colorful bliss Both are so engrossed in the bliss that the weight of their body has become one.
In the most unique and enchanting nikunj mahal which is fully decorated with mogra flowers, the divine couple is seated on a beautiful throne just like a newly wedded couple
Both are blushing and looking at each other lovingly The winter moon is shining so brightly that it has illumined the entire nikunj. Hari dasi sakhi is also seated in front of them on a decorated seat of flowers. She is telling another sakhi that the two are enjoying keli leela according to their liking and both are laying in their own light and are unaware of what is happening around them. They are totally engrossed in their pastime. The love of Radhaji is the raaga and that of Biharii is raagni. Their love is divine At this time ladliji was dancing to special steps and at other times Bihariji was dancing at its own steps This way both are dancing as if they are dancing on different rhythms .In the ocean of this bliss both are dancing as if they are swinging on the blissful ocean of anand. Swami ji says today’s leela is full of colorful bliss Both are so engrossed in the bliss that the weight of their body has become one.
पद
--3 ..ऐसे हीं देखत रहौं ,जनम सुफल करि मानौं....
.प्यारे की भावती ,भावती जी को प्यारो ,जुगल किसोरहिं जानौं .
.छिनु न टरौ,पल होहूँ न इत उत ,,रहौं एक ही तानौं.
.श्री हरिदास के स्वामी .श्यामा कुञ्ज बिहारी मन रानौं.
अर्थ =====श्री हरिदास जी जो कि महाराज नृपति रसिक अनन्य चूड़ामणि श्री
ललिता जू के अवतार हैं ,बिहारी बिहारिनी जू कि सभी लीलाओं का सृजन करते
हैं..
आर्थ ===पद -३ ..वे अपनी मन भांवती नित्य वा अविचल जोरी को दिन दिन लाड़
लड़ाते रहते हैं ..इन का आधार ही विहार है ,,,भूख ,प्यास ,नींद सर्दी गर्मी
सुख दुःख से परे यह केवल लालन लाल कि लीला का ही मधु पान करते रहते हैं
,,.एक बार सुंदर निकुंज में अति सुंदर आसन जो फूलों का बना हुआ था ,पर
प्यारे कि भावती[प्यारी]प्रियाजू और भांवती के प्यारे श्री बिहारी जू
..आसीन हो करके मन को प्रसन्न करी नैनन में आंजन दे परस्पर गलबांही दिए
बैठे थे .....महा आनंद में दोनों रस मत्त मिली विहार कर रहे थे ...जो कि
सखियों को अत्यंत सुख दे रहा था ..श्री हरिदासी जू सुंदर फूलों का श्रृंगार
किये ,रत्न जडित चौकी पर बैठी हुई आनंदित हो रही थी ..तब उन्होंने ये वचन
बोले ====[हे सखियों सुनो,ये सुंदर जोरी को तो बस देखती ही रहूँ बलिहारी
जाऊं ,ऐसे ही देखती रहूँ तो मेरा जीना सफल हो जायेगा ...जो ये करें ,सो
इनको भावे वो करें .सो इनको भावे इनकी प्रसन्नता में ही मेरी प्रसन्नता है
....ये जो प्यारे कि भावती ..और भांवती के प्यारे हैं ,इनको तो मैं युगल
किशोर हीं जानूँ हूँ ..ये तो एक क्षण भी बिछड़ते नहीं ........श्री हरिदास
जी कहते हैं ==कि ये तो हर समय सुख में ही मगन रहते हैं ..लाड़ली जू तो
अलबेली हैं ,गर्वीली हैं ,सुकुमारी हैं .मनमौजी हैं ..चाहे वह जो करें
,लालजी तो उनके रूप के लोभी हर समय डरते रहते हैं कि प्रिया जू उनसे रूठ न
जाएँ .............इनकी चितवन पे बलिहारी जाऊं ,,,,सखियों ने भी मन भावती
जोरी के दर्शन करके अपना तन मन शीतल किया ......वह अपने आप को बड़भागी मानती
है कि उन्हें मदमाती युगल जोरी को निहारने का सौभाग्य मिला है ......श्री
हरिदास
3.
Essise hi dhekhat rahon janam sufal kari maanu--- In the beautiful
nikunj both Bihariji and Biharniji is seated on a beautiful throne.
Roses and other sweet scented flowers are spread all around them making
the place utterly enchanting. Both are locked in each others arms and
are engrossed in absolute bliss. Haridasi sakhi is seated beside them.
She too has decorated herself with flowers. As she looks at them
admiringly she says Oh sakhi I love to see these two in total bliss,
when they are sitting embracing each other and lovingly looking at each
other and making each other joyful. At such an occasion I feel my life’s
purpose has been fulfilled. The duo never like to be separated even for
a second and are always interlocked in each others arms. Both are dual
youngsters who are made for each other. Swami sri Haridas ji says that
both shyama as well as shyam Sunder are in my heart. I am never tired of
seeing their keli leela. In fact the purpose of Haridasi is to ever
make them ever happy.
=
पद=4
...जोरी माई री विचित्र बनायीं ,काहू मन के हरन कौ...
.चितवत दृष्टि टरत नहि इत उत .मन वचन करम याहि संग भारन कौ.
.ज्यौ घन दामिनी संग रहत और वारन कौ .
..श्री हरिदास से स्वामी श्यामा कुञ्जबिहारिनी तारन कौ ..
..अर्थ-4 ..श्यामा कुञ्ज बिहारी जू कि जोरी ने निकुंज महल में विचित्रों
में विचित्र बनायीं है ..सुन्दर सजाये हुए आसन पर .प्रिया-प्रियतम परस्पर
एक दुसरे का मुख देखते रहते हैं ..इनकी दृष्टि नैक भी इधर उधर नहीं होती
....वहीँ पर हरिदासी सखी भी गुलाब के फूलों के आसन पर बैठी हुई देख रही हैं
....उनसे रहा नहीं गया तो बोल पड़ी ====यह जोरी विचित्र है सखी ..इनके मन
ही मन में जो रस कि तरंग उपजत है ,सो बहुत विचित्र है ,यह जोरो विचित्र कि
प्रतिबिम्ब है ..इसीलिए यह काहू के मन को हर लेते हैं ..लाल जी कि दृष्टि
,प्रियाजू के अंग अंग को अवलोकित है .,,उनके मन से मन मिल गए हैं ...उनके
अति मृदुल वचन मन को हर लेते हैं ..इन दोनों कि अंग छटा इतनी सुंदर है
,जैसे घन दामिनी हो ....जैसे वृन्दावन इनके संग हमेशा रहता है ,,उसी प्रकार
घन दामिनी भी नित्य इनके संग रहता है .एक पल के लिए भी बिछुड़ते नहीं
.........श्री हरिदास जी कहते हैं ====कि यह विहार है ,उससे और भी छिन-छिन
[[पल पल ]अति उत्सुकता बढती रहती है ..इस विहार से वह नैक हूँ नहीं टरते
हैं ..इनकी एक नख छवि पर, कोटि कोटि कामदेवों कि शोभा फीकी पड़ जाये
...इनके माधुर्य,लावण्य,प्रेम और गुणों का पूरा बखान करना तो संभव ही नहीं
....श्री हरि दास
4—jori vichitra bnaai ri maai—The love of Radha Krishna is transcendental. They are always intoxicated by each others love. They are the spiritual enjoyers of love and are always in harmony with each other. The nikunj is always self illuminated and the ever permanent pair is ever young with youthful energy. The love pastimes of the divine pair are the internal potency which is displayed in the div ine Vrindavan. This love is different from the lust type of love that we are aquatinted with. Their love is divine and hence no one should mistake it for the worldly love. In this 4th stanza of keli mal composed by Shri Haridas ji who is always with them in the nikunj palace helping them in performing their pastimes, Swami sri Hari das ji explains that this divine couple is absolutely unique and any one who has a mere glimpse of this jori will loose his heart. One will not like to blink his eyes even for a fraction of a second. Just as the clouds and its lightening never like to separate even for a second , the same way this duo also never wants to separate it self from one another. In the words of swami shri haridas ji both are wedded to each other and love to remain in the nikunj which is their home. This nikunj is an eternal land which is full of transcendental enjoyment which is full of bliss, unlike the mundane world there is no influence of time which changes things from one stage to another.
पद--5
..इत उत काहे कौ सीधारत [मेरी ]...आँखिन आगे हि तौ आव
..प्रीति कौ हित हौं तौ जानो ..ऐसौ राखी सुभाव
..अमृत वचन जिये कि प्रकृति ,सौ मिली ऐसौई से दाव
,श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कहत री प्यारी ,प्रीति कौ मंगल ग़ाव.
अर्थ -पद --5 ..अति विचित्र अद्भुत प्रीति कुञ्ज महल ,जहाँ से निरंतर रस कि
वर्षा होती रहती है ,और सखियाँ झरोखों के उस परदों के बीच में से अवलोकन
करती हुईआनंदित होती रहती हैं और उसी रस में झूमती रहती हैंविविध भांति से
यह दिव्य भूमि सुशोभित होती है ..जहाँ आंगन में नित्य अमृत जैसे वचन कि
परस्पर वर्षा होती रहती है
यहाँ नित्य दुल्हिन सी बिहारिनी जू वा बिहारी जू दुल्हे से ,,सेज पर
विराजमान हैं.इस पद में दूल्हा बिहारी जी ,दुल्हिन बिहारिनी जू से कह रहे
हैं -----हो लाडली जू !तुम्हारे ये नैन सलज्ज हुए मुझे देखते हैं ,परन्तु
जब मैं तुम्हें देखता हूँ ,तब तुम इधर उधर देखने लग जाती हो ,आपसे अनुरोध
है कि अप ऐसा ना करो ,..और मेरी आखों से ऑंखें मिलाएं..तुम तो सदा कृपा
करती हो ,ये तो तुम्हारा स्वभाव ही है/.तुम अपनी दयालुता कि प्रसिद्द गाथा
को ,क्या भूल गयी हो ?तुमने मौन क्यूँ धारा हुआ है ?यह चुप्पी को कृपया खोल
दो ..हे प्यारी जू ,आप अपनी मधुर वाणी से बोलो..तुम्हारे वचन निर्मल हैं
,सो तुम मुझसे बात करो..आपके बोल सुनकर हमारे नैन और कान शीतल होते
हैं..मुझको अपने अंक में भरकर मेरा सुख बढ़ा दो
श्री हरिदास जी कहते हैं कि यह सुनकर प्रिया जू ने मुस्कुरा कर बिहारी जो
को अपने उर से लगा लिया..तब बिहारी जी बोले -प्रीति को मंगल गावों,यानी हे
प्यारी!ऐसे हीं मुझ पर कृपा किया करो..मुझे एक छिन[पल] भी नहीं भूलो ..आप
कि कृपा से अब हम दोनों मंगल रूप विहार के अंग संग मिल गए i
5
iit utt kaahe kon sidharat meri ankhen aage tu aav—In the nikunj where
both the pair is seated surrounded by sakhi’s and sahchari’s the bride
Biharaniji is stealing glances at Bihariji but when Bihariji tries to
see her she looks here and there and pretends that she is not interested
to glance at Bihariji. When this has happened constantly Bihariji get
impatient and pleads to her to look eye to with him and give him solace.
He asks her Oh Ladliji please shower your mercy on me and look at me .
Don’t turn away from me. We both belong to this nikunj and I know it too
well that you also find my company blissful then why do you get puffed
up without any fault of mine? You are full of divine love and even your
devotees consider you as more compassionate than me, then why aren’t you
showing any compassion towards me. Oh Radhe why are you speechless?
Please open up your silence and speak the sweet words which are full of
nectar. your each and every word is precious to me and sooths my ears.
Come please give up all your complaints and give me that blissful
happiness. Shri Haridasi who had been listening to all this smiled at
Radha ji and gave her a signal to stop her tantrums and stop teasing
Bihariji further. Biharniji gave a sweet smile and looked into the eyes
of Bihariji and both were in a state of bliss.
=
पद--6.-प्यारी
जू जैसे तेरी आँखिन में मैं अपनापौ देखत हौं . ऐसे तुम देखती हो किधोऊ न
नाहिं ?
होऊं तोसौं प्यारी आँखिन मूंदी रहौं तौ लाल निकसी कान्हा जाहिं .
मोको निकसवे कौन ठौर बतावो,,साँची कहूं बलि जाऊं लागों पांवहिं .
श्री हरि दास के स्वामी स्यामा तुम्ही देखियो चाहत और सुख लागत कांहिं..[
[[[अर्थ 6==सघन निकुंज स्थली पूरा हरियाली का शुभ वातावरण में वृक्षावली के
फुल अपने महक से सारे वातावरण को मोहक बना रहे हैं
यहाँ की पवित्र भूमि मरकत मणि से सुशोभित हो रही है ,यहाँ के रज अति पावन
कृपामयी वा अत्यंत सुकोमल है ,जिस पे अलबेली नित्य जोरी विहार करें हैं
महल की अति दिव्य शोभा का वर्णन कौन कर सकता है ?
इसी सुन्दर निकुंज में नैन रुपी कमल, सखी के उर रुपी सेज ,जहाँ शोभित दोनों
पिय-पियारी महासुरती रस के रस में बतरा रहे है ...
उस समय बिहारी जी श्री प्रिया जू से बोले ==प्यारी जू !!तुम्हारा मुख तो
सुषमा का आगर है ,मेरा तो प्राण-सर्वस्व है ..मैं आपको एक पल भी देखता तौ
मेरा मन छटपटा जाता है ..एक निमिष के लिए भी आप की छवि को मेरे नैन नहीं
छोडते
इन कटीले धारे ,कजरारे नैनों में मैं अपनापौ देखता हूँ ,,क्या तुम भी मेरी
आँखिन में ऐसे हीं अपनापौ देखती हो कि नहीं ?
यह सुनकर लाडली जू बोलीं ==हो प्यारे !तुम तो अपनापौ ही मेरी आँखों में
देखते हो ,मैं तो तुमको अपनी आँखों में मूंदे [[बसाये]]ही रखती हूँ ,ताकि
तुम इनसे निकल ही ना जाओ ,,,,प्रियतम यदि मैं अपनी को मुंद लूँ तौ तुम निकल
कर कहाँ जाओगे ?.
बिहारी लाल जी ने जैसे ही ये शब्द सुने कि निकल कर कहाँ जाओगे ,वह घबरा गए
और बोले ==हो प्यारी जू मेरा ठौर तौ आपका हृदय कमल है ..नित्य मेरा मन
भ्रमर रूप में वही पराग पान करता है ..मैं तुम्हे सच कह रहा हूँ ,बलिहारी
जाता हूँ ,पाँव पड़ता हूँ ...तुम ही मेरी जीवनधन हो ,मुझे हरिदासी कि सौगंध
है ,केवल तुमको ही देखना चाहता हूँ ..मुझे और कहीं भी सुख नहीं है
..........हरिदासी सखी यह सुनकर बोली --==तुम दोनों कि अट-पटी बातों को कौन
समझ सकता है ..?.....श्री हरिदास
6
Piari ju jaise teri aakhin pe aapanapo dakhat Hun—in the blissful
nikunj mehal where the nectar of blissful love is always flowing in the
form of rain, the bride as well as the bridegroom (RADHA KRISHNA) are
always seated on a beautiful throne decorated with lovely flowers such
as mogra, merrigold,lotus and Roses. Suddenly Kunj Bihari ji asks
Ladliji, ‘oh my dearest ladliji I am keen to know that when I see in
your eyes I feel you are mine .Do you feel the same feeling of
belongingness for me? At this Ladliji replies Oh priatam How can I see
you because I keep my eyes always closed so that you don’t go anywhere .
The moment Ladliji said go anywhere Lalji misunderstood that she is
leaving him and hence in lamentation tone said Oh please don’t leave me
my dear beloved Radhe because if you take me out of your eyes where else
will I go? I don’t have any other place to go and am staying happily in
your eyes for ever. I swear upon your holy feet that I want to reside
in your eyes for ever . There is no bliss for me anywhere or you suggest
another place where I could go and get the same bliss. The sakhi’s in
the nikunj smiled at Bihari’s desperate love for ladliji. They were
looking at each other feeling happy to see the keli of the pair.
Afterall they have no other work except to render transcendental
services to the divine couple because they are always engaged in
pleasing the pair in any way possible hence they are always there to do
any kind of service for them. This eternal place ie nikunj or divine
Vrindavan is full of transcendental viberations where even these sakhi’s
also remain youthful always. They are auspicious, infallible and
spiritually advanced by the blessings of Shri Haridasji.
=
पद==7=प्यारी
तेरो वदन अमृत को पंक .. ता मे भींगे नैन दोय
.चित्त चल्यो काढ़न कौ , विच संधि सम्पुट में रहिवो भवे.
बहुत उपाई आही री प्यारी ..पीय न करत सवे ..
श्री हरि दास के स्वामी स्यामा कुञ्ज बिहारी ऐसी रहो हवे
अर्थ ----पद --7 --- अदभुत लाल रत्नों की निकुंज जो की अति सुन्दर गुलाब की
महक से मन मोहने वाली खुशबु से भरा हुआ है .
बहुत ही सुन्दर फूल बंगला बना हुआ है जिस पर खूबसूरत अटारियाँ वा झरोखे बने
ही है .फूलों की सेजिया पर दोनों प्यारी जू और लालजी सन्मुख हो बैठे बातें
कर रहे हैं .
श्री हरि दासी जू सुन्दर फूलों का श्रृंगार किये फूलों के आसन पर विराज मान
है .
उस समय लाल जी लाडली जू से बोले == , हे राधे तुम्हारा बदन तो अमृत की पंक
के जैसा है , इस में कोइ फंस जाए तो निकल ही नहीं पाएगा .
लाल जी आगे कहतें हैं की मेरा चित जो मेरे नैनों को,पंक से निकाल ही नही पा
रहा है बहुत उपाय हैं पर मुझ से यह होता ही नही कि तुम्हे अपने मन से या
नैनो से निकाल सकूँ .
श्री हरिदास जी के स्वामी श्यामा कुञ्ज बिहारी कहतें हैं की जब बिहारी जी
ने ऐसे कहा तब राधाजू ने उनकी अभिलाषा पूर्ण की और उन्हे सर्व अंग से गले
लगा लिया .
जिस भाँति पिया ने दान माँगा उसी भाँति प्रिया जू ने दान दिया .
7.pyaari
tero badan amrit ki pank----In the nikunj where both the divine jori is
seated on a beautiful throne and is surrounded by the sahchari’s who
are ever youthful, auspicious, spiritual, infallible and free from
hunger, birth and death , Everyone is enjoying the pleasant aroma of the
atmosphere which is so vibrating with the sweet smell of jasmine and
rose scent. At this juncture Bihariji breaks the silence and says Oh
Priyaji your body is like a slice of nector in which my eyes are always
engrossed. If anyone gets entangled in such beauty it is impossible for
him to come out of it. My eyes are like the buzzing bees who are always
looking at your enchanting face and so many times I have tried to take
out your vision from my eyes but have failed in all attempts to do so.
Swami shri Haridasi was amused at hearing Lalji’s pleading and requested
Priyaji to fulfill his desire.Priya ji was looking embarrassed but
smiled back at lalji who was relieved that she was no longer annoyed
with him.The sahchar’s were happy to see them extremely joyful because
that is all they want. That is their only desire to see the happy in
their keli leela.
पद==8=आवत
जात बजावत नूपुर
मेरो तेरो न्याव दयी की आगे,जो कछु करो सो हमार सर ऊपर
निपट निकट मवास ह्वे रही प्यारी पैंद दूपर
श्री हरिदास की स्वामी स्यामा कुञ्ज बिहारी विलसौ,निहचल धूपर .,,,
अर्थ-पद--8..महा अद्भुत निकुंज महल में सखियन श्री बाँके बिहारी वा
बिहारिनी जी के रूप को निरख के चकित थकित हो रहीं हैं .कुजों में बहुत
भाँति-भांति की स्वर्ण लताएं स्याम तमाल से लिपटी हुई हैं ..रूप के भंवर
में रस छलक रहा है ..चतुर सखियन गाये गाये के इस रस केलि को सींच रही हैं
...सखियन झरोखों से उन्हें निहार रही हैं .आनंद में मग्न सुंदर सिंहासन पर
दोनों बिराजमान बतिया रहे हैं ..लाडली जू कुछ सावधान हैं और बिहारी जी विवश
हो रहे हैं ...उसी समय श्री हरिदासी जू श्री लाडली जू से बोली ---==हो
प्यारी जू , आज बिहारी जू आप के रूप पर अधिक तदाकार हो रहे हैं.उन्होंने
पूरा श्रृंगार किया हुआ है ..मुरली धारी हुई है , मोर मुकुट धारण किया हुआ
है , पीत पट धारण किया हुआ है ,जो फहरा रहा है .
जरा उन की तरफ देखो तो सही ?लाडली जू यह बात सुन कर बिहारी जी को देखने को
थोड़ा सा मुड़ी. तब हल्के से उन के नूपुर बजने लगे ...यह नूपुर बजने की
ध्वनि बिहारी जी को सुनाई दी , और उसी समय उनका ध्यान छूट गया .उनका पूरा
श्रृंगार जाता रहा ...जब सावधान हुए तो मुरली कहीं पड़ी रह गयी , मुकुट कही
रह गया ,कही पीत पट....तब बिहारी जी बोले --- हो प्यारी जू तुम आवत -जात
नूपुर बजावत हो , सो कृपा करके मेरे उर पर विलास कर नूपुर क्यों नही बजाती
हो ?हे लाडली जू तुम तो निष्काम हो , मैं सकाम हूँ...तुम गर्बीली हो ,
हठीली हो ,मेरे दुःख की बात को जानती हो..तुम्हारी जैसी इच्छा होगी सो
हमारे सर ऊपर...जो दुःख देना है दीजो परन्तु इतनी कृपा जरूर कीजिये की मेरे
हिय में विहार कीजे .तुम ऐसी हठ नही करो ...प्यारी जू मैं जानता हूँ तुम
उदार हो . मेरे प्राणों में तुम ही रम रही हो..
जब लाडली जू ने बिहारी जी की यह बातें सुनी तो उन्हे भान हुआ की उनके कारण
बिहारी जी कितने दुखी हो रहे हैं
हँसते हुए बोली --- तुम्हारी मन में ऐसे विचार क्यों आते हैं .यह भ्रम को
छोड़ दो .यदि तुम मछली हो तो मैं अगाध जल हूँ...फिर ऐसी व्याकुलता
क्यों...तब लाडली जू ने बिहारी जी को रीझ कर प्रेम से अंक में भर लिया .
8
Aawat jaath bajaawat nupur------ .In the nikunj when both the divine
pair was seated on a beautifully decorated seat Ladliji was pretending
to look here and there as if Lalji was not sitting there. At this Lalji
was getting impatient waiting for her response. Haridasi who always
takes care of their keli leela was watching this and addresses Biharniji
and tells her.Oh piyariji Don’t you realize that Bihariji is very eager
to have your attention. He has dressed himself so elegantly and is
wearing his full shringaar that is his favorite yellow color pitamber
and pink pataka and is wearing his peacock feathered crown He has
brought his flute as well and wants to play some tunes to enchant you so
that you can respond to his love. Why are you so indifferent towards
him. See his face. He is feeling so hurt and impatient. When radha ji
turned to look at the sakhi her nuppur (a kind of an ornament Indian
women wear in the ankle which has small bells which make a tinkling
sound when the lady moves or walks ) started making a bell like sound.
On hearing the charming sounds of the bells of Radhaji’s nupur Bihariji
at once uttered Oh Shyama ju the tingling sound of your nupur have woken
me up from deep meditation. I was completely lost and all my make up
was spoilt on hearing vibrating notes of your nupur.I was so engrossed
in the magical sound that my clothes were scattered here and there, my
flute was placed somewhere and my peacock feathered crown had fallen off
without my knowledge.
Oh Radhe when your nupur make such enchanting sound why don’t you grace me by making the sound on top of my heart. I know you don,t need me as much as I do and you are self contended and don’t need my attention. You are so puffed up all the time and act according to your own wishes. You don’t realize how sad I become when you are in such moods. O.K If that makes you happy I will obey your orders now and will not complain any more but please I have a request that don’t go away from my heart and don’t be so obstinate in this issue. Radha ji who was actually having fun teasing Bhariji smiled and looked at him lovingly . She became normal.
Oh Radhe when your nupur make such enchanting sound why don’t you grace me by making the sound on top of my heart. I know you don,t need me as much as I do and you are self contended and don’t need my attention. You are so puffed up all the time and act according to your own wishes. You don’t realize how sad I become when you are in such moods. O.K If that makes you happy I will obey your orders now and will not complain any more but please I have a request that don’t go away from my heart and don’t be so obstinate in this issue. Radha ji who was actually having fun teasing Bhariji smiled and looked at him lovingly . She became normal.
पद--9....दृष्टि
चैंप वर फंदा मन पिंजरा..राख्यो ली पंछी बिहारी
चुनो सुभाव प्रेम जल अंग स्रवत..पिवत न अघात रहे मुख निहारी
प्यारी प्यारी रटत रहत रहत छिन छिन.याके और न कछु हिय री .
सुनी श्री हरिदास पंछी नाना रंग देखत ही..देखत प्यारी जू न हारी ....
अर्थ पद 9 ..इस धरा पर श्री हरि दास जी ने अपने भक्तों के लिए नित्य विहार
महल का गोपनीय रस प्रदान किया है .जो जो प्राणी इस रस का आनंद लेते है उनका
तो जन्म सफल हो गया .इस रस को देवी देवता भी तरसते हैं . वही रस श्री
स्वामी जी की कृपा से हम कलियुग वासियों के लिए कितना सुलभ हो गया है ,तीन
लोक , 14 भुवन में जो आनंद दृष्टिगोचर हो रहा है , यह वही छलकते रस की एक
छींट का ही प्रकाश है .अद्भुत निकुंज के सुन्दर बगीचे में जहां मन के
पिंजरे में बिहारी पंछी को राधा जी ने खिलौना बना रखा हैइसके की रंग रूप
अंग अंग प्रीती है .यह रस से भरा हुआ है , सलोना है .जब बिहारी जी ने लाडली
जी को देखा , तब उनके नैनो में झलक प्यारी जू ने देखि .सखी हरि दासी जो की
ललिता सखी के ही अवतार हैं इन दोनों को देख रही थी . अर्थात , हे सखी !
प्यारी जू की रस भरी चितवन जो कभी प्रकाशित नही होती , सो आज प्रकट हुई
हमने देखि .
प्यारी जू आप तो कृपा की मूर्ति हो आप के मन में जो हुलास है सोई मन पिंजरा
है .प्यारी जू का स्वभाव कृपालुता का है सोई वह पंछी को चुग्गा हैचुग्गा
एक प्रकार का पक्षी है .प्रेम जल जो की महानंद रुपी अमृत है वह रोम रोम में
भरा हुआ है ., सोई जल पीते बिहारी जी थकते ही नही .यह पंछी तो हर समय
प्यारी प्यारी ही रटता रहता है और इस के हिय में नही .सखी आशीष देती है की
यह पंछी तेरो लाडली जी को लाल सदा चिरंजीव रहे . आप ऐसे ही कृपाल रहो
..श्री हरि दास
9-------drishti
chenp var fundha mun pinjara-----The divine nector is flowing in the
nikunj mahal where the divine good deeds is the mandir and the beauty is
the beautiful garden. In which Priyaji has caged Bihari ji like a birds
though it is something with which Biharani ji plays with all the
time.The different variety of colours in each part of his being are full
of nectoral love and the colour is dark black which is so beautiful
that any one who glances at it cannot remove his eyes even for a second.
When Bihariji glanced at Biharaniji she noticed the pure love in his
face. Haridasi sakhi who was sitting in front of them also noticed both
of them glancing at each other so lovingly and it was then that she
wrote this couplet. Oh sakhi Piyariji who always tries to hide her
pleasure on seeing Bihariji is unable to hide it today. Today
Biharniji’s grace on Bihariji is like a loop in which she has caught
Bihariji in her eyes. Her heart seems to be a cage in which she has
captivated Bihariji. Bihariniji’s nature is that of kindness and
Bihariji is going on gazing at her. The nectoral flow of love which he
is experiencing from Biharaniji’s face is so full of amrit that he is
not tired or satisfied by going on and on drinking it.
This loving bird that is Bihariji is mad that he keeps chanting piyari piyari and nothing else. He has nothing else in his heart except the holy name of Ladli ji. Sakhi Haridassi blesses the couple and says may this love bird Bihariji live for ever. You Biharniji must go on showering your kindness to him and go on making him happy so that he goes on reciprocating his love for you.
This loving bird that is Bihariji is mad that he keeps chanting piyari piyari and nothing else. He has nothing else in his heart except the holy name of Ladli ji. Sakhi Haridassi blesses the couple and says may this love bird Bihariji live for ever. You Biharniji must go on showering your kindness to him and go on making him happy so that he goes on reciprocating his love for you.
पद-10--भूलें
हूँ भूलें हूँ मान न करि री प्यारी..तेरी भौंहें देखत प्राण न रहत तन..
ज्यों न्योछावर करौं प्यारी तो पे..काहे ते मूकी कहत स्याम घन
तोहि ऐसे देखत मोहिब कल..कैसे होई जू प्राण धन
सुनी हरि दास काहें कहत यासो,,,छाँड़ीब छाँड़ी अपनोपन,,..
,पद --10 ==अर्थ ==अति सुन्दर रंग महल में बिहारी बिहारिनी जू मुदित हुए
बैठे सखियों को अत्यंत सुख दे रहे हैं . बात करते करते लाडली जी कुछ चुप हो
गयीं . बिहारी जी की बातों को अनसुनी करने लग गयीं .
श्री हरि दासी सखी जू से लाडली जू की रूखाई छिपी नही रही . वह तो उंनका रुख
देख कर उनकी सेवा करतीं हैं .यह तो इन दोनों के मनोरथ को तत्काल जान लेती
हैं .हरिदासी सखी यह वचन बोली ---लाडली जी आप अपनी प्रतिज्ञा क्यूँ तोड़
देती हो ?बिहारी जी राधा जी से बोले ===हो प्यारी जू ! अभी अभी तो आप अति
प्रसन्नता से बात कर रही थी .आप से मैं विनती करता हूँ उससे मानिए . मैं
भूला पर तुम मान नही करो .आप की भौंहें जब महागर्व भरी चितवन से देखती हैं
तो मेरे प्राण महाव्याकुल हो जातें हैं .इनको अपनी बिलकुल भी सुध नही रहती
है .हो प्यारी जू , मैं अपना सब कुछ आप पर न्योछावर करता हूँ , तुम नेक
बोलो तों सही .कौन सी बात पर तुम ने ये चुप्पी लगाई है ?हो प्यारी जू ऐसे
गर्व भरी चितवन से तुम मुझे देख रही हो तों मेरे को कल कैसे आयेगी ?
प्राण धन ! तुम तों मेरे प्राणों के धन हो,,,तब श्री श्याम सुन्दर जी बोले
-- हो प्यारी जू आप अभी तक तो अति प्रसन्न थी . अब एक छिन में ही क्या हुआ
की आप मेरी ओर देख भी नही रही हो और इतनी रुखाई का व्यवहार कर रही हो ?तब
भी लाडली जू ने नेक भर भी उनकी तरफ नही देखा ,लाल जी जब बहुत निराश हो गए
तब श्री हरि दास जू से बोले ---ललिता सखी , आप ही इस गर्वीली को समझाओ की
इस तरह का व्यवहार नही करे//यह तुम्हारी बात जरूर मान जायेगी .इन से कहो की
मैं फिर कभी इनकी आज्ञा बिना कोई मनोरथ नही करूंगा जिससे यह रुष्ट हो
जायें .
श्री हरि दासी ने प्रिया जू को समझाया , तब जा कर उन्होंने मान को त्यागा
.और बिहारी जी को संतुष्ट किया //श्री हरिदास
10.bhulen bhulne hoon maan na kar piyari--------- In the most wonderful and uniqe nikunj groove where both the divine pair is comfortably seated on a beautiful throne of flowers tell her Oh Ladliji I feel that you are so cheerful and pleasing then why do you change your attitude with me so suddenly. I request you that even by mistake do not get annoyed with me .When I see your angry eye brows going higher I become very miserable & I forget myself totally & I am engrossed in your thoughts. Oh beloved if you will go on looking at me so indifferently as if you do not recognize me. How will I ever live my life without you. I will not survive without your love. When ladliji did not give any response to Bihariji’s pleading he looked upon Lalita sakh and told her why don’t you tell Ladliji to break her vow to speak to me. I promise that in future I will never do any thing to offend her. After hearing this Ladliji was so overwhelmed that she near Bihariji and made him happy. (Courtesy :ASHA BHARDWAJ )
Shree Kunjbihai shree Haridas Maharaj
ReplyDeletethank you so much for translation of 10 pads, (I am learning Hindi) is there any translation with meaning of 10 pads in Gujarati?
that would help me to understand better.. as learning Hindi and understanding it at my age seems very difficult than my mother tongue Gujarati... Bihari ji bless you