HARIDAS KELILILA (31 to 40)(Haridas bhajan. 5)
३१
===ऐसी तौं विचित्र जोरी बनी.ऐसी कहूँ न देखि सुनी न भनी .....
मनहूँ कनक सुदाह करि करि देह अदभुत ठनी.....श्री हरिदास के स्वामी स्याम
तमाले उछंगि बैठे धनी .............अर्थ ==पद ==३१ ----निकुंज में ऐसी
विचित्र जोरि विराज रही है कि सब सखियन उन पर बार बार बलिहारी जाती हैं
.उनकी चर्चा के अलावा उनको कोई दूसरा काम नहीं है ,,,पूरा दिन वह उन्हें
निहारते हीं रहती हैं और उनके गुणों का गान करती रहती हैं ,,,,,,,,बिहारी
बिहारिनि जु कि हँसन,लटकन ,चलन माधुरी उनके हृदय कि रस पूर्ति करता रहता है
.......प्रिया जु के नुपुर कि धीमी धीमी ध्वनि ,कँगन की खन खन की आवाज तों
मानों उनके दिल को लूट हीं लेते हैं ,,,श्री वृन्दावन धाम तों सुख का धाम
है ,,यहाँ की ललित कुन्जें सदा प्रिया प्रियतम जु की जोरि को अपनी गोद में
खिलाने को आतुर रहती है
नित्य नयी नयी लीलाएँ उपजती रहती हैं ..,लताएँ यहाँ झुक झुक कर इनके चरणों
में लोट पोट होने को आतुर रहती हैं ......आज तों निकुंज में बहुत अधिक नव
नव छवि छारही है ,,,आज तों बिहारी जी ने राधा जु का वेश धारण किया है .,और
राधा जु बिहारी जी बनी हुई हैं ...दोनों ने ऐसी कृपालुता कर के आज वेश पलट
लिया है,,दोनों की चाह .परे, रूप अंग-अंग में और फिर अंग अंग जैसे पिघल कर
एक हीं रूप -देह बन गए ....दोनों की उपमा में घन दामिनी भी लजाती है
,,हरिदास जी के स्वामी श्याम तमाल बन बैठे हैं ,,,,,प्यारी जु लाल जु का
तकिया लेकर बगल में बैठीं हैं ....हरिदासी सखी आज की विचित्र जोरी को
निहारती हुई बोली ----आज प्यारी जु ,बिहारी जी पर कृपालु हैं ...इस शोभा का
वर्णन नहीं किया जा सकता ....दोनों का हास-परिहास देखकर वह प्रेम में डूब
गए ...श्री हरिदास
31----eisi
tho vichitra bani------ The divine jori is unique that each and every
part of their body is fullof nectoral bliss. In today’s leela in the
nikunj today pyariji has become pritam and pritam has become pyariji.
They both have melted and become one. The ghan damini metafer is also
inappropriate today Swami sri haridas ji says it seems that bihariji is a
tamaal (trunk of a tree) and Ladliji is just holding on to it. No
person can describe this keli leela which can be understood only by the
duo.
पद
---३२ ---हँसत खेलत बोलत मिलत देखो मेरी आँखिन सुख बीरी परस्पर लेत कहवावत
ज्यूँ दामिनी घन चमचमात सोभा बहु भांतिन सुख .........सृति घुरि राग
केदारौ जम्यौ अधराति निसा रोम रोम सुख .....श्री हरिदास के स्वामी स्यामा
कुञ्ज बिहारी के गावत सुर देत मोर भयौ परम सुख्.....अर्थ --पद==३२
---निकुंज में दोनों पिया-प्रिया सखियों से घिरे हुए हैं ,यहाँ प्रेम रस की
वर्षा हो रही है ,,निकुंज में शीतल ,मंद, सुगंधित पवन वेगवेती हो रही है
..फूलों की अति सुन्दर महक से जल ,थल,पुलिन ,उपवन सब महक रहे हैं ,चारों ओर
से मोर ,पिक ,चातक ,कोकिला आदि पक्षियों की जय जयकार की ध्वनि सुनाई दे
रही है .....ऐसे वतावरण में बिहारी जी वा [और] बिहारिनि जु रस से भरे सुख्
सागर में हिल मिल कर हँसते हुए खेल रहे हैं .....सखी हरिदासी इस सुख् को
अपने नेत्रों के द्वारा देख कर ,और सखियों को कह रही हैं....
तुम्हारा
हंसना खेलना बोलना और मिलने का सुख मेरी आखों मे देखो।मुझे यह अति प्रिय
लगता है। आप के आभूषण की ध्वनि मेरे चित को चूरा लेती है।जिस तरह घन और
दामिनी मिलती है इसी तरह आप के अंग मिलते हुए अति सुन्दर लगते है। कभी आप
एक दूसरे की बाहो मे कभी एक दूसरे को पान खिलाते हुए जो केलि करते हो , मै
देखती ही रह जाती हूं। श्री हरिदास के स्वामी कुछ बिहारी जब ऐसे आनन्द मै
मगन होते है तो सिरोही को अति सुख होता है
तेरे नूपुर धुनि री प्यारी हरवं सुनि i अचल चले चल रहै री रहित गति ii
खग -मृग व्रत मानों धरयो है मुनी i बव निकुंज वर सुह्स्थ सावरों लाल ii
सेज्या रचित बहु कुसुम चुन चुनी i श्री विठाल विपुल की रीति मिलि है ---
मदन जीति तू सिरमोर सब गुननि गनी ii .............................. ........
प्रिया-प्रीतम निकुंज मगल में सिंघासन पर विराजमान हैं, बिहारिनिदासी जू का
आवगमन होते ही प्रीतम जी अति प्रस्स्नता से प्रेम सहेली का स्वागत करते
हुए बोले -हे प्यारी आवो ! तुम्हारा स्वागत है आप खूब आईं समय पर प्यारी
सखी !
बिहारिनि दासिजू प्रसन्ता सेप्रिय जी से बोली बोली---'हे प्यारी जू ! आज तो
बिहारिजू आपके रूप को देख कर अति मोहित हो रहें हैं ऐसा लगता है इन् के तन
मन ,प्रान इन के बस में नही हैं.' ऐसे लग रहा है किपिय का मन अब प्रिय जू
कि नुपुर कि धुन सनने मै मचल रहा है.इसध्वनि के सामने तो मुरली की धुन भी
फीकी हो जाती है ,जो मुरली पूरे विश्व का मन मोहती है आज इस नूपुर की धुन
के आगे लज्जित हो रही है.आज तो नुपूर की ध्वनि को सुनने के लिय मोहन कैसे
मौन ह् गये हैं और प्रिय जू आप से को बार बार नुपूर की धनि सुनने का अनुरोध
कर रहें हैं.आज लाडली जू
१ आप की भी भरपुर कृपा है की आप प्रीतम पर बार बार लाड़ लडाते ही उन को अपनी
नुपूर की ध्वनि बार बार सुना कर मुस्कराते हुए हर्षित का रही हो और पिय की
ओर कितने मधुर भाव से निहार रही हो.प्रीतम भी कैसे तुम्हारे चरणों मैं लोट
पोट हो रहे हीं.प्रिय जू के चंचल्चार्नन से नूपुर की अप्पोर्व ध्वनि सुन
कर लाल जू कोटि कोटि मनोरथ की पूर्ती कर रहें हैं.उन का हृदय कमल कैसा खिल
रहा है , इनके श्रवणन से इन्हे कितना अपार सुख मिल रहा है प्रिय जू के चरनो
पे बलिहारी जाऊं , लाल जू इन चरनन पर रीझ -रीझ कर अपने उर पे लगा रहें
हैं.दोनों के अनंद के आन्सू नैनों से झर रहें हैं. अपलक द्रिस्ज्ती से
प्रीतम, प्रियाजू को कैसे निहार रहे हैं ? दोनों ओर से शोभा सिंधु का मधुर
मिलन हो ऐसा लगता है.इनके मिलन सुख में आज समय का तो आभास ही नही हो रहा.वह
री सखि ! निकुंज मैं आज ऐसा रस बरस रहा है की लाल में प्यारी और प्यारी
में लाल के दर्शन हो रहे हैं.युगल के आज के विहार का रस बहुत अनिखा है
,दिव्या है इसकी गति तो कोई विरला ही समझ सकता है.
सन
मुख भयै अभै कीनै निज जन जानि, जिन जिन कै मन संदेह भ्रम भीर कौ i
साधन सिद्धांत सब खत कवि महन्त ,भजन एकांत रस हंस नीर ल्शीर कौ ii
निपट मिटी विहार रस रीती कौ सिंगार, ऐसौ कौ उदार उपकारी प्र्पीर कौ i
रसिक अनन्यनि भावे श्री मुख सांवरो गावे, गुरुनि श्री हरि दास आसुधीर
कौii
अर्थ--- स्वामी श्री हरिदास जी कि अति कृपालुता का वर्णन करते हुए श्री
विहारिनिदासी जू इस पद्य मैं उन कि कृपा का बखान करते हैं और कहते है,
कि जगत में परमार्थी और कवि व कई महंतों नें साधना एवं सिद्धन्त के
ऐसे से स्वरुप का वर्णन किया है , जिस से अनेक प्रकार के भ्रम उत्पन हो
जाते हाँ लेकिन जो जन स्वामी श्री हरि दासी जू की शरण मैं आ जातें हैं ,
उन पर प्रिय-प्रीतम कि कृपा का कहना ही क्या? उन्हें तो यह ललिता सखी
निहाल कर देती है. इन्हें तो वह सब का सार स्वरुप प्रथम समागम में ही
एकांत -रस- विलास महल का अद्भुत नित्य विहार रस दे कर निहाल कर देती
है.अपने निज जन को वयस् प्रिय-लाल का नित्य विहार कि अनन्यता का दान कर
देती है.इसिलिय इस मार्ग को हंस कि तरह नीर क्षीर विवेक जैसा सहज व सरल
मार्ग बताया है.यह कैसा है? इस में सकामना नही है इस मैं तो पिय-प्यारी
को निष्कामता से लाड़ चाव किया जाता है ,सभी सखिया निस्वार्थ प्रेम से
सेवा करतीं हैं, उन्हें अपने लिय कोई सुख कि कामना नही है.यह रस बहुत ही
दुर्लभ है. यह प्रेम देश है , जिस में केवल देना ही देना है लेने का तो
कोई काम ही नही.प्रेम मैं अपन्न्पो तो मिट जाता है अपने इष्ट कि स्वांस से
स्वांस मिलाने से ही सुख मिलता है.पिय-प्यारी का रुख देख कर ही इनकी सेवा
हो सकती है अपना अभिमान अलग करके सब कामनाओं को त्यागना होता है श्री
हरि दास जी अति उदार , उपकारी, एवं निष्काम हैं उन से किसी कि पीड़ा नही
देखी जाती इसलिय यह अमूल्य वस्तु को कोई देने मैं कंजूसी नही करते.
परन्तु इस प्रेम के खजाने को अपने निज जनों के आगे ऐसे खोल देते हैं
जैसे कोई दानी अपने दोनो हाथों से दान करता हो. ऐसे सतगुरु श्री स्वामी
हरिदास जी कि शरण लेने मैं ही भलाई है...................ललिता सखी ही
श्री हरि दास कि की अवतार हैं. उन के बिना निकुंज महल मैं कोई भी प्रवेश
नही पा सकता.
32----
hansat khelat, bolat,milat------ In the niknj mahal the divine couple
was talking and laughing with each other. Haridasi sakhi was overwhelmed
and delighted to see them enjoying their keli leela. She adresses
bihari bihariniji and tells them oh ! Bihariji the way you are chatting,
laughing , playing and meeting each other today, it is giving me imense
pleasure to my eyes Both of you are so engrossed playing togeter and he
sound of your ornaments are making sch a lovely sound making me feel
all the more happy. I love to watch you both in this playful mood when
you look at each other so lovingly. Your meeting is just like the eeting
of ghan and damini i.e. clouds and lightening. This is a blissful sight
for me.
पद
33----अद्भुत गति उपजती अति नृत्यत, दोऊ मंडल कुँवर किसोर ...सकल सुगंध
अंग भरी भोरी पिय नृत्यत , मुस्किन मुख मोरी परिरम्भन रस रोरी ....ताल धरें
बनिता मृदंग चन्द्र गति घात बजै थोरी थोरी ....सप्त भाइ भाषा विचित्र ,
ललिता गाईं चित चोरी ...श्री वृन्दावन फूलीं फुलियो पूरण ससि, त्रिविधि पवन
बहे थोरी थोरी ...गति विलास रस हास परस्पर , भूतल अद्भुत जोरी ...श्री
यमुना जल विथकित पहुपनी वर्षा ,रतिपति डारत त्रीन तोरी ...श्री हरि दास के
स्वामी स्यामा कुञ्ज बिहारी , कौं रस रसना कहैं को री
........................पद ==३३-अर्थ ==-निकुंज में श्यामा श्याम जू
विराजमान सखियों के संग सेवित हो रहे हैं ,कोई सखी चंवर डुला रही है , कोइ
बीड़ा यानी पान खिला रही है , कोइ वीणा बजा कर सुरीली आवाज़ में गा कर उन्हें
रीझा रही है इत्यादि . .सख
ियन अपनी अपनी सेवा में कुशलता से वा सावधानी से अपने अपने तरीकों से
उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश में हैं . इतने में एक सखी दूसरी सखी से बोली
---अरी सखी देखो तौं जर्रा !! बिहारी जी वा बिहारिनी जू फूलों में कैसे
सुसज्जित हो रहे हैं |बसंत ऋतू में नए नए अंग अंग फूल रहे हैं और शरद ऋतू
में पूरणमासी का चंद्रमा प्रिया जू के मुख को प्रकाशमय बना के जगमगा रहा है
|तीन प्रकार की शीतल सुगंद मंद मंद चल रही है |यमुना जल के दोनों किनारे
गौर और श्याम इनको मिलने का सम्बन्ध बाँध रहे हैं .|दोनों गले में बाँहें
डाले ही कितना सुन्दर नृत्य कर रहे हैं .घन दामिनी दोनों के रस की वर्षा कर
रही है .|दोनों के अंग अंग में कंचन के मणि जड़े हुए हैं |ललिता सखी चारो
ओर गान कर रही है .और नव नव लाड लड़ा रही है ..|एक सखी उनसे कहा रही है
---हे ललिते सखी जू ! देखो तौं , दोनों पिया -प्रिया जू के अंग अंग मिल रहे
हैं और यह ऐसा विचित्र नृत्य कर रहे हैं . |मानो चंद्रमा का विकास हो रहा
हो .दोनों अपने आप को भूल गयें हैं .और कोइ सुध बुध नही है ..|संगीत में
चन्द्र गति ही बज रही है . |जैसे चंद्रमा धीरे धीरे बढ़ता है , उसी प्रकार
राधा जू का नृत्य की गति धीरे धीरे बढ़ रही है . | सप्त सुर जो है उसी की
भाषा में राधा जू मधुर मधुर स्वर में जब गाने लगती है तौं दोनों का चित्त
चुरा लेती है | श्री वृन्दावन रुपी दोनों के तन अंग हांफने से फूल रहे हैं .
| लाडली जू का तौं मुख पूओर्निमा के चन्द्र जैसा है , परन्तु चन्द्रमा तौं
कलाहीन है .हमारी राधा जू तौं 64 कला सम्पूर्ण हैं .| विहार में धीमी धीमी
मृदु पवन यमुना जी के दोनों तटों के नाई[तरह ] दोनों को मिला रहे हैं .|
सुरती विलास में जो जो अंग -अंग में गति उपज रही है सो रस बिहारी प्रिया जू
हंसती हैं .| दोनों की इस में होड़ा होड़ी चल रही है यह जोरी भूतल पर
अत्यंत अद्भुद जोरी है .| इस रस में दोनों मगन हो कर अक दुसरे को गले से
लगा रहे हैं .| स्वामी श्री हरि दास जी कहतें हैं की इस आनंद वर्षा का ऐसा
कौन है जो वर्णन कर सकता है .| श्री हरि दास
.33.-----adbhood
gati upjat athi nrityan ----- It is spring time in the nikunj mahal and
new flowers have bloomd filling the air with their scented aroma all
over the surroundins. The sakhi’s who are also there, doing sewa of the
duo are enthralled to see the beauty of the wintry full moon which is
illuminationg the whole place specially Priya ji’s face. Three varieties
of breeze is blowing which is very cool and soothing. The banks of
yamunaji on both the sides seem to be representing bihari bihariniji.
The dark colour of the water and the white sand of the banks. Both are
looking soenhaning in their posture of being in each others arms . It
seem they re studded with priceless gems all over.One sakhi is telling
sakhi Haridasi : sakhi see how lovely the duo is loking playng new keli
leela’s and just see them dancing whih is so unique that they get lost
in each other. This jori is only of its own kind in the whole univrse.
Swami sri haridas ji says: Who can describe the beauty of the nectral
rain coming from the two megh and damini.
पद
==34====प्यारी जू जब जब देखौं तेरो मुख तब तब नयों नयों लागत
ऐसे भ्रम होत मैं कहूँ देखि न री दुति कौं दुति लेखनी न कागत...कोटि चन्द्र
तैं कहाँ दुराये री नये नये रागत
श्री हरि दास के स्वामी स्याम कहत काम की सांति
न होई न होई तृप्ति रहौं निसी दिन जागत ..........................अर्थ
34----- राधा जी का बिहारी जी से अंतर गूढ़ प्रेम है जो की बाहर प्रकट नही
होता है , जबकि बिहारी जी प्रेमातुर रहतें हैं और उनके नैनो से तथा अंग अंग
में आतुरता दिखाई देती है .......लाडली जी लाल जी को अपने प्राणों से भी
अधिक प्रेम करती हैं और उनका मन चाहा करती हैं , परन्तु नव दुल्हिन के
लाडले स्वभाव के कारण वह लजीली है ऐसे लगता है कि वह मान कर रही हैं .,,जब
की ऐसा नही है..निकुंज महल में दोनों लाल जू व लाडली जू बैठे हुए हैं और
सखियन उनकी केलि लीला का अवलोकन करती हुई निहाल हो रही हैं
लाल जू लाडली जू से बोले ------हो राधे जू !! जब मैं आप का मुख देखता हूँ
तो क्षण क्षण में मुझे यह नविन ही दीखता है ....ऐसे लगता है की मैंने पहले
आप को कभी इतनी सुन्दर देखा ही नही ...ज्यूँ ज्यूँ मेरी केलि विलास की चाह
बढती जाती है , प्रसन्नता में मुझे आप का मुख नया नया लगता है,,,जब आप मान
करती हो , तब रूखाई में भी आप का मुख नया दीखता है तो प्रसन्नता में तो और
भी नया दिखेगा ...मुझे ऐसा भ्रम होता है की मैंने पहले आप की यह शोभा देखि
ही नही है .
यह शोभा की भी शोभा हीं है ..यह ना तो जानने में आती है , ना हीं लिखने में
.../श्री हरिदास
34-----Piyari
ju jab jab dekho tero mukh tav tav nayo nayo laagat---In the nikuj
mahal the divine couple is seated on a beautiful throne chating and
joking with each other. Lal ji tells Radhaji Every time I see you , I
feel I amseeing you for the first time.Your face looks new to me. I
always have doubts whether I have seen you before ir not. When you get
puffed upyou look different, when you are happy of oure you look very
beautiful. Your beauty is out of he universe which is indescriable and
can not be ritten by any one. Swami sri Haridas ji says oh shyama shyam
the more I look at your aces and keli leela , the more I want to go on
seeing. I don’t get satisfaction hence want to o on and on looking at
you both and want to awake all the time.
पद्य
--३५ --ऐसी जिय होत जो जिय सौं मिलै, तन सौं तन समाई लैहूँ तौं देखौं कहा
हो प्यारी
तोही सौं हिलगि आँखें आँखिन सौं मिली रर्हें...
जीवत कौं यहै लहा हो प्यारी
मोको इतौ साज कहा री हौं अति दीन तव बस
भुव छेप जाए न सहा हो प्यारी .
स्वामी हरि दास के स्वामी स्याम कहत राखी लें री
बाहू बल हौं बपुरा काम दहा हो प्यारी .....................अर्थ
------------पद्य ==३५--मनोहर कुञ्ज सदन जो की सुख की राशि है , जहां
प्रिया-प्रियतम की मोहिनी जोरी सेज पे शोभा दे रही है और साथ में श्री
ललिता -श्री हरिदासी सखी सुन्दर रत्न जटित चौंकी जो की फूलों से सुसज्जित
है , उस पे विराजमान हैं .| लाल जू लाडली जू से यह वचन बोल रहे हैं जो सभी
सखियन बहुत ध्यान वा चाव से सून रही हैं .===हो प्यारी जू ! तुम तौं सहज ही
मेरा मन हरती रहती हो .| तुम्हारे जैसी प्रेम प्रवीण , सुघर सिरोमणि जान ,
मन , कर्म वा वचन विलासिनी मैंने आज तक ना देखि है ना सूनी है .| तुम मेरे
तन मन में बसी हुई हो | तुम बिन मेरा अन्य कोइ हो ही नही सकता .| तुम मेरा
जीवन धन वा प्राण हो .| मेरा तुम्हे देख कर ऐसा जिय होता है कि,, की मेरा
जिय तुम्हारे जिय से मिल कर एक हो गया है .| मेरे तन में तुम्हारो तन समा
गया है ,तुम्हारे चन्द्रमा से मुख देख कर मैं चकोर की तरह पान करते करते
कभी नही अघाता .| हो प्यारी जू मेरी आँखें तौं तुम्हारी आसक्ति वाली आँखों
को देखती रहना चाहती ही हैं | मेरे जीने का एक यही लाभ है हो प्यारी ...जब
तुम मान की संभावना से अपने नैन तिरछे करती हो , तब मेरे तन मन में से मानो
प्राण ही निकल जातें हैं .| जब तुम प्रसन्न होती हो मैं तो तभी जीवित रहता
हूँ .| ओह प्यारी जू मुझ में इतन I सामर्थ्य नही है या योग्यता कहाँ है कि
तुम अपनी कृपा मुझ पर करती रहो ? मैं तो दीन और तुम्हारे विरह में व्याकुल
रहता हूँ परन्तु आप तो बेपरवाह हो | जब तुम अपनी पलक रुपी आँचल को छूपा
लेती हो तो मेरा मन अति अकुला सा जाता है .| हे प्यारी जू मैं तो बावला
यानी बेचारा दीन वा काम युक्त हूँ | आप कि शरण में हूँ .......श्री हरि दास
के स्वामी स्यामा , तब श्याम कहतें हैं कि मैं तों काम के कारण जला हुआ
हूँ अब तुम ही मुझे संभालो .| ............................. तब प्रिया
जू ने व्याकुल -विरह श्याम सुन्दर जी के नैनो से नैन मिलाये और मुस्कुराते
हुए बोली ==हो पिया ! मैंने कब मान कियो है ? तुम तों मेरे प्राण हो .|
मेरा जीवन भी तुम्हारे साथ ही है .| यह सून कर सब सखियन अति प्रसन्न हुई और
उनकी बलैयां लेने लगी .|श्री हरि दास35-----
eise jyae oth jo jyae soun jyae mile---- In The niknj mahal in the
presence of sakhi haridai the divine couple is in a blissful state of
mind. Lal ji is telling priyaji that when we both meet together then I
feel I am lik a chakor looking at the moon . My eyes are unable to take
of f my eyes from your face.That is the purpose of my life therefore
plese always remain in a happy mood with me. Ican not bear it when you
getpuffed up and stop talking to me. Oh ladliji I do not haveth
qualifiations that you bestow your kripa on me, I am only a simple
unqalified person who is always at your disposal for your compassion for
me . I am always eager for your blissful kripa but you you most of the
time are in an angry mood and your eyebrows are always showing anger. Oh
my dearest , I am not able to bear this behaviour of yours. Swami sri
haridas ji says Lal ji tells Ladliji please priya ji do not behave like
this and have compassion for me.
पद्य 36-----
आजू रहसि में देखियत प्यारी जू
एक बोल मांगो जो लिखि देहु
साखि तेरे नैन दसन कुच कुच
कटि नितम्ब जौं लिखि देहु
प्रीति द्रव्य ब्याज परस्पर
मन वच क्रम जो लिखि देहूँ....श्री हरि दास के स्वामी स्यामा प्यारी पै
बोल बुलाय लियो लिखि देहु .............................. ......................अर्थ
==पद=३६ ==नव निकुंज सुख पुंज महल जहाँ सुन्दर सुख सेजिया पे प्यारी --लाल
बैठे हुए हैं .| आज तों लाडली जी चंचल व रंगों से भरी हुई हैं . जो बात
पिया जू बोल रहें हैं सब प्रसन्नता से मान रही हैं .| महा अद्भुत श्रींगार
किये श्री हरि दासी जू भी अति सुन्दर आसन पर शोभित हो रही हैं .| आज प्यारी
जी की प्रसन्ता देख कर बिहारी जी उन से बोले --- हो प्यारी जू ! तुम तों
अति कृपालु हो , रसाल हो . मुझे अपनी भुजाओं में लेती हो | आज तुम से एक
बोल मांग रहा हूँ .| तुम लिख कर यह वचन दो मुझे .| प्रिया जू बोली = -- हो
प्यारे ! क्या मांगते हो ? तुम जो भी मांगोगे मैं तुम्हे जरूर दूंगी .| तब
कुञ्ज बिहारी जू बोले =-- राधे आप यह लिख के दो की तुम मुझे अपनी प्रीति
रूप धन सदा देती रहोगी .और यह भी लिख दो की मैं इसी भाँति हमेशा प्रसन्न
रहूंगी और कभी भी मान नही करूंगी ...और रूचि का ब्याज दोगी जिससे प्रीति
रूप धन बढ़ता ही जाए ...तुम गर्वीली हो .घड़ी--घड़ी में रूठ जाती हो | हे राधे
जू ! इस लिखे हुए ख़त में मुझे साक्षी या गवाही भी चाहिए की तुम हमेशा यह
सुख मुझे देती रहोगी .| ललिता -हरिदासी यह सुख की साक्षी है , तुम्हारे नैन
व सभी अंग भी गवाह हैं की तुम फिर कभी मान नही करोगी .|श्री हरिदास जू के
स्वामी स्यामा जू तब लाल जू से बोली --- ठीक है , लिख देती हूँ की कभी मान
नही करूँगी ...श्री हरिदास .
36------
Aaj rahesi me dekhat pyari ju----- In the nikunj mahalpyariji and Lalji
are seated on a seat decorated withflowers. That time Lalita sakhisays,
today pyariji is in a very good chirpy mood as I can see from her face
as well as actions.Oh Ladliji I want you to promise me something in
written.” Ladliji was taken aback and wondered what it could be and
agreed to promise her to give in written what ever she wanted. She said ,
‘Bihariniji I want you to goon loving Bihariji always. This love of
your’s for him is much more than all the riches of the world. Your
affection for him is much more than the interest on this wealth. This
wealth in the form of your affection will go on multiplying. You must
give in written that you will not get puffed up and make him miserable.I
YOUR SAKHI Haridasi will be witness to make sure that you keep Lal ji
always happy. If you are angry with Lalji again the sakhi will pay for
it so please keep your mood cheerful and happy always.
पद्य
37---
प्यारी तेरी बौफिन बान सुमार लागे
भौंहें ज्यूँ धनुष
एक बार यौं छूटत
जैसे बादर वरसत इन्द्र अनख
और हथियार कौं गानि री चाहनि कनक
श्री हरि दास के स्वामी स्यामा कुञ्ज बिहारी सौं
प्यारी जब तू बोलत चनख चनख ...................अर्थ ----पद्य
----37---सुन्दर नवल निकुंज में दोनों बिहारी बिहारिनी जू सुन्दर सेज पर
विराजमान हैं .| आज राधा जी बहुत प्रसन्न लग रही हैं .| बिहारी जी से अच्छी
अच्छी बातें कर रही हैं .. बिहारी जी बार बार उनको देखते जातें हैं . जैसे
की उनको विश्वास ही नही की आज इतनी खुश कैसे लग रही हैं .| तब वह बोले
----हो प्यारी जू ! आज तुम बहुत प्रसन्न वा खिली हुई सी दिख रही हो ,. मुझे
बहुत भला लग रहा है .| तुम क्यों मुझ दीन को क्यों इतना परेशान करती हो ?
मुझे तुम से कितने निहोरे करने पडतें हैं .| तुम बीच बीच में अपनी तिरछी
भौहों से ऐसे देखती हो जैसे धनुष हो और मेरे उपर बाण छोड़ने को तैयार हो
.|तुम्हारी तिरछी चितवन मुझको ऐसी प्रतीत होती है जैसे महाजोर से बादल
बरसतें हैं .|तुम मुझे काम कसौटी में क्यों कसती हो ?कभी तो तुम इतनी खुश
वा चंचल लगती हो और कभी तुम्हे मालुम नही क्या हो जाता है की एक दम चुप ही
हो जाती हो ....एक सखी जो यह सून रही थी बिहारी जी के पक्ष में बोली
----लाडली जू तुम जरा बिहारी जू की दशा तो देखो कितने श्रमित हो रहे हैं
.और आप की मनुहार करते हुए कितना श्रम लगातें हैं .आप की हा -हा खा रहे हैं
तब पिया जू फिर से बोले ---हो राधे ! जैसे बादलों के अंग अंग से रस की
वर्षा हो रही है उसी प्रकार तुम भी रस बरसाओ ..मुझ पर इतनी तो कृपा कर दो .
तब बिहारी जी फिर से लाडली जी को बोले =--हो लाडली जू ! जैसे बादलों के अंग
अंग से रस की वर्षा हो रही है , ऐसे ही रस की वर्षा मोपे करो,, तुम रस में
रहती हुई कितनी अच्छी लगती हो ,.ऐसे ही रहा करो ...
तुम्हारी आँखों की कोर से तुम्हारे तिरछे नजर से मुझे देखने से बहुत डर
जाता हूँ .| श्री हरि दास के स्वामी स्यामा ! तुम कुञ्ज बिहारी स्याम महा
डरपोक वा व्याकुल हो .|.....हे लाडली जु ,जैसे बादल चिढ़ कर बरसते हैं ,वैसे
हीं तुम्हारी भौंहें क्यों चिढती हुई हैं ?/लाडली जू जब तुम चनख चनख यानि
चिढ़ कर या नाराज़ हो कर लाल जी से बोलती हो तब यह बहुत निराश वा दुखी हो
जाते ही हैं .,,,आप के बलिहारी जाती हूँ इन को रस के झूले में बिठा के झूला
दो..,हरिदासी सखी के समझाने से राधा जी का मान समाप्त हुआ और वह बिहारी जू
के साथ केलि लीला में एक बार फिर मग्न हो गयी ..श्री हरिदास .
पद्य
--३८ ..38===काहे ते आजू अटपटे से हरि
लटपटी पाग अटपटे से बंद,
अटपटी देत आगे सरि,,,अटपटे पायिं परत ने परखे
जब आवत हे इत ढरि,,श्री हरिदास के स्वामी स्याम जानि हौं पायें
आजू लाल औरे परि..//////अर्थ ===३८---महा मनोहर निकुंज में सखियों के सामने
जब प्यारी जू ने लाल जी को वचन दिया की वह लिख के देंगी की अब कबहू नही
रूठेंगी , तब बिहारी जू अत्यंत खुश हुए ...बिहारी जी बोले = -- आज तो लाडली
जू आप प्रीति रूप धन कागज़ पर लिख दो , तुम्हारे नैन ही साक्षी दे देंगे .
प्यारी जी बोली ---- लिख देंगे लिख देंगे , .फिर लाडली जू ने विचार किया की
यह मुझ से कपट तो नही कर रहे ?
इनकी आदत तो विचित्र है .| यह नटखट , अनोखे वा शरारती हैं ..यह सोच कर राधा
जी बोली ---- तुम लिखित में क्यों मांग रहे हो ? मैंने तुम से कब मान किया
?
हो हरि तुम आज बहुत अटपटी बात कर रहे हो .,,तुम्हारी लटपटी यानी ढीली पाग
ढीली ढीली और सरकती हुई और अव्यवस्थित है .जब देखो तुम लडखडाते रहते हो .
हमेशा अस्थिर रहते हो .,मैंने जब भी तुम्हे देखा है , तुम अटपटी हरकतें
करते हो .|कोइ ना कोइ बहाना बना के कभी मेरे चरण पड़ते हो , कभी कुछ ..सच सच
बताओ की तुम ऐसे क्यों करते हो ?श्री हरिदास जू के स्वामी स्यामा की आज
लाल जी के मन में किस भाँति का रास विलास चल रहा है ? चलते चलते चौंक जातें
हैं .
मन में क्या है ?तब राधा जी को भान हुआ की उनके चरण नृत्य करने को मचल रहें
हैं .तब सब सखियों ने नृत्य क I तैयारी करी और उनके साथ नाचने लगी .
सभी होली के नाच में निमग्न हो गए जब सब परस्पर हो कर होली की धूम मचाने
लगे तो सखियाँ दोनों की बलिहारी लेने लगी ,.अब तो नैनो में अबीर -गुलाल लिए
आज मन की इच्छा पूरी हुई .दसों दिशाओं में नगाड़े ,बाजे बजने से वातावरण
गूँज उठा .
सो हो हो हो होली है की ध्वनि चारों और सुनाई देने लगी .
श्री हरिदास
38.
Kaahe te aaj atpate se Hari----- In the nikunj mahalwhere the jori is
seated on a beautiful throne made out of lovely flowers, Ladliji
comments, ‘Oh Biharji why are you saying things which make no sense? You
are wearing you turban or paag insuch a shabby manner. You should not
talk to me like this. Do not show your smartness to me because I have
come to know that you are a fraud when you came to touch my feet. Why do
you talk in suh a weird manner?’ Swami sri Haridas ji says that Ladliji
is not able to understand that Lalji wanted to dance with her. When
Lalita sakhi explained to er what Lalji wanted, she agreed to play holi
with him.
पद्य
---३९ -==39===--काहे कौं मान करत
मोहिब कत दुःख देति,,बासे की सी दृष्टि लियें रहों तेरी
जिवनि तोही समेति,,अब कछु ऐसी करो जू भौह्नि
टाटी जिनि देहु कहत इति नेति
श्री हरिदास के स्वामी स्यामा,छल कै गरे लगाइ भयी रमेति ..............अर्थ
--पद्य --३९==निकुंज महल में फूलों से सजी हुई सेज पर दोनों प्रिया=
प्रियतम की जोरी विराजमान हैं .. उसी समय लाल जू ने प्रिया जू को ये वचन
बोले ===.राधे जू ! आप मुझ से बोलती क्यों नही हो ?.यह मुझे मालुम है की
गर्व करना तुम्हारा स्वभाव है , परन्तु आप मुझे क्यों दुखी करती हो ?.मुझसे
आप प्रसन्न रहा करो...एक सखी ने भी हां में हां मिलाते हुए प्यारी जू से
बोला की सही कह रहें हैं बिहारी जी .,,...लाडली जू आप काहे को बेकार में
गंभीर हो जाती हो ? बांसी एक पक्षी होता है , वोह अपनी बांसी से बहुत स्नेह
करता है .बांसी उसकी प्रसन्नता में ही दृष्टि रखती है ऐसे ही मैं तुम्हारा
बांसो हूँ और तुम मेरी बांसी ,उसकी तरह तुम भी मुझसे प्रसन्न रहा करो .|
तुम्हारे साथ ही मेरा जीवन है .और यह जीवन तुम्हारी प्रसन्नता के लिए ही है
.| तुम्हारी कृपा ही मुझे चाहिए , जिससे मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है वा
रोम रोम खिल उठता है .हो प्यारी जू ! अब ऐसा कुछ करो की यह आपकी चढ़ी हुई
भौंहें मेरी तरफ ऐसे ना देखें .मेरी विनती मानिए और श्रवण से सूनिये मेरे
सन्मुख होकर बात कीजिये ,,| श्री हरिदास जू के स्वामी श्यामा जू ने श्याम
को छल करके खा ----सखी लाल जी को तो खबर नही है और तू ऐसे ही बीच में क्यों
बोल रही हो ?तब सखी मुस्कराती हुई वहाँ से गयी और आशीष दी की तुम्हारी यह
नोक झोक ऐसे ही सदा चलती रहे जिससे प्रेम का विस्तार होता जाए ....श्री
हरिदास
39 pada ....kaahe kou maan karat......
In the beautiful nikunj decorated with flowers of great variety , the divine couple are surrounded by sakhi's who are always ready to help the divine couple to pursue their keli leela without any disruption. Radhaji gets into different bhaawa's and Bihariji always mistakes it that she is having attitude. In this pada when Radha ji is exceptionally quiet , Lal ji cannot accept it .He wants that both should go on and on chatting and sharing glances at each other. In this pada he feels miserable when Radha j is not talking to him and is in her dhyaan mudra. He lamnates before her and says ..Oh Radley please tell me why do you suddenly start ignoring me ? Your moods keep changing and I feel as though I have made some mistake.your glance from your eyes looks as though you are very angry with me. You know it that I cannot tolerate even a second if you are angry with me. Why do you make me unhappy ? Please I request you to be always kind and compassionate with me .Why do you become so serious ?Another sakhi who is also listening to Bihariji also confirms with him and says what bihariji says is absolutely correct. She says oh ! Ladliju ! you know Baansi is a loving bird who is always making love to his baansni (wife) In return she too loves him so much that she too keeps him so happy and we both are like these loving birds . So you also should always love like the bansni bird. Bihariji says , I don't want anything else except your compassion and love for me. When you adore me my heart jumps a leap and I become overwhelmed and intoxicating. Please do something about your eyebrows which are so high as if in anger . Please straighten them I request you to listen to me and talk to me lovingly. Lalita sakhi who is also swami hari das ji is listening to this conversation which is very common in all love birds and tells the sakhi who had intervened , shyam sundar does not even know what you are saying so why are you talking between them. Then the sakhi smilingly left the nikunj saying bless the divine couple who are always engrossed in their love with these kind of moods which are not new. This way Radha krishna are always enjoying the bliss of keli leela in the nikunj mehal.
पद्य
==४०==40=रोम रोम रसना जो होति,,,,,,,,,तौं तेरे गुन न बखाने जात...कहाँ
कहो एक जीभ सखी री ,बात कि बात बात .....भानु श्रमित और ससि हूँ ,,श्रमित
भये और जुवति जात ,,,,,,,श्री हरिदास के स्वामी कहत री प्यारी ,तु राखत
प्रान जात........................... ..............==40==पद्य ==४०
का अर्थ ....सुन्दर कमल निकुंज में बिहारी -बिहारिनि जु अति कोमल गुलाब की
पंखुड़ियों से सजी सेजिया पे बैठे हैं ..दोनों महानंद में छकी रहें हैं .|
लाडली जू को आज कृपालु जान कर लाल जी हरि दासी सखी को देखते हुए यह वचन
बोले ==.हे प्यारी जू ! यदि मेरी रोम रोम भी रसना होती यानि हज़ारों
जिह्वाएँ होती तब भी तेरे गुणों का बखान नही कर सकता .|तुम्हारा नवीन
प्रकार से विलास , नैनों से नैन जुड़े हुए प्रेम भरी चितवन वा सुन्दर वचन
सून कर मैं आश्चर्य चकित हो जाता हूँ .| सूर्य की प्रीति कमल के फूल से है ,
जब सूर्य उदय होता है तब फूल खिल जाता है और जब सूर्य डूब जाता है तब कमल
भी मुरझा जाता है .सूर्य तो हमेशा यह ही चाहता है कि वह नित्य अपने स्नेही
को सुख दे , फिर संध्या को अस्त क्यूँ होता है ?इसी प्रकार चन्द्र की
प्रीति चकोर से होती है , जो रात को ही एकटक लगाए चंद्रमा को देखता रहता है
..जब प्रातः होता है तब चंद्रमा अस्त हो जाता है..तब वह भी अपनी स्नेही का
मनोरथ पूरा नही कर सकता //ऐसे ही मेरा चित भी श्रमित है .मेरा मन तो सूर्य
के समान दहक रहा है ,चित चकित बंद है ,और बुद्धि रुपी युवती सर्व श्रमित
है . आप तो इतने कृपालु हो कि मैं आप के गूणों को गाने में असमर्थ हूँ
./श्री हरि दास जू के स्वामी स्यामा प्यारी श्याम जू कहते हैं = हो प्यारी
जू आप ऐसे ही मुझसे खुश रहा करो वरना मेरे प्राण ही चले जातें हैं ..कभी
मान नही करना ./यद्यपि मैं आपके गूण- गान करने में असमर्थ हूँ , सो आप मेरे
प्राणों के प्राण हो . तब भी तुम ने मुझे अपना लिया है ..श्री हरि दास
40.---- Rom Rom Rasna jo hoti tau tere guun na bakhaane jaat---In the nikunj mahal both Lalji and Ladliji were seated and Lal ji tells Ladliji, ‘priya ju I have no words to praise you qualities. Even if every cell of my body had been the tounge, I would not have been able to describe how you make me happy in the keli leela. Oh sakhi ! I have only one tounge and what can one tounge describe? I am a failure to describe your good qualitites and I don’t know what and how to express my self about you. The lotus blooms only as long as the sun shines. Although the sun rediates so much heat but still it feels pleased to see the lotus bloom, but it has to set by evening and feels miserable. The same when the moon shines thechakor bird is delighted and keeos staring at it but when the moon sets down in the morning it has to bear the brunt. Swami sri haridas ji says Oh Priya ju you love and affection can only give me true happiness. (COURTESY:ASHA BHARDWAJ) |